लखनऊ। उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के फरेंदा तहसील अंतर्गत भारी-बैसी गांव में ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ की स्थापना को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है। गोरखपुर वन प्रभाग में 05 हेक्टेयर में यह केन्द्र ‘किंग वल्चर’ स्थापित होगा। हरियाणा के पिंजौर में स्थापित ‘जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र’ की तर्ज पर स्थापित होने वाला यह संरक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश का पहला वल्चर संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र है।
प्रदेश की योगी सरकार ने इसके लिए 82 लाख रुपये का बजट स्वीकृति कर 10 दिन में प्रभागीय वन अधिकारी गोरखपुर अविनाश कुमार से विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट मांगी है। अनुमान है कि इस प्रोजेक्ट पर 04 से 05 करोड़ रुपये खर्च होना है। 20 सितंबर 2019 को गिद्ध संरक्षण पर कार्य कर रहे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रधान वैज्ञानिक डा. विभू प्रकाश ने तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक आर हेमंत कुमार, डीएफओ अविनाश कुमार के साथ भारी-वैसी गांव के निकट जंगल की 05 हेक्टेयर जमीन का निरीक्षण कर शासन को रिपोर्ट करते हुए संरक्षण केंद्र के लिए जमीन को उपयुक्त बताया था। इसके बाद प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुनील पाण्डेय ने कैम्पा योजना के अंतर्गत वित्त पोषण के लिए प्रस्ताव भेजा था।
फिलहाल यह ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी एवं वन्यजीव अनुसंधान संगठन के साथ मिल कर स्थापित होगा। शासन ने इसके लिए डीपीआर चार साल चरणबद्ध ढंग से स्थापित करने पर जोर दिया है। इस सम्बन्ध में गोरखपुर के प्रभागीय वनाधिकारी अविनाश कुमार का कहना है कि ‘गिद्धों की संख्या और उनके प्राकृतिक आवास का मूल्यांकन किया जा चुका है।
यह केंद्र ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’, लुप्तप्राय गिद्धों की आबादी को बचाने और बढ़ाने की दिशा में काम करेगा। इस केंद्र में लैब, बाडा, चिकित्सकों का आवासीय काम्पलेक्स समेत अन्य सुविधाएं रहेंगी। केंद्र का संचालन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के जरिए किया जाएगा।’
बता दें कि भारतीय महाद्वीप पर गिद्धों की 09 प्रजातियां पाई जाती हैं। 03 प्रजातियां व्हाइट बैक्ड (जिप्स बेंगेंसिस), लॉन्ग-बिल्ड (जिप्स इंडिकस) और सिलेंडर-बिल्ड (जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस) भारतीय वन्य जीव अधिनियम की अनुसूची (1) के तहत संरक्षित हैं। लेकिन इस केंद्र में किंग वल्चर पर ही सर्वाधिक जोर दिया जाएगा।