आनंद भवन कैसे बना स्वराज भवन…


सन् 1926 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपना यह ऐतिहासिक निर्णय भी महात्मा गांधी को सुनाया कि वह आनंद भवन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दान में देना चाहते थे। 11 अप्रैल 1930 को आनंद भवन को उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया तो इसका नाम बदलकर ‘स्वराज भवन’ रख दिया गया।



पिछले छह-सात वर्षों से पं. जवाहर लाल नेहरु की चर्चा खूब हो रही है। सत्तारूढ़ दल के सर्वोच्च नेता से लेकर अदने कार्यकर्ता तक मौके-बेमौके नेहरु की कमियां गिनाने लगते हैं। लेकिन यहां पर नेहरु नहीं उनके ऐतिहासिक आवास पर एक दृष्टि डालते हैं। आनंद भवन नेहरु परिवार के पहले कई प्रसिद्ध लोगों का निवास रह चुका था। इतिहास प्रसिद्ध सर सैय्यद अहमद खां के बेटे जस्टिस सैय्यद महमूद और मुरादाबाद के रईस राजा जयकिशन दास भी इसके मालिक रहे।

आनंद भवन मात्र एक रिहायशी मकान ही नहीं अपितु एक इतिहास भी है। जिसमें हिंदुस्तान के प्रसिद्ध वकील पं. मोती लाल नेहरू के अलावा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय चार पीढ़ियों का रिश्ता रहा है। यहां केवल जवाहरलाल नेहरू की परवरिश ही नहीं हुई, इसी घर मे उनकी पुत्री इंदिरा गांधी का जन्म हुआ। यह सब तो इसको गौरव प्रदान ही करता है पर इससे भी ज्यादा यह भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन का साक्षी रहा है। यह सिर्फ ईंट पत्थरों से बनी एक ऐतिहासिक इमारत ही नहीं है अपितु इतिहास के काल खण्डों को स्वयं में संजोए एक सजीव ऐतिहासिक धरोहर है।

9 जून 1888 को यह जायदाद जस्टिस सैयद महमूद (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खां के सुपुत्र) ने खरीदी थी जिसे उन्होंने 22 अक्टूबर 1894 को मुरादाबाद के प्रसिद्ध रईस राजा जय किशनदास को बेच दिया। 7 अगस्त, 1899 को 20,000 में रुपए में इसे पंडित मोतीलाल नेहरु ने खरीदा। इस प्रकार यह परिसर नेहरू परिवार का निवास बन गया और आधुनिक भारत के इतिहास से गहरा नाता जुड़ गया।

सन् 1926 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपना यह ऐतिहासिक निर्णय भी महात्मा गांधी को सुनाया कि वह आनंद भवन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दान में देना चाहते थे। वह देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व पहले ही दांव पर लगा चुके थे। 11 अप्रैल 1930 को आनंद भवन को उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष और पंडित मोतीलाल नेहरू के सुपुत्र पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया तो इसका नाम बदलकर ‘स्वराज भवन’ रख दिया गया।

सन 1926 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने आनंद भवन कांग्रेस को दान करने का निर्णय किया तो तभी साथ वाली भूमि पर एक नए आनंद भवन के निर्माण का काम शुरू करवा दिया जो 1927 के मध्य तक तैयार भी हो गया। इस नए निवास का नाम आनंद भवन हो गया और उसी वर्ष नेहरू परिवार पुराने आनंद भवन यानी स्वराज भवन को छोड़कर नये आनंद भवन में रहने चला आया।

27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद नेहरू परिवार का यह पैतृक निवास आनंद भवन पंडित मोतीलाल नेहरू की पोती और जवाहरलाल नेहरू की सुपुत्री इंदिरा गांधी को विरासत में मिला। पारिवारिक परंपरा के अनुसार इंदिरा गांधी ने भी आनंद भवन को निजी मिल्कियत में न रखने और इसे राष्ट्र को समर्पित करने का फैसला किया।

1 नवंबर 1970 को आनंद भवन विधिवत जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि को सौंपा गया और उसके अगले ही वर्ष 14 नवंबर, 1971 में उसे एक स्मारक संग्रहालय के रूप में दर्शकों के लिए खोल दिया गया। यह दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती और बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील राममोहन राय कहते हैं कि “आनंद भवन -स्वराज भवन का इतिहास अनूठा है। ताज्जुब होता है कि कैसे एक प्रसिद्ध और सफल वकील, महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर न केवल वकालत छोड़ देता है व अपना बेशकीमती मकान ही नहीं अपना सम्पूर्ण जीवन देशहित के लिये त्याग देता है। उस समय भी मोतीलाल नेहरू की आमदनी लाखों में थी। यह महात्मा गांधी का ही करिश्माई असर था कि असहयोग आंदोलन में एक नहीं अनेक वकीलों ने अपनी जमी जमाई वकालत को छोड़ दिया था,अध्यापकों ने अध्यापन को छोड़ दिया और विद्यार्थियो ने अपनी पढ़ाई को छोड़ कर आज़ादी के आंदोलन में भाग लिया। इसी दौरान लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना लाला लाजपतराय ने की थी जिनमे ऐसे ही बच्चों को राष्ट्रीय भावनाओ से ओतप्रोत करके शिक्षित किया जाता था। ”

आनंद भवन सर्वथा सजीव है। इसका एक -एक कमरा अपनी भव्यता की गाथा गा रहा है। कमरे ऐसे सजे है जैसे अभी कोई उठ कर गया है और थोड़ी देर में लौटेगा। ‘तुलसी का क्यारा’ वही रखा है जहां इस घर की मालकिन स्वरूपरानी नेहरु ने इसे प्रतिष्ठा दी थी हां उसी जगह जहां उनकी बहू कमला नेहरू इसकी पारिवारिक परम्परा व आस्था के अनुसार देखभाल करती थी। जी हां उसी जगह जहां पं. मोतीलाल नेहरू, उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू, उनकी पौत्री इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी, परपौत्र संजय व राजीव गांधी के अस्थि कलश, इसकी छांव में रखे गए थे। आज भी इस घर के सभी कमरे अपने में छुपे इतिहास को बोलते है।



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