सर्व सेवा संघ: आइए, एक ऐतिहासिक विरासत को दफन होते देखिए!


1960 में विनोबा भावे जब बनारस आए थे, तो राष्ट्रीय स्वयं संघ के लोगों ने अभिभूत होकर चमत्कृत भाव से विनोबा जी का स्वागत किया था और अपने यहां कार्यक्रम में बुलाया भी था। ऐतिहासिक भाषण सुना। उनकी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीता प्रवचन’ और ‘कार्यकर्ता पाथेय’ सर्व सेवा संघ प्रकाशन से मंगवा कर अपने राष्ट्रीय प्रचारकों को पढ़ने को दिया था।



वाराणसी। विनोबा भावे ने भूदान यात्रा के द्वारा दुनिया में एक नया अनोखा इतिहास रचा। 14 साल तक बनवासी राम की तरह पूरे भारत में गांव-गांव घूमकर करीब 50 लाख एकड़ जमीन दान में लिया और गरीबों को दे दिया।

उसी विनोबा भावे ने 1960 में भूदान यात्रा के दौरान वाराणसी में गंगा किनारे राजघाट में 13 एकड़ जमीन रेलवे से खरीद कर साधना केंद्र बनाया था। उद्देश्य था – समाज निर्माण एवं राष्ट्र निर्माण के लिए युवा रचनाकारों को तैयार करना तथा साहित्य का प्रकाशन, जिससे लोगों का दिल-दिमाग बदले।

1960 में विनोबा भावे जब बनारस आए थे, तो राष्ट्रीय स्वयं संघ के लोगों ने अभिभूत होकर चमत्कृत भाव से विनोबा जी का स्वागत किया था और अपने यहां कार्यक्रम में बुलाया भी था। ऐतिहासिक भाषण सुना। उनकी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीता प्रवचन’ और ‘कार्यकर्ता पाथेय’ सर्व सेवा संघ प्रकाशन से मंगवा कर अपने राष्ट्रीय प्रचारकों को पढ़ने को दिया था।

जयप्रकाश नारायण ने इसी स्थान पर गांधियन इंस्टीट्यूट आफ स्टडीज (गांधी विद्या संस्थान) बनाया था। बड़े-बड़े सपने देखे और दिखाए थे। 1974 के आंदोलन के समय आर एस एस और विपक्ष के तमाम लोग आते और जेपी से सलाह व आशीर्वाद लेकर जाते। 74 आंदोलन का केंद्र था सर्व सेवा संघ, राजघाट। आज विनोवा-जेपी की ऐतिहासिक विरासत को मिटाने पर केंद्र सरकार अमादा है और आनंदित भी- एक इतिहास को मिटाने के गौरव(?) बोध से।

विपक्ष में बैठे तमाम सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री और नीतीश कुमार, लालू यादव, शिवानंद तिवारी या फिर गोविंदाचार्य, राम बहादुर राय, राजनाथ सिंह, वीरेंद्र मस्त आदि सैकड़ों की संख्या में जेपी आंदोलन के लोग या तो मौन है या लाचार।

तमाम बड़े-बड़े संपादक – पत्रकार श्रवण गर्ग, रवीश कुमार, अजीत अंजुम, पुण्य प्रसून बाजपेई, अम्बरीश कुमार, आशुतोष और बीबीसी जैसे विश्व प्रसिद्ध चैनल कल इन गिरी हुई इमारतों के मलबे को दिखाएंगे और अपना विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे, इन इमारतों का इतिहास भी बताएंगे। हो सकता है संसद में कुछ लोग बोलेंगे भी।

कल इन ऐतिहासिक इमारतों के जमींदोज होने पर कुछ रोएंगे और कुछ खुशी मनाएंगे। हो सकता है कुछ मिठाइयां भी बांटे, एक इतिहास को मिटाने या मिट जाने की खुशी में।

जो भी हो, कल कुछ लोग आएंगे इस विरासत को बचाने के लिए, कुछ फोटो खींचने और समाचार लिखने के लिए, कुछ सड़क के किनारे खड़े होकर देखने। कुछ लोग अपने घरों में बैठकर अखबारों में छपी खबरों को पढेगे और कुछ लोग टीवी चैनलों पर बहस करेंगे। जो भी हो शायद कल यह इतिहास मिट जाएगा। मिटाने वालों और मौन लोगों के लिए ‘सबको सन्मति दे भगवान’।



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