सारागढ़ी युद्ध में भारतीय सैनिकों का बलिदान


यह युद्ध विश्व इतिहास के आठ सबसे रोमांचक लड़ाइयों में शामिल
है। जिसमें दोनों तरफ की सेनाओं में जमीन आसमान का अंतर था। थर्मोपाली के युद्ध के
साथ ही यूनेस्को ने इसको विश्व इतिहास में स्थान दिया है। फ्रांस सरकार ने इस
युद्ध को अपनी सैन्य ट्रेनिंग स्कूल में शामिल किया है। 2002 में पंजाब के कुछ
लोगों ने भारत सरकार से इसे भारतीय सैन्य ट्रेनिंग में शामिल करने की मांग की थी।


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चारों तरफ से शत्रुओं से घिरे उन वीर सैनिकों ने आत्मसमर्पण की जगह शहीद होना बेहतर समझा। अपने कर्तव्यों को निभाते हुए अपना बलिदान करने वाले इन सैनिको की शौर्य गाथा विश्व इतिहास में दर्ज है। सारागढ़ी मेमोरियल सिख सैनिकों के बलिदान की कहानी कहता है। अपने जान की बाजी लगा कर भी 21 बहादुर फौजियों ने हार नहीं मानी और इतिहास में अपना नाम अमर कर गए। 1897 को वजीरिस्तान के कबाइलियों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को शांत करने के लिए अंग्रेज सरकार ने सैनिक कार्रवाई का निर्णय लिया। इसके लिए पंजाब इंफेन्ट्री की 36वी सिख रेजीमेंट को लगाया गया। नार्थ वेस्ट फ्रंटियर में स्थित फोर्ट सारागढ़ी पोस्ट को सिख सैनिकों के हवाले कर दिया गया। 12 सितंबर 1897 को इन सैनिकों ने बहादुरी से सारागढ़ी की रक्षा की। अगले दिन 13 सितंबर को किला गुलिस्तान जाते समय दस हजार पठानों की भीड़ ने इन सैनिकों को घेर लिया और हमला कर दिया। अंतिम समय तक ये सैनिक बहादुरी से लड़ते रहे और शहीद हुए।

गौरतलब है कि अंग्रेजी शासन संयुक्त भारत में उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत के पठानों ने अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बगावत का रुख किया। वहां पर वे अपना शासन और लश्कर चाहते थे। ब्रिटिश सरकार रूस के डर से ऐसा नहीं होने देना चाहती थी। सीमा प्रांत के ओरकजई और अफरीदी कबीलों ने बगावत का झंडा बुलंद किया। महाराजा रणजीत सिंह के समय यहां पर कुछ किले थे। जिस पर ब्रिटिश सरकार ने कब्जा कर कबीलो को बश में करना चाहा। सारागढ़ी पोस्ट को हवलदार ईसर सिंह के हवाले कर दिया गया। हवलदार ईसर सिंह और बीस अन्य सिख सैनिकों ने बहादुरी से कबीलाइयों का सामना किया। फोर्ट लोचहट से किला गुलिस्तान के बीच सारागड़ी में 13 सितंबर 1897 में दस हजार की पठान लश्कर ने उन्हें घेर लिया। सिख सैनिको ने आत्मसमर्पण की जगह शहादत को चुना। थर्मोपाली का युद्ध भी उतना गैर बराबरी का नहीं था जितना सारागढ़ी की लड़ाई। 480 ईसा पूर्व विशाल पर्सियन सेना और छोटी ग्रीक सेना में हुआ था। इस युद्ध में 1 और 285 का अनुपात था। जबकि सारागढ़ी में 1 और 476 या  21 बनाम 10000 के बीच लड़ाई थी। 

यह युद्ध विश्व इतिहास के आठ सबसे रोमांचक लड़ाइयों में शामिल है। जिसमें दोनों तरफ की सेनाओं में जमीन आसमान का अंतर था। थर्मोपाली के युद्ध के साथ ही यूनेस्को ने इसको विश्व इतिहास में स्थान दिया है। फ्रांस सरकार ने इस युद्ध को अपनी सैन्य ट्रेनिंग स्कूल में शामिल किया है। 2002 में पंजाब के कुछ लोगों ने भारत सरकार से इसे भारतीय सैन्य ट्रेनिंग में शामिल करने की मांग की थी। तत्कालीन अंग्रेज सरकार भी इस लड़ाई की तारीफ किए बिना नहीं रह सकी। इलाहाबाद से निकलने वाले पायनियर अखबार ने शहीदों की याद में एक स्मारक बनाने की पहल की। अखबार ने इसके लिए चंदा एकत्र करना शुरू किया। फिरोजपुर कैंट में स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया। सारागढ़ी मेमोरियल के निर्माण में कुल 27,118 हजार रुपए का खर्च आया। पंजाब के तत्कालीन गर्वनर चार्ल्स रेव ने 1904 में सारागढ़ी स्मारक को जनता को समर्पित किया। फिरोजपुर के अलावा इन बहादुर सैनिकों की याद में अमृतसर और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर के सारागढ़ी पोस्ट में भी स्मारक है। जो उनके वीरता की कहानी कह रहा है।

फिरोजपुर का सारागढ़ी मेमोरियल भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक है। लेकिन एक बोर्ड के अलावा पुरातत्व विभाग की वहां कोई भी चीज नहीं दिखाई देती है। सिखों का इतिहास बलिदानों से भरा पड़ा है। विश्व युद्ध से लेकर देश की आजादी की लड़ाई तक में पंजाब के जवानों ने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दी है।