न्यूयॉर्क /अंकारा। वैसे तो पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के खिलाफ पूरी दुनिया में नफरत बढ़ी है, लेकिन गत कुछ सालों में मुसलमानों के खिलाफ इस नफरत ने महामारी का रूप ले लिया है। यह बात किसी और ने नहीं कही है। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एंटोनियो गुटारेस ने कही है। गुटारेस ने कहा है कि मुसलमानों को शक की नजर से देखने, उनसे नफरत करने की प्रवृति और उनके खिलाफ बढ़ती घृणा ने पूरी दुनिया में महामारी का रूप ले लिया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने दुनिया में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नफरत पर एक बहुत बड़ा बयान दिया है। महासचिव ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि दुनिया में मुसलानों के खिलाफ बढ़ती नफरत ने महामारी का रूप ले लिया है। उन्होंने कहा है कि दुनिया के कई सरकारें में सत्ता में बैठे कुछ लोग मुसलमानों के खिलाफ इस नफरत को आगे बढ़ा रहे हैं। कई देशों में मुसलमानों को उनकी धार्मिक मान्यताओं का पालन नहीं कर ने दिया जा रहा है। साथ ही उनको किसी देश की नागरिकता लेने के लिए भी कठिनाइयों का सामना करना करना पड़ रहा है। और उन पर तरह-तरह के झूठे आरोप लगाकर बदनाम किया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यह बात Organization of Islamic Cooperation यानी OIC द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सम्मेलन में कही। महासचिव ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि भेदभाव और नफरत का सबसे अधिक शिकार महिलाएं क्योंकि महिलाओं को सबसे पहले नफरत उनके जेंडर के आधार पर किया जा रहा है। उसके बाद फिर उनकी जाति और फिर उनकी अपनी धार्मिक विश्वासों के आधार पर नफरत का सामना करना पड़ रहा है। महासचिव ने कहा है कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत और घृणा फैलाने का यह काम सत्ता में बैठ कुछ लोगों के साथ-साथ वहीं की मीडिया भी आगे बढ़ा रहा है।
गुटारेस ने कहा है कि मुसलमानों के खिलाफ यह कट्टरता दुनिया की दूसरी पीड़ादायक समस्याओं जैसी ही है। उन्होंने कहा कि हम ऐसा विश्व स्तर पर देख रहे है कि दुनिया के कई देशों में जाति आधारित राष्ट्रवाद का जन्म हो रहा है। नव-नाजीवाद पैदा हो रहा है। और दुनिया के कई देशों के नेता अपने भाषणों में मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं। और उनके खिलाफ घृणा फैला रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि दुनिया के कई देशों में मुसलमानों के साथ-साथ यहूदियों, कुछ अल्पसंख्यक ईसाई लोगों की आबादी को भी निशाना बनाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि जैसा कि हम कभी-कभी बहु-जातीय और बहु-धार्मिक समाजों की ओर बढ़ते हैं। ऐसे में हमें सामाजिक सामंजस्य को मजबूत करने और कट्टरता से निपटने के लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक निवेश की आवश्यकता है। महासचिव ने आगे कहा कि भेदभाव हम सभी को शक्तिहीन कर देता है। यूएन महासचिव ने अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भेदभाव, नस्लवाद और ज़ेनोफ़ोबिया यानी विदेशी लोगों के प्रति फैल रही नफरत से लड़ना संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिकता में शामिल है।
उन्होंने कहा, “अन्तर-सांस्कृतिक व अन्तर-आस्था सम्वादों को बढ़ावा देकर, आपसी भाईचारे का सेतु बनाने में हमें जो मदद मिली है, उसके बावजूद, मुस्लिम विरोधी धारणाएँ ज्यों की त्यों बनी हुई हैं, बल्कि इन धारणाओं ने विभिन्न रूप धारण कर लिये हैं। ”
वहीं इस अवसर पर तुर्की के राजनयिक वोल्कान बोज़किर ने कहा कि धर्म या विश्वास के आधार पर भेदभाव का कोई भी रूप, “एक गहरा व्यक्तिगत हमला” है। उन्होंने कहा कि लोगों को अतिवाद से बचाने के लिए एक वैश्विक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सभी प्रकार की हिंसक विचारधाराओं को पराजित करना शामिल हो।
बोज़किर ने समाज में फैले भेदभावपूर्ण, बहिष्कार, और नफरत को खत्म कर दूसरों के धार्म और सांस्कृतिक के प्रति सम्मान विकसित करने के लिए युवाओं का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “युवा कल के नेता और भविष्य के निर्माणकर्ता हैं। ऐसे में यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें सिखाएं कि प्रत्येक व्यक्ति समान गरिमा और समान मानवाधिकारों का हकदार है।
बता दें कि दुनिया के लगभग 60 देश ओआईसी के सदस्य हैं। ये देश 5 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर दुनिया के कई देशों ने समाज में फैल रही जातीय हिंसा और नफरत के खिलाफ बोला है, लेकिन इसमें जो सबसे अच्छी बात कही गई है, वह यह है कि हम “युवा कल के नेता और भविष्य के निर्माणकर्ता हैं। ऐसे में यह हमारा कर्तव्य है कि हम जाति-धर्म से ऊपर उठकर हर व्यक्ति को समान गरिमा और समान अधिकार दें और भेदभाव और घृणा वाली राजनीति से ऊपर उठकर देशहित और विश्व कल्याण के लिए काम करें।