
नई दिल्ली। सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनियों के अभियंताओं के एक संगठन ने कहा कि बिजली क्षेत्र के लाखों कर्मचारी और इंजीनियर्स ने बिजली संशोधन विधेयक 2020 और केंद्र शासित प्रदेशों में वितरण कंपनियों के निजीकरण को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने सोमवार को एक बयान में कहा कि लाखों की संख्या में बिजली कर्मचारी और इंजीनियर सामाजिक दूरी का पालन करते हुए बिजली संशोधन विधेयक 2020 और केंद्र शासित प्रदेशों में वितरण कंपनियों के निजीकरण के कदम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण की योजना की घोषणा की थी। बिजली मंत्रालय ने बिजली संशोधन विधेयक का मसौदा भी 17 अप्रैल 2020 को जारी किया। एआईपीईएफ के बयान के अनुसार बिजली क्षेत्र के कर्मचारी लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग करते हुए काला बिल्ला लगाकर गेटों पर बैठकें की।
इस प्रकार की बैठकें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, असम, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर समेत सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदशों में हुई। गुप्ता ने विधेयक को किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि इससे देश में पूरे बिजली क्षेत्र के निजीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि विधेयक के पारित होने के बाद किसानों को हर महीने 5,000 से 6,000 रुपये बिजली शुल्क देने होंगे, जबकि घरेलू उपभोक्ताओं को 300 रुपये यूनिट तक की खपत के लिये प्रति यूनिट कम-से-कम 8-10 रुपये का भुगतान करना होगा।
गुप्ता ने कहा कि बिजली मंत्रालय ने ऐसे समय विधेयक को अधिसूचित किया है जब ‘लॉकडाउन’ के कारण सभी सभी प्रकार की बैठकें, बातचीत, परिचर्चा और विरोध रूका पड़ा है। सस्ती बिजली ग्राहकों का अधिकार है। किसानों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले (बीपीएल) उपभोक्ताओं पर बिजली की उच्च दर का बोझ डालना प्रतिगामी कदम है। विधेयक में 2003 के बिजली कानून में कुछ नीतिगत संशोधन औैर कायार्त्मक संशोधन का प्रस्ताव किया गया है।
बयान में कहा गया है कि बिजली समवर्ती सूची में है, लेकिन केंद्र ने इस मामले में राज्यों की परवाह नहीं की और एक की कीमत पर दूसरे को सब्सिडी (क्रास सब्सिडी), किसानों और बीपीएल ग्राहकों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) , ईसीईई (विद्युत न्यायाधिकरण) और बिजली वितरण की फ्रेंचांइजी जैसे मामलों में अपनी बातों को थोपने का प्रयास कर रहा है। इतना ही नहीं एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार ने केंद्रशासित प्रदेशें में बिजली व्यवस्था के निजीकरण का आदेश दे दिया है। बयान के अनुसार क्रास सब्सिडी वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों की तुलना में गरीब नागरिकों और किसानों को सस्ती बिजली देने के लिये है।
संगठन का कहना है कि अब समयबद्ध तरीके से क्रास सब्सिडी समाप्त करने आौर ऐसे ग्राहकों के लिये राज्य सरकारों द्वारा डीबीटी व्यवस्था लागू करने की बात कही जा रही है। इससे उनके लिये सस्ती बिजली की पहुंच का अधिकार खत्म होगा।
एआईपीईएफ ने कहा कि केंद्र राज्यों के अधिकारों को छीनने का प्रयास कर रही है जो स्वीकार्य नहीं है। ऐसे कानून लाने का कोई मतबल नहीं है जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां समाप्त हो जाए और पूरा बिजली आपूर्ति क्षेत्र निजी कंपनियों पर आश्रित हो जाए।’’