अंतरिम आदेश से पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी बहाल नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट


उच्च न्यायालय ने 27 अक्टूबर को दो पत्रकारों-उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल- के खिलाफ देहरादून में दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी थीं। इन पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश जैसे आरोपों में इस साल जुलाई में ये प्राथमिकी दर्ज की गयी थीं।


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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उत्तराखंड सरकार से कहा कि नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा दो पत्रकारों के खिलाफ निरस्त की गयी प्राथमिकी अंतरिम आदेश से बहाल नहीं की जा सकती हैं।

उच्च न्यायालय ने 27 अक्टूबर को दो पत्रकारों-उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल  के खिलाफ देहरादून में दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी थीं। इन पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश जैसे आरोपों में इस साल जुलाई में ये प्राथमिकी दर्ज की गयी थीं।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में प्राथमिकी निरस्त करते हुये इन पत्रकारों की याचिका में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

हालांकि, दो दिन बाद 29 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय ने मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश को कठोर बताते हुये इस पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही यह आदेश पारित किया गया और इससे ‘हर कोई चकित’ रह गया।

अब उत्तराखंड सरकार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर इन पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी निरस्त करने का उच्च न्यायालय का आदेश खारिज करने का अनुरोध किया है।

इन पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गौ सेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिये राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खातों में धन अंतरित किया गया था।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई करते हुये राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, ‘‘हम अंतरिम आदेश के माध्यम से प्राथमिकी बहाल नहीं कर सकते।’’

हालांकि, पीठ ने राज्य सरकार के इस कथन का संज्ञान लेते हुये ये प्राथमिकी निरस्त करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों पत्रकारों को नोटिस जारी किये।

रोहतगी का कहना था कि उच्च न्यायालय का आदेश विवेचना में टिक नहीं सकता और इसे निरस्त किया जाना चाहिए। हम उन्हें गिरफ्तार करके मामले की जांच करना चाहते हैं।

पत्रकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा पेश हुये। इस मामले को मुख्यमंत्री द्वारा पहले दायर की गयी याचिका के साथ संलग्न कर दिया गया है।

इन दोनों मामलों मे अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।

इन पत्रकारों के खिलाफ यह प्राथमिकी एक फेसबुक पोस्ट के सिलसिले में दर्ज की गई थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि 2016 में एक व्यक्ति को झारखंड के गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनवाने में मदद के लिए झारखंड से अमृतेश चौहान नाम के एक व्यक्ति ने नोटबंदी के बाद हरेंद्र सिंह रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के बैंक खाते में पैसे जमा कराए थे जो उस समय झारखंड के भाजपा प्रभारी रहे एवं वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कथित तौर पर रिश्तेदार हैं।

सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र ने देहरादून में शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि वह उन्हें ब्लैकमेल कर रहे हैं।



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