इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध के बीच, अमेरिकी वायुसेना ने एयर रिफ्यूलिंग टैंकर विमानों की अब तक की सबसे बड़ी तैनाती शुरू कर दी है। ये विमान अमेरिका के सैन्य ठिकानों से अटलांटिक महासागर पार कर यूरोप की ओर भेजे जा रहे हैं।
फ्लाइट ट्रैकिंग डेटा के मुताबिक, रविवार देर रात तक कम से कम 24 KC-135 और KC-46 टैंकर विमान पूर्व दिशा में भेजे जा चुके हैं, और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) ने अभी तक इस तैनाती के मकसद को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, नाटो के सहयोगी देशों के बीच ऐसी स्थिति में जरूरी लॉजिस्टिक और सपोर्ट विमानों की त्वरित तैनाती के लिए आपसी समन्वय की व्यवस्था पहले से बनी हुई है। इससे पहले भी सीरिया और इराक में हुए संघर्षों के दौरान अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के लिए इसी तरह के टैंकर विमानों की मदद से हवाई अभियान को समर्थन दिया था।
टैंकर विमानों की बड़ी संख्या में पूर्व की ओर तैनाती यह साफ संकेत देती है कि अमेरिकी सेना लंबे समय तक चलने वाले अभियान की तैयारी में जुटी है, खासकर अगर मध्य पूर्व का तनाव और बढ़ता है या नाटो सहयोग की जरूरत पड़ती है। यह कहना अभी मुश्किल है कि यह तैनाती केवल एहतियातन की जा रही है या इसके पीछे कोई बड़ा सैन्य ऑपरेशन छुपा है।
इन टैंकर विमानों का इस्तेमाल ऐसे लड़ाकू विमानों को हवा में ईंधन भरने के लिए किया जाता है, जो अपने देश से काफी दूर जाकर हमलों में हिस्सा लेते हैं, जैसे कि इस समय ईरान पर हमले कर रहे इजरायली फाइटर जेट्स, जिन्हें लंबे सफर के दौरान हवा में ही कई बार ईंधन भरने की जरूरत होती है।
ईरान और इजरायल के बीच जारी टकराव के बीच यह बड़ी तैनाती देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच मिसाइल और ड्रोन हमले जारी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजरायली वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर लंबी दूरी से सटीक हमले किए हैं। ऐसे ऑपरेशनों के लिए विमान को हवा में ही ईंधन भरने की जरूरत होती है, जिससे उनकी रेंज बढ़ जाती है।