कोरोना वायरस से पहले की वो 5 महामारियां जिन्होंने बदल दिया विश्व इतिहास


अमेरिका की क़रीब छह करोड़ (जो उस वक़्त दुनिया की कुल आबादी का दस फ़ीसद हिस्सा थी) की आबादी केवल एक सदी में घट कर महज़ साठ लाख रह गई. अमरीका में यूरोपीय उपनिवेश स्थापित होने के बाद के बाद इन इलाक़ों में होने वाली अधिकतर मौतों के लिए वो बीमारियां ज़िम्मेदार थीं, जो ये उपनिवेशवादी अपने साथ लेकर अमरीका पहुंचे.



जब ब्युबोनिक महामारी ने मचाया यूरोप में कहर : 

चौदहवीं सदी के पांचवें और छठें दशक में प्लेग की महामारी से यूरोप की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई थी. लेकिन कई लाख जानें लेने वाली ये महामारी, कई यूरोपीय देशों के लिए वरदान साबित हुई. अपने नागरिकों की इतनी बड़ी तादाद में मौत के बाद बहुत से देशों ने खुद को हर लिहाज़ से इतना आगे बढ़ाया कि वो आज दुनिया के अमीर मुल्कों में शुमार होते हैं. ब्लैक डेथ यानी ब्यूबोनिक प्लेग से इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत के कारण, खेतों में काम करने के लिए उपलब्ध लोगों की संख्या बहुत कम हो गई, सामन्तवादी प्रथा टूटी और मजदूरी में काम करने की एक नै प्रथा शुरू हो पाई. 

जब अमेरिका की 6 करोड़ की आबादी 60 लाख हो गई  

यूरोपीय देशों ने पंद्रहवीं सदी के अंत तक अमेरिकी महाद्वीपों में उपनिवेशवाद का प्रसार करते हुए अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपने-अपने साम्राज्य के विस्तार के चक्कर में यूरोपीय ताक़तों ने कई बीमारियों से अमेरिका को झकझोड़ कर रख दिया. ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया कि यूरोप के विस्तार के बाद अमेरिका की क़रीब छह करोड़ (जो उस वक़्त दुनिया की कुल आबादी का दस फ़ीसद हिस्सा थी) की आबादी केवल एक सदी में घट कर महज़ साठ लाख रह गई. अमरीका में यूरोपीय उपनिवेश स्थापित होने के बाद के बाद इन इलाक़ों में होने वाली अधिकतर मौतों के लिए वो बीमारियां ज़िम्मेदार थीं, जो ये उपनिवेशवादी अपने साथ लेकर अमरीका पहुंचे. इनमें सबसे बड़ी बीमारी थी चेचक. अन्य बीमारियों में ख़सरा, हैज़ा, मलेरिया, प्लेग, काली खांसी, और टाइफ़स भी शामिल थीं, जिन्होंने करोड़ों लोगों की जान ले ली. इन बीमारियों की वजह से इन इलाक़ों में लोगों ने बेपनाह दर्द झेला. बड़े पैमाने पर जान का भी नुक़सान हुआ. और इसका नतीजा सारी दुनिया को भुगतना पड़ा.

जब नेपोलियन को एक बिमारी के सामने घुटने टेकने पड़े  

कैरेबियाई देश हैती में एक महामारी के प्रकोप ने उस समय की बड़ी साम्राज्यवादी ताक़त फ्रांस को उत्तरी अमरीका से बाहर करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. 1801 में कैरेबियाई देश हैती में यूरोप की औपनिवेशिक ताक़तों के ख़िलाफ़ यहां के बहुत से ग़ुलामों ने बग़ावत कर दी. एक के बाद एक कई बग़ावतों के बाद आख़िरकार तुसैंत लोवरतूर का फ़्रांस के साथ समझौता हो गया और वो हैती का शासक बन गया. फ्रांस में ख़ुद को आजीवन देश का शासक घोषित करने वाले नेपोलियन बोनापार्ट ने पूरे हैती द्वीप पर अपना क़ब्ज़ा जमाने का सोचा. लिहाज़ा उसने हैती पर कब्ज़ा जमाने के लिए कई हज़ार सैनिकों को वहां लड़ने के लिए भेज दिया.
 फ़्रांस से आए ये लड़ाकू जंग के मैदान में तो बहुत बहादुर साबित हुए लेकिन पीत ज्वर या येलो फ़ीवर के प्रकोप से ख़ुद को नहीं बचा पाए. एक अंदाज़े के मुताबिक़ फ़्रांस के क़रीब पचास हज़ार सैनिक, अधिकारी, डॉक्टर इस बुखार के चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गए. हैती पर क़ब्ज़े के लिए गए फ्रांसीसी सैनिकों में से महज़ तीन हज़ार लोग ही फ़्रांस लौट सके. इस हार ने नेपोलियन को ना सिर्फ़ हैती का उपनिवेश छोड़ने पर मजबूर किया. बल्कि, नेपोलियन ने उत्तरी अमरीका में फ्रांस के औपनिवेशिक विस्तार के अपने ख़्वाब को भी तिलांजलि दे दी.

जब एक वायरस ने अफ्रीका के 90 फीसदी पालतू जानवरों को मार डाला 

अफ़्रीक़ा में पशुओं के बीच फैली एक महामारी ने यूरोपीय देशों को यहां अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद की. हालांकि ये ऐसा प्रकोप नहीं था, जिसमें सीधे इंसान की मौत होती थी. लेकिन, इस महामारी ने जानवरों को बड़े पैमाने पर अपना शिकार बनाया था. 1888 और 1897 के दरमियान राइंडरपेस्ट नाम के वायरस ने अफ़्रीक़ा में लगभग 90 फ़ीसद पालतू जानवरों को ख़त्म कर दिया. इसे जानवरों में होने वाला प्लेग भी कहा जाता है. इतने बड़े पैमाने पर जानवरों की मौत से हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका, पश्चिमी अफ्रीका और दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका में रहने वाले बहुत से समुदायों पर क़यामत सी आ गई. यहां के समाज में बिखराव आ गया. भुखमरी फैल गई. चूंकि लोग खेती के लिए बैलों का इस्तेमाल करते थे. तो, जब बैल ही नहीं रहे तो खेती भी ख़त्म होने लगी. अफ़्रीक़ा के ऐसे बदतर हालात ने उन्नीसवीं सदी के आख़िर में यूरोपीय देशों के लिए अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपने उपनिवेश स्थापित करने का माहौल तैयार कर दिया.

चीन की एक महामारी ने खत्म कर दिया पूरा राजवंश 

संयुक्त राष्ट्र की हिस्ट्री ऑफ अफ्रीका में अफ्रीका महाद्वीप में उपनिवेशवाद का ज़िक्र इस तरह से किया गया है, ‘अफ्रीका में साम्राज्यवाद ने उस वक़्त हमला बोला, जब वहां के लोग पहले ही एक बड़ा आर्थिक संकट झेल रहे थे. और साम्राज्यवाद के साथ आई उससे जुड़ी हुई अन्य बुराइयां.’ चीन में मिंग राजवंश ने लगभग तीन सदी तक राज किया था. अपने पूरे शासन काल में इस राजवंश ने पूर्वी एशिया के एक बड़े इलाक़े पर अपना ज़बरदस्त सियासी और सांस्कृतिक प्रभाव छोड़ा था लेकिन, एक महामारी ने इस बेहद ताक़तवर राजवंश के पतन में अहम भूमिका अदा की. वर्ष 1641 में उत्तरी चीन में प्लेग जैसी महामारी ने हमला बोला, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी. कुछ इलाकों में तो प्लेग की वजह से 20 से 40 फ़ीसद तक आबादी ख़त्म हो गई थी. चीन में प्लेग ने उस वक़्त दस्तक दी थी, जब वो सूखे और टिड्डियों के प्रकोप से जूझ रहा था. फ़सलें तबाह हो चुकी थी. लोगों के पास खाने को अनाज नहीं था. हालात इतने बिगड़ गए थे कि जब लोगों के पास खाने को कुछ नहीं होता था, तो, वो प्लेग, भुखमरी और सूखे से मर चुके लोगों की लाश को ही नोच खाने लगे थे.