प्रधानमंत्री जी ! पेट्रोलियम पर 69 प्रतिशत टैक्स लेना कौन सा लोक कल्याण है ?


इस समय डीजल/पेट्रोल पर केन्द्र सरकार क्रमश: 32 रुपये और 33 रुपये टैक्स वसूल रही है। सत्तर-बहत्तर रुपये के सामान पर सीधे 33 रुपये टैक्स वसूल करना कौन सा लोक कल्याण है? फिर राज्य सरकारों के टैक्स और वैट अलग। इस तरह प्रति लीटर डीजल/पेट्रोल दिल्ली में 69 प्रतिशत टैक्स लिया जाता है जो संसार में सर्वाधिक है।



सड़क का नाम लोक-कल्याण मार्ग रख देने से लोककल्याण नहीं हो जाता। लोक कल्याण मन की भावना है जो हमारे काम में दिखनी चाहिए। सरकार बनाने के बाद मोदी ने सात रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक-कल्याण मार्ग कर दिया था लेकिन मोदी का लोक-कल्याण आज तक किसी समझदार को समझ नहीं आया। जब से मोदी आये हैं उनका सारा जोर टैक्स वसूली पर रहता है। कितना और कहां से पैसा वसूल लिया जाए इसी में उनका सारा दिमाग लगा रहता है। लेकिन वो खर्च किस लोक कल्याण के लिए होता है इसका कोई प्रमाण आज तक नहीं दिखा सिवाय शौचालय बनाने के। सरकार के सारे विभागों के खर्चों पर जबर्दस्त रोक है। यहां तक कि डीएवीपी के विज्ञापनों तक पर लाल-फीताशाही लगा दी गयी है लेकिन इतना सारा धन सोखकर किस लोक का कल्याण किया जा रहा है, यह एक अबूझ पहेली है। 

अब देखिए। कोरोना काल में यह आपदा की घड़ी है। हर वर्ग टूट चुका है। बिना सोचे समझे और महान बनने के चक्कर में किये गये संपूर्ण लॉकडाउन ने उन्हें भी तोड़ दिया जो बच सकते थे। लेकिन आपदा की इस घड़ी में भी सरकार की टैक्स वसूली घटने की बजाय बढ़ गयी। 

इस समय डीजल/पेट्रोल पर केन्द्र सरकार क्रमश: 32 रुपये और 33 रुपये टैक्स वसूल रही है। सत्तर-बहत्तर रुपये के सामान पर सीधे 33 रुपये टैक्स वसूल करना कौन सा लोक कल्याण है? फिर राज्य सरकारों के टैक्स और वैट अलग। इस तरह प्रति लीटर डीजल/पेट्रोल दिल्ली में 69 प्रतिशत टैक्स लिया जाता है जो संसार में सर्वाधिक है। दुनिया के किसी देश में पेट्रोलियम पर इतना कर नहीं लिया जाता जितना इस समय भारत में लिया जा रहा है।  

नरेन्द्र मोदी 2014 में जब प्रधानमंत्री बने थे तब केन्द्र सरकार की तरफ से पेट्रोल पर 9.48 रुपये और डीजल पर 3.56 रुपये टैक्स लिया जाता था। लेकिन मोदी ने अपने शासन में डीजल पेट्रोल पर बेतहाशा टैक्स वसूला है। जब जब क्रूड आयल सस्ता हुआ उसका लाभ जनता को देने की बजाय मोदी सरकार ने टैक्स बढ़ाकर वह लाभ स्वयं रख लिया। 

इतने पर मार ये कि जरा सा क्रूड आयल की कीमत ऊपर हुई नहीं कि सीधे डीजल पेट्रोल की कीमत बढ़ा दी जाती है। कोरोना काल में जबकि क्रूड आयल टूटकर 21 डॉलर पर पहुंचा तो सरकार ने डीजल पेट्रोल सस्ता करने की बजाय एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिया था। ये बढ़ोत्तरी एक साथ पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये की गयी। यह तब किया गया जब सरकार पहले ही पेट्रोल पर 23 रुपये और डीजल पर 19 रुपये टैक्स वसूल कर रही थी। तो क्या यह सवाल नहीं उठता कि जब क्रूड आयल के दाम बढ़ते हैं तो सरकार उसका भार सीधे जनता के ऊपर डाल देती है लेकिन वहीं जब क्रूड आयल के दाम घटते हैं तो लाभ स्वयं क्यों रख लेती है? जब ये तय हो चुका है कि डीजल पेट्रोल की कीमत बाजार तय करेगा तब फिर टैक्स वसूली के लिए सरकार का ये अनावश्यक हस्तक्षेप क्यों? 

असल में यही से लोक कल्याण वाली नीयत पर सवाल खड़ा होता है। डीजल पेट्रोल सस्ता होने से आम आदमी के जीवन में दो पैसे की अतिरिक्त बचत होती है। इसके अलावा खेती की लागत, परिवहन और माल ढुलाई पर असर नहीं पड़ता इसलिए मंहगाई पर रोक लगती है। डीजल पेट्रोल सस्ता होने से प्रत्यक्ष रूप से जनता को फायदा मिलता है और बाजार स्थिर होता है, जबकि बेतहाशा कर लगाने से सरकार का कोषागार मजबूत होता है और सरकार जन धन को बेलगाम खर्च करने के लिए स्वतंत्र होती है। भारत जैसे भ्रष्ट देश में जहां नौकरशाही पिस्सू की तरह लोगों का खून पीती हो वहां योजनाओं के जरिए फायदा पहुंचाने से अच्छा है कि सरकार सीधे जनता को कर में राहत देकर फायदा पहुंचाए। लोग अपनी उन्नति सुनिश्चित कर लेंगे। 

तब सवाल उठता है कि जब क्रूड आयल की कीमत बढ़ने पर मनमोहन सरकार लगातार एक्साइज ड्यूटी घटाकर पेट्रोल डीजल की कीमतों को नियंत्रित करती थी तो अब क्रूड आयल सस्ता होने पर भी बेतहाशा एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर मोदी कौन सा लोक कल्याण कर रहे हैं? 

असल में जब लोक कल्याण केवल रास्ते का नाम हो तब ऐसा ही होता है। वास्तविक लोक कल्याण के लिए मन में लोक कल्याण की भावना होनी चाहिए। जिनका मन आपदा में अवसर तलाशता हो उनके लिए लोक कल्याण सिर्फ भाषण होता है। और हर मनुष्य इस बात को भली भांति जानता है कि सिर्फ लोक कल्याण के भाषण से लोक कल्याण नहीं हुआ करता।