वाराणसी राजघाट से दिल्ली राजघाट पदयात्रा : भारत की आज़ादी गांधी के बलिदान और दर्शन का परिणाम है

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उत्तर प्रदेश Updated On :

‘एक कदम गांधी के साथ’ पदयात्रा अपने 34वें दिन सुबह 7 बजे प्रताप पैलेस, बकेवर से रवाना हुई। आगे चलकर औरैया रोड, बकेवर (इटावा) पर पदयात्रियों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया तथा नाश्ते की व्यवस्था की गई। स्थानीय व्यवस्थापकों पीयूष गुप्ता एवं अमित यादव को पदयात्रा दल की ओर से गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ भेंटस्वरूप प्रदान की गई।

बकेवर चौक पर नंदलाल मास्टर ने पदयात्रा के उद्देश्य की जानकारी दी तथा एक प्रेरक गीत “यह सन्नाटा छोड़ के आ” प्रस्तुत किया। जिस जगह पर गीत प्रस्तुत किया गया उसका नाम ‘गांधी की चक्की’ है। इसके संचालक स्वतंत्रता सेनानी परिवार से है।

इसके बाद पदयात्रा नारों के साथ आगे बढ़ी। अगला दो पड़ाव राधे-राधे रेस्टोरेंट और विनायक होटल रहे, जहां पदयात्रियों के लिए चाय एवं जलपान की व्यवस्था की गई थी। दोनों स्थानों पर स्थानीय आयोजकों द्वारा यात्रियों का जोरदार स्वागत किया गया। इस अवसर पर पदयात्रा टीम ने स्वागतकर्ताओं को ‘सर्वोदय जगत’ पत्रिका, गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ तथा संघ द्वारा प्रकाशित नवीन पुस्तक “आरोपों की आंधी में अडिग गांधी” भेंट की।

दोपहर का पड़ाव दीप महल मैरिज हॉल में रहा, जहां इटावा कांग्रेस जिला अध्यक्ष आशुतोष दीक्षित, उपाध्यक्ष कृपा राम राजपूत एवं प्रेरणा प्रीत के नेतृत्व में पदयात्रा टीम का स्वागत किया गया।

जिला अध्यक्ष आशुतोष दीक्षित ने कहा -“आधुनिक भारत की आज़ादी गांधीजी के बलिदान और दर्शन का परिणाम है। हमारा संविधान भी गांधी विचारों पर आधारित है। मैंने अपने पिता के माध्यम से गांधीवाद को देखा और जिया है। वे क्लास-1 अधिकारी होते हुए भी सदैव खादी पहनते थे और गांधी टोपी लगाते थे। उनके समाधि स्थल पर ‘राम-राम’ की जगह ‘गांधी गांधी’ लिखा गया था। मैं स्वयं भी गांधीजी से अत्यंत प्रभावित हूँ और इस यात्रा का पूर्ण समर्थन करता हूँ। जब से यात्रा हमारे जिले में आई है, मैंने हर संभव सहयोग देने का प्रयास किया है। आप सभी पदयात्री मेरे लिए गांधी के प्रतीक हैं, इसलिए मैं आप सबको प्रणाम करता हूँ।”

दीप महल में भोजन और विश्राम के बाद पदयात्रा आगे बढ़ी। हर्षवर्धन होटल पर पदयात्रियों के लिए चाय एवं जलपान की व्यवस्था की गई थी।

शाम को पदयात्रा इटावा शहर में पहुंची। शाम 6 बजे समाजसेवी सर्वोदयी लल्लू दद्दा की पुण्यतिथि के अवसर पर एक छोटी सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि लल्लू दद्दा का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को इलाहाबाद में हुआ था। अध्ययन पूर्ण करने के बाद उन्होंने समाजसेवा को जीवन का उद्देश्य बनाया। सन् 1960 में वे इटावा गांधी आश्रम के ट्रस्टी बने। उस समय चंबल क्षेत्र में डकैतों का आतंक था, परंतु लल्लू दद्दा ने अपने संयम और संवाद के बल पर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया। इस कार्य में विनोबा भावे भी उनके साथ जुड़े। उन्होंने अनाथ बच्चों की परवरिश और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके पश्चात् पदयात्रियों ने लल्लू दद्दा के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

स्थानीय आयोजक: कुमार गुप्ता, पीयूष यादव, पूरन सिंह यादव, सनी गुप्ता, आदिशुल खान, आरिफ, अंसार, रामबिलास, अमोल सिंह, विजय कुमार।

यात्रा में शामिल प्रमुख प्रतिभागी: चंदन पाल, अरविंद कुशवाहा, नंदलाल मास्टर, अरविंद अंजुम, सोमनाथ रोड़े, सतीश मराठा, गौरांग महापात्रा, ध्रुव भाई, विद्याधर मास्टर, श्यामधर तिवारी, शेख हुसैन, जगदीश कुमार, विकास, मानिकचंद, अनोखेलाल, जोखन यादव, सरिता बहन, सिस्टर फ्लोरीन, अलीभा, अंतर्यामी बराल, सौरभ, गौरव, निधि, प्रवीण, दीक्षा, बृजेश, टैन, सचिन, हेतवी, देवेंद्र भाई, अखिलेश यादव, भागीरथी, अमर सिंह, राजकुमार द्विवेदी, राधेश्याम, दिनेश कुमार, दलपत सिंह धुर्वे आदि।



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