लखनऊ। करीब 14 सौ साल पहले कर्बला में दीन-ए-इस्लाम और इन्सानियत को बचाने के लिए अपने 71 साथियों और घरवालों के साथ यजीदी फौज के द्वारा शहीद किए गए हजरत इमाम हुसैन की शहादत का गम रविवार को पूरी दुनिया में मनाया गया, लेकिन इस साल कोरोना वायरस के खतरे से लोगों को बचाने के लिए कही भी न तो कोई जुलूस ही निकाला गया और न ही यौमे आशूर के दिन कर्बलाओं में ताजिए ही दफ्न किए गए।
साल 1999 में लखनऊ में शिया-सुन्नी और प्रशासन के बीच हुए मुहायदे में शिया समुदाय को नौ और सुन्नी समुदाय को एक जुलूस सशर्त निकालने की अनुमति दी गई थी। 1999 से लगातार शिया-सुन्नी अपने-अपने जुलूसों को निकालते रहे हैं, लेकिन साल 2020 में कोरोना वायरस ने पूरी दुनियां को अपनी चपेट में लिया तो सभी धर्मों के धार्मिक कार्यक्रमों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। जिसके कारण इस बार मोहर्रम के महीने में कोई भी जुलूस शिया समुदाय द्वारा नहीं निकाला गया।
लखनऊ में कुछ खास इमाम बाड़ों में जिला प्रशासन द्वारा सिर्फ 5 लोगों के साथ मजलिस पढ़ऩे की इजाजत दी गई थी। शिया समुदाय के लोगों को ये आशा थी कि भले ही उन्हें इस बार कोरोना वायरस के कारण जुलूस न निकालने की इजाजत हो, लेकिन कोरोना काल में खुद को और दूसरों को कोरोना के खतरे से बचाने के लिए शिया फिरके ने भी जिला प्रशासन का परस्पर सहयोग करते हुए इस बार मोहर्रम को पूरी तरह से सादगी के साथ अपने-अपने घरों में ही मनाया।
अपको बता दें कि पुराने लखनऊ में हजरत इमाम हुसैन की याद मे यौमे आशूर का जुलूस गमजदा माहौल में कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला जाता था। सुबह दस बजे नाजिम साहब के इमाम बाड़े में मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी जुलूस से पहले मजलिस पढ़ते थे जिसमें वो कर्बला का खौफनाक मंजर बयान करते थे तो गमजदा अजादार अपने आपको रोने से रोक नहीं पाते थे।
मजलिस के बाद नाजिम साहब के इमाम बाड़े से यौमे आशूर का जुलूस शुरू होता था जुलूस में शामिल मातमी अन्जुमनों में शामिल अजादार कमा और छुरिया का मातम कर इमाम हुसैन की याद में अपने आपको लहुलुहान कर लिया करते थे। जुलूस में शामिल मातमी अन्जुमनों के हजारों लोग मातम करते हुए या हुसैन के नारे लगाते हुए कर्बला तालकटोरा तक जाते थेे।
यौमे आशूर का जुलूस बजाजा स्थित नाजिम साहब के इमाम बाड़े से शुरू होकर अकबरी गेट, नख्खास बिल्लौचपुरा, विक्टोरिया स्ट्रीट , बाजार खाला, हैदरगंज, बुलाकी अडडा होता हुआ अपने निर्धारित समय पर कर्बला तालकटोरा में सम्पन्न होता था। वहीं बाद नमाज जुमा अकबरी गेट स्थित एक मिनारा मस्जिद के बाहर हजरत इमाम हुसैन की याद में जलसा इमाम हुसैन रजि का आयोजन किया जाता था, जिसमें ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, मौलाना अलीम फारूकी, मौलाना अली फारूकी शिरकत कर कर्बला में शहीद हुए शहीदों के बुलन्द दर्जे को बयान करते थे। लेकिन इस बार कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए न तो जुलूस ही निकाला गया और न ही एक मिनारा मस्जिद में जलसा हुआ।
कर्बला में 10 मोहर्रम को शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन का गम मनाने वाले अकीदतमंद अजादारों ने इस बार दोहरे गम का घूंट पिया। यौमे आशूर के दिन अपने घरों से कर्बलाओं मे ताजिए न दफ्न कर पाने का गम भी अजादारों को परेशान करता रहा।
शिया बाहुल्य इलाकों में लगातार होती रही खास निगरानी
नौ मोहर्रम की रात से ही पुराने लखनऊ के शिया बाहुल्य इलाकों में तैनात भारी पुलिस बल पूरी तरह से मुस्तैद रहा। पुलिस के आला अफसर लोगों को समझाते रहे कि सरकारी गाईडलाईन लोगों की भलाई के लिए है। यौमे आशूर के दिन कोई अजादार अपने घर से ताजिया लेकर बाहर न निकले इसलिए पुलिस सुबह से ही चौकन्नी थी।
शिया बाहुल्य इलाकों में पुलिस सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन कैमरों के अलावा बाडी वार्न कैमरों से भी निगरानी करती रही। पुराने लखनऊ के सआदतगंज ठाकुरगंज, चाौक , बाजार खाला, वजीरगंज आदि क्षेत्रों में पुलिस के आला अफसर सुरक्षा व्यवस्था का लगातार जायजा लेते रहे। वैसे तो पूरा पुराना लखनऊ संवेदनशील क्षेत्रों की श्रेणी में माना जाता है, लेकिन खास कर सआदतगंज, ठाकुरगंज और चाौक क्षेत्र में कुछ ज्यादा ही सुरक्षा के इन्तिजाम किए गए थे सआदतगंज के संवेदनशील शिया बाहुल्य क्षेत्रों में ऊॅचे मकानों की छतों पर भी पुलिस के जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी।