मेलबर्न। धार्मिक भेदभाव विधेयक पर इस सप्ताह संसद में बहस होनी है। इसे पारित होने की प्रक्रिया में काफी समय लग गया है – प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन ने पिछले संघीय चुनाव से पहले, पहली बार एक धार्मिक भेदभाव बिल का वादा किया था और इस बात को तीन बरस बीत चुके हैं।
मुख्य रूप से बिल में क्या होना चाहिए, इस बारे में संसद और समुदाय दोनों में भारी असहमति के कारण देरी हो रही है। इस बात को लेकर व्यापक सहमति है कि किसी व्यक्ति के साथ उनकी आस्था या आस्था की कमी के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, किस हद तक धर्म को दूसरों के खिलाफ भेदभाव करने का अधिकार होना चाहिए, यह काफी विवादास्पद बना हुआ है। सांसदों के कैनबरा लौटने पर, बिल का समर्थन कौन करेगा? इसका विरोध कौन करेगा? क्या हो सकता है?
बिल के बारे में दो सवाल
मॉरिसन द्वारा दिसंबर 2021 में संसद में विधेयक पेश करने के बाद, इसे कानूनी मामलों और मानवाधिकार समितियों को भेजा गया था।
शुक्रवार को, दोनों ने विधेयक को पारित करने की सिफारिश की – लेकिन कई बदलावों के बाद। दोनों समितियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि विधेयक के कुछ तत्वों की संवैधानिक वैधता को लेकर गंभीर संदेह हैं।
दोनों समितियों की अध्यक्षता सरकारी सांसदों के पास है। लेकिन समिति का कोई भी सदस्य मुख्य निष्कर्षों को लेकर अतिरिक्त टिप्पणी या असहमति व्यक्त कर सकता है।
राज्य सुरक्षा पर भारी
एतराज के कुछ खास मुद्दों में से एक वह है जो अपनी धार्मिक स्थिति पर लिखित नीति वाले स्कूलों को धार्मिक आधार पर स्टाफ के सदस्यों के साथ भेदभाव करने की इजाजत देता है।
यह प्रावधान भेदभाव के खिलाफ मौजूदा संघीय, राज्य और क्षेत्रीय सुरक्षा को भी दरकिनार करता है और स्कूलों को एलजीबीटीआईक्यू+ शिक्षकों को बर्खास्त करने की अनुमति देता है।
अटॉर्नी-जनरल माइकलिया कैश के कार्यालय ने स्वीकार किया है कि समलैंगिक कर्मचारियों के खिलाफ भेदभाव की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते यह धार्मिक विचारों की आड़ में किया गया हो।
संसद की मानवाधिकार समिति ने कहा कि यह प्रावधान ‘‘स्कूल के धार्मिक लोकाचार को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है’’ भले ही यह ‘‘धर्म की स्वतंत्रता और समानता और दूसरों के लिए गैर-भेदभाव के अधिकार को सीमित कर सकता है’’।
आस्था की टिप्पणियां
एक और महत्वपूर्ण बिंदु विश्वास से जुड़ी टिप्पणियों से संबंधित है। यह प्रावधान ‘‘विश्वास से जुड़ी टिप्प्णियों’’ को कानूनी परिणामों से बचाने के मामले में हर संघीय, राज्य और क्षेत्र के भेदभाव-विरोधी कानून को दरकिनार करता है, अगर वह वास्तव में धार्मिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं।
उदाहरण के लिए, विश्वास के बयान में एक पुरुष बॉस शामिल हो सकता है जो एक महिला कर्मचारी से कह रहा है, ‘‘महिलाओं को नेतृत्व की स्थिति में नहीं होना चाहिए’’ या एक डॉक्टर एक मरीज से कहता है, ‘‘विकलांगता पाप की सजा है’’।
संसद की मानवाधिकार समिति ने कहा कि यह खंड ‘‘मुख्य रूप से, किसी खास आस्था वाले लोगों को यह आश्वासन देने के लिए काम करता है कि वे धार्मिक विश्वास से जुड़े विचार व्यक्त कर सकते हैं’’।
लेकिन कानूनी मामलों की समिति की रिपोर्ट पर अतिरिक्त टिप्पणियों में, एनएसडब्ल्यू लिबरल सीनेटर एंड्रयू ब्रैग ने चेतावनी दी: समिति को इस बात के पुख्ता सबूत दिए गए हैं कि विश्वास का बयान अव्यवहारिक और अवांछनीय है। कई नियोक्ता, धार्मिक संगठन, भेदभाव विरोधी समूह और कानूनी विशेषज्ञ इसके खिलाफ हैं।
ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग भी चिंतित है कि विश्वास प्रावधान के इस बयान से कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटना अधिक कठिन हो सकता है।
स्कूल में समलैंगिक और ट्रांस बच्चों के लिए कोई सुरक्षा नहीं
गुरुवार को, मॉरिसन ने वादा किया कि वह एलजीबीटीआईक्यू+ छात्रों को निष्कासित करने के धार्मिक स्कूलों के अधिकार को छीनने के लिए लिंग भेदभाव अधिनियम में संशोधन करेंगे।
इस वादे को रूढ़िवादी समूहों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा: फैमिलीवॉइस ऑस्ट्रेलिया ने इसे ‘‘विश्वासघात’’ कहा। क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी के अभियान निदेशक लायल शेल्टन ने भी इसका विरोध किया।
लेकिन अगर मॉरिसन निष्कासन के इस वादे को पूरा करते हैं, तो भी यह धार्मिक स्कूलों को समलैंगिक और ट्रांस बच्चों के साथ भेदभाव करने से नहीं रोकेगा, जब वे स्कूल में होते हैं, बशर्ते कि उन्हें निष्कासित न किया जाए।
धार्मिक समूह बंटे हुए हैं
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धार्मिक समूह आपस में सहमत नहीं हैं। ऑस्ट्रेलियाई कैथोलिक बिशप सम्मेलन और सिडनी एंग्लिकन डायोसीस जैसे रूढ़िवादी धार्मिक समूह बिल का समर्थन करते हैं।
लेकिन अन्य धार्मिक समूह असहमत हैं। व्यापक एंग्लिकन चर्च मौजूदा स्वरूप में बिल का विरोध करता है। इसके लोक मामलों के आयोग का कहना है कि बिल ‘‘धर्म के नाम पर नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार के लिए अनावश्यक गुंजाइश और प्रोत्साहन’’ देता है।
कैथोलिक कल्याण एजेंसियां भी कुछ ऐसा ही महसूस करती हैं। सेंट विंसेंट डी पॉल सोसाइटी का कहना है कि ‘‘लोग आहत होंगे और उनके पास कोई कानूनी उपाय नहीं होगा’’, जबकि सेक्रेड हार्ट मिशन का कहना है कि बिल ‘‘लोगों को आवश्यक सेवाओं तक पहुंचने से दूर कर देगा’’।