प्रयागराज। आपात काल वह समय है जब नागरिकों को दिए अधिकार और संवैधानिक सुरक्षा छीन ली जाती है। एक आपातकाल हमने 1975 में देखा, जिसमें ये सब हमने देखा था। आज का जो समय है, वह औपचारिक रूप से आपातकाल का नहीं है, ये अघोषित आपातकाल है, इसलिए ये अधिक खतरनाक भी है, क्योंकि अघोषित होने के नाते इसे चुनौती देना मुश्किल है। पहले आपातकाल में हमसे बहुत सारी संवैधानिक आजादी छीन ली गई थी, लेकिन हमारे पास नफरत नहीं थी, अब स्थिति अधिक गंभीर है क्योंकि आज आजादी भी छीन ली गई है, और हमें नफरत दे दी गई है। उपरोक्त बातें हर्ष मंदर ने स्वराज विद्यापीठ में हुए पीयूसीएल द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कही।
आज आपातकाल दिवस पर पीयूसीएल ने “आपातकाल तब और अब” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया था, जिसमें अमन बिरादरी के संस्थापक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
हर्ष मंदर ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज जो जर्मनी के फासीवाद जैसी जो स्थिति हमारे देश में बन गई है, उससे पूरी पीढ़ी पर असर हुआ है। इससे लड़ना जरूरी है लेकिन यह चुनावी लड़ाई नहीं है, यह नागरिकता की लड़ाई है, यह नागरिक समाज की लड़ाई है। हम अपने आने वाली पीढ़ी का भविष्य लोकतंत्र में देखते हैं। लेकिन हम पिछले 20-30 सालों में यहां कैसे पहुंचे हैं, इस पर भी विचार करना जरूरी है। लोकतंत्र के सभी संस्थान में फासीवादी विचार प्रवेश कर चुका है, इसे खत्म करने के लिए हमे एक पीढ़ी तक लड़ना है।
कार्यक्रम की शुरुआत में स्वराज विद्यापीठ के कृष्ण स्वरूप आनंदी ने आपातकाल में बनवारी लाल शर्मा जी के अनुभवों को साझा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एन आर फारूकी ने आपातकाल को याद करते हुए कहा जेपी की तरह का नेता अब नहीं है जो आज की परिस्थितियों में लोगों को जोड़कर नेतृत्व दे सके। आपातकाल के समय मीडिया ने भी एक बौद्धिक नेतृत्व प्रदान किया, लेकिन आज का मीडिया उल्टी भूमिका में है।