बढ़ती जनसंख्या का दबाव और विकास की तेज रफ्तार वेटलैंड (आर्द्रस्थल) को तेजी से निगल रहा है। विकास की गति से दिनोंदिन नम भूमि की कमी होती जा रही है। देश में अब इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिलने लगा है। हमारे आसपास पशु-पक्षियों और वन्य जीव जंतुओं के अलावा पशुओं की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। विभिन्न मौसमों में देश के अंदर प्रवासी पक्षियों के आने की संख्या में भी कमी आई है। वेटलैंड के कम होने का सीधा असर जन जीवन और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। हालात यह हैं कि देश के अधिकांश राज्यों में लगातार वेटलैंड का वजूद खत्म हो रहा है। वेटलैंड की वजह से न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र बना रहता है बल्कि भूजल भी रिचार्ज होता है। इसके साथ ही अन्य कई प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा भी मिलती है। वेटलैंड क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण भूजल कम होता जा रहा है। जिससे आने वाले दिनों में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
वेटलैंड और कृषि में गहरा संबंध हैं। आम लोगों में ऐसी खेती और विकास के बारे में बताया जाना चाहिए, जिससे वेटलैंड सुरक्षित रहे और खेती भी प्रभावित न हो। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि वेटलैंड न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है बल्कि पशु-पक्षियों की विविधता को भी बचाए रखता है। इंटरनेशनल क्रेन फाउंडेशन के गोपी सुंदरम कहते हैं कि पक्षियों की 400 प्रजातियों में 37 प्रतिशत प्रजातियां वेटलैंड में पायी जाती हैं। इनमें सारस, ब्लेक नेक्ड स्टार्क, एशियन ओपन बिल्ड स्टार्क और पर्पल हेरल्ड मुख्य हैं। वेटलैंड के घटने से इन पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। विश्व भर में वेटलैंड को संरक्षित करने की आवाज उठ रही है। 2 फरवरी 1971 में ईरान में वेटलैंड के संरक्षण और इसके महत्व को बताने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। बाद में यह सम्मेलन रामसर कन्वेंशन के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद से विश्व भर में वेटलैंड को बचाने की मुहिम शुरू की गयी। 2 फरवरी 1997 में पहली बार विश्व वेटलैंड दिवस मनाया गया। आज दुनिया के 95 देश वेटलैंड को बचाने की मुहिम में शामिल हैं।
भारत की बात करें तो यहां पर कई राज्यों में बड़े बड़े वेटलैंड मौजूद हैं। जिनकी प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। लेकिन ये बड़े वेटलैंड संकट के दौर से गुजर रहे हैं। झीलों की बात करे तो कश्मीर की डल झील, लोहतक झील,बुलर झील, पश्चिम बंगाल की साल्ट लेक,हरिके झील, सुंदरवन का डेल्टा,हल्दिया का दलदली भूमि और ओडिसा का चिल्का झील,दाहर एवं संज झील,कोलेरू झील गुजरात में कच्छ ,कर्नाटक का तटीय क्षेत्र,खंभात की खाड़ी,कोचीन के झील और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भी वेटलैंड खतरे में हैं। सन् 1989 में प्रकाशित डायरेक्ट्री ऑफ एशियन वेटलैंड के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल वेटलैंड का क्षेत्रफल 58.2 मिलियन हेक्टेयर है। जिसमें ऐसा क्षेत्र जहां धान की फसल उगाई जाती है- 40.9,मत्यस पालन के लिए उपयोगी -3.6,मछली पालन क्षेत्र-2.9,दलदली क्षेत्र-0.4,खाड़ी-3.9,बैकवाटर- 3.5 और तालाब- 3.0 मिलियन हेक्टेयर है। इसके अलावा देश में नदियों और उनके सहायक नदियों का बहाव क्षेत्र 28000 किमी और नहरों का कुल क्षेत्रफल 113,000 किमी है।
देश के साथ ही दिल्ली में भी वेटलैंड्स की तादाद में लगातार कमी आ रही है, वहीं मौजूदा सरकार वेटलैंड्स को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इसका नमूना राजधानी के गढी मेंडू सिटी फॉरेस्ट से सटी वेटलैंड है,जो बदहाली के कगार पर है। गढ़ी मेंडू सिटी फॉरेस्ट नार्थ ईस्ट दिल्ली के उस्मानपुर-खजूरी इलाके में यमुना के किनारे करीब 895 एकड में फैला हुआ है। यह इलका 121 प्रजातियों के देशी-विदेशी परिंदों का घर है और यहां 57 किस्म के पेड-पौधे,जडी-बूटियां,झाडि़या,जलीय पौधे और अन्य प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। यह फारेस्ट वेटलैंड से घिरा हुआ है। जिसमें करीब 44 तरह की जलीय पक्षी पाई जाती हैं। इनमें कई स्थानीय प्रजातियां हैं तो प्रवासी पक्षी भी यहां बडी संख्या में आते हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि पर्यावरण के लिहाज से खासा समृद्व क्षेत्र होने के बावजूद इस वेटलैंड को अभी तक नोटिफाई नहीं किया गया है। इस वेटलैंड में इलाके का नगर निगम कचरा और मलबा डालता है, तो स्थानीय लोग भी अपने घर का कचरा यहां फेंक आते हैं। इसके साथ ही दिल्ली सरकार के आदेशों की अनदेखी करते हुए यहां कचरा भी जलाया जाता है। कचरा जलाने से वेटलैंड को तो नुकसान हो ही रहा है हवा भी प्रदूषित हो रही है। इसी के साथ ही दिल्ली सरकार संजय लेक,भलस्वा लेक और शांति वन को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। ये सभी वेटलैंड धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रही हैं।
हमारे आसपास का वातावरण, जिसे स्वच्छ रखने की जिम्मेवारी हम सबकी है। पिछले कई वर्षो से लगातार लापरवाही की शिकार है। जरा सी अनदेखी भावी पीढ़ी के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। इस लापरवाही का असर किसी खास स्थान के लिए नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर होता है। ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। अब भी हम जागरूक और गंभीर नहीं हुए तो भविष्य में इसके खतरे का महज अंदाजा ही लगा सकते हैं। वेटलैंड पर अतिक्रमण केवल एक स्थान या एक राज्य तक सीमित नहीं है। कुछ साल पहले तक नोएडा में करीब 19 वेटलैंड थे,लेकिन अब इनकी संख्या मात्र छह रह गयी है। उनमें ओखला पक्षी विहार और सूरजपुर पक्षी विहार प्रमुख है।
वेटलैंड को खत्म करने में पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे आगे हैं। इसका सीधा कारण यह है कि इन दोनों राज्यों में सबसे पहले हरित क्रांति हुई। इस सिलसिले में कृषि विकास का जो मॉडल अपनाया गया उसमें पानी के पारंपरिक स्रोतों को पाटने का अभियान ही चल निकला। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज पंजाब में 70 फीसदी वेटलैंड का वजूद खत्म हो चुका है। इनमें 30 फीसदी की स्थिति भी गंभीर होती जा रही है। जबकि हरीके पत्तन वेट लैंड में 75 फीसदी हिस्से के स्थिति बेहद नाजुक स्तर पर पहुंच गई है। वेट लैंड में गंदा पानी आने से नमी वाली जमीन में कई ऐसे पदार्थ जमा हो गए हैं, जिनको हटाना बेहद जरूरी हो गया है। इससे राज्य के भूगर्भ जल में कमी हो गयी है। सेंट्रल यूनिर्विसटी ऑफ पंजाब के वातावरण शिक्षा के प्रो. डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं कि यही हाल रहा तो आने वाले समय में पंजाब की धरती की उपजाऊ शक्ति खत्म होने की भी आशंका है। राज्य में तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के वेट लैंड स्थापित हैं। जिसमें हरीके पत्तन (सतलुज-ब्यास), कांजली (काली बेई) रोपड़ (सतलुज) का नाम शामिल हैं। जबकि राष्ट्र स्तरीय वेट लैंड में नंगल रंजीत सिंह सागर का नाम हैं। इसी तरह से राज्य स्तरीय वेट लैंड में जस्तरवाल (अमृतसर), ढोलवाहा (होशियारपुर) केशुपुर मियाणी काहनूवान (गुरदासपुर) मंड पथला (नवांशहर) मौजूद हैं।
वेटलैंड के कम होने का मुख्य कारण जमीन पर अंधाधुंध कब्जे होना है। प्रो. डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं कि प्रदूषण के कारण वेट लैंड कम होने लगी हैं। पहले जो वेट लैंड पंजाब में 100 फीसदी थी। अब वह 30 फीसदी रह गई है। इसके कम होने के कारण लगातार प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना है। जबकि सच्चाई यह है कि वेट लैंड धरती के लिए उपजाऊ शक्ति का काम करते हैं। बरसात का पानी वेट लैंड में एकत्रित होकर पानी के स्तर को कायम रखने में योगदान देते हैं। इस पानी पर कई तरह की वनस्पति, कीट पतंगे, पंछी जलचर जीव भी निर्भर करते हैं। विशेष बात यह है कि वेट लैंड बाढ़ को रोकने, प्रदूषित पानी को शुद्ध करने प्रदूषण को रोकने में मददगार साबित होते हैं। इनको बनाए रखना आज समय की मुख्य जरूरत है।
वेटलैंड को आमतौर पर जलगाह कहा जाता है। जलगाह की मिट्टी बेहद खास होती है। इसे अंग्रेजी में हाईिडक सॉयल कहते हैं। इन जलगाहों की मिट्टी लाखों साल के बाद जन्म धारण करती है। इस मिट्टी में दूषित पानी को साफ करने की ताकत होती है। इसमें विभिन्न तरह के ऑर्गेनिक तत्व होते हैं। यह खास कर दरियाओं के पास ही होती है। इस जमीन के पास पौधों की संख्या ज्यादा होने के कारण मौसम बहुत संतुलित रहता है।
2001 में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में कुल वेटलैंड क्षेत्र हेक्टेयर में
राज्य वेटलैंड एरिया
आंध्र प्रदेश 366609
बिहार 177686
गुजरात 209206
जम्मू कश्मीर 406780
कर्नाटक 254015
केरल 34200
मध्य प्रदेश 294118
महाराष्ट्र 284942
ओडिशा 162774
राजस्थान 344964
तमिलनाडु 161521
उत्तर प्रदेश 328690
पांडिचेरी 59
अरुणाचल प्रदेश 56325
असम 101232
दिल्ली 4717
गोवा 2145
हरियाणा 27057
हिमाचल प्रदेश 54766
मणिपुर 52959
मेघालय 2222
मिजोरम 152
नागालैंड 918
पंजाब एवं चंदीगढ़ 71879
सिक्किम 1985
त्रिपुरा 9896
पश्चिम बंगाल 1143859
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3204
दमण दीव और नागर हवेली 38
लक्षद्वीप 918
कुल क्षेत्रफल 3558915 हेक्टेयर