
कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते विगत 25 मार्च से पूरा देश थमा हुआ था। सब कुछ बंद था, बाजार, दफ्तर कारखाना, पार्क, स्टेडियम, धर्मस्थल, मॉल और सिनेमा हाल के साथ ही सड़क, रेल और हवाई यात्राएं सभी कुछ बंद था अब धीरे-धीरे एक-एक कर सबका खुलना शुरू हुआ है। स्कूल खुलने में अभी कुछ वक़्त लगेगा लेकिन तैयारियां इनको खोलने की भी हो रही हैं। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और ऐसे ही दूसरे शिक्षण संस्थान नए सिरे से अपना काम शुरू करें इसके लिए ख़ास इंतजाम भी करने जरूरी हैं इसलिए इनके खुलने में समय लग रहा है और यह ठीक भी है। इनमें भी छोटे बच्चों के स्कूल खोलने में अतिरिक्त सावधानियां बरतना निहायत जरूरी भी है, सरकार और स्कूल प्रबंधन की तमाम तैयारियां और चिंताएं इसी बात को लेकर हैं।
सवाल किया जा सकता है जब कोरोना महामारी का जानलेवा प्रकोप जारी है तब स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थान क्यों खोले जाने चाहिए। पढ़ाई का काम घर बैठे ऑनलाइन भी किया जा सकता है तो फिर स्कूल खोलने की जरूरत और जल्दी क्या है? परिस्थितियों के मद्देनजर यह सवाल एकदम वाजिब है पर इसके साथ ही स्कूल खोलने के पक्ष में भी बहुत सारे तार्किक जवाब हैं। इस सवाल का पहला जवाब यही है कि छोटे बच्चों का स्कूल जाना केवल किताब -कॉपी लेकर पढ़ने जाना ही नहीं होता बल्कि स्कूल में इन बच्चों को अपने सहपाठियों और शिक्षकों का जो साथ मिलता है वो अपने आप में अनूठा होता है और बच्चे के मानसिक विकास में भी इसकी बहुत जरूरत होती है। घर में बैठ कर बच्चे का विकास रुक सा जाता है इसलिए प्राचीन काल से ही छोटे बच्चों को एक निश्चित उम्र के बाद स्कूल भेजने की व्यवस्था दुनिया के हर देश में की गई है।
इस पृष्ठभूमि में जब हम समाज के उन बच्चों पर नजर डालते हैं जिनको परिवार के आर्थिक अभाव के चलते स्कूल जाने का मौका नहीं मिल पाता वो बच्चे स्कूल जाने वाले बच्चों की तुलना में कम विकास कर पाते हैं। इसी तरह स्कूल जाने के पक्ष में दूसरा तर्क यह भी है कि वर्चुअल क्लासरूम कभी भी वास्तविक क्लासरूम का विकल्प नहीं बन सकता है। यह एक अस्थाई, कामचलाऊ अथवा तात्कालिक व्यवस्था तो हो सकती है लेकिन इसमें वास्तविक क्लासरूम के गुण किसी भी हालत में विकसित नहीं हो सकते इसलिए एक निश्चित अवधि के बाद छोटे बच्चों को तमाम सावधानियों और एहतियात के साथ स्कूल तो भेजना ही होगा। वैसे भी हमारे देश में तकनीकी सुविधा इनती मजबूत नहीं है कि हम अपने स्कूल जाने वाले हर बच्चे को उसके घर पर अलग से एक लैपटॉप उपलब्ध करा सकें।
अमीर बच्चे तो इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं लेकिन भारत के स्कूल जाने वाले 70 फीसदी बच्चे इस सुविधा से पूरी तरह वंचित हैं यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान भी पब्लिक स्कूल के बच्चे तो अपने घरों में रह कर ऑनलाइन पढ़ाई कर सके लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चे ऐसा कर पाने में असमर्थ थे। इस हालत में तो स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच गरीबी और अमीरी की खाई और बढ़ेगी ही। वर्चुअल क्लासरूम की एक दिक्कत यह भी है कि भारत जैसे देश के गांव में तो कभी बिजली नहीं तो कभी इन्टरनेट नहीं की समस्या भी बनी रहती है। भारत के गांव में तो यह समस्या है ही शहरों की भी हालत अच्छी नहीं कही जा सकती। इन हालात में देर- सबेर स्कूल तो खोलने ही पड़ेंगे लेकिन इससे पहले यह जान लेना जरूरी होगा कि बच्चों को स्कूल भेजने के लिए हमारी तैयारियां कैसी हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्कूल भेजते ही बच्चे महामारी का शिकार हो जाएं।
लम्बे समय तक लॉकडाउन के साए में रहने के बाद सरकार और स्कूल प्रबंधन को विशेष तैयारियों की जरूरत करनी पड़ेगी। इस बाबत स्कूल प्रबंधन अभिभावकों से बातचीत भी कर रहे हैं। अभिभावकों का बहुमत अभी तक बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं है। उधर, सरकार और स्कूल प्रबंधन भी नहीं चाहते कि शिक्षण संस्थाओं को अनलॉक करने का फैसला जल्दी में लिया जाए। स्कूल खोलने से पहले किस तरह की तैयारी और किस तरह के नए सुरक्षात्मक उपाय किये जाने चाहिए इसके लिए सरकार और स्कूल प्रबंधन दुनिया के अनेक देशों में इस बाबत लिए गए एहतियाती उपायों पर भी नजर रखे हुए है। चीन, इटली, स्पेन, फ़्रांस, उत्तरी कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और अमेरिका समेत कई देशों ने दो -तीन महीने के लॉकडाउन के बाद या तो अपने स्कूल स्कूल नए सिरे से खोल दिए हैं या फिर जल्दी ही इनके स्कूल खुलने वाले हैं।
स्कूल खोलने को लेकर इन देशों की तैयारियां भी बहुत जबरदस्त हैं। लगता नहीं कि भारत जैसे तीसरी दुनिया के देश ऐसी तैयारी कर पायेंगे और अगर ऐसा कुछ करते भी हैं तो उसका लाभ देश के सभी बच्चों को मिल पाना संभव ही नहीं होगा। एक नजर विश्व के कई देशों में स्कूलों को अनलॉक करने के लिए किये गए उपायों पर जर्मनी में लॉकडाउन के बाद स्कूलों को फिर से खोले जाने को लेकर नई व्यवस्था अपनाई है। इसके तहत बच्चों को अलग-अलग समूहों में बांटा गया है ताकि स्कूल और क्लास में सोशल दिस्टेंसिंग के सिद्धांत का पालन हो सके। इसके साथ ही पूरे स्कूल का लंच ब्रेक भी एक साथ नहीं होगा। हर स्कूल को हाइजीन प्लान तैयार करना होगा स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों वाले बच्चों को स्कूल आने के लिए विवश नहीं किया जा सकेगा।
बच्चों को सार्वजनिक परिवहन के बजाय साइकिल चला कर स्कूल आने को कहा गया है। चीन के कई स्कूलों में बच्चों को एक अलग तरह टोपी पहने हुए देखा गया है जिसके दोनों तरफ तीन- तीन फुट के डंडे लगे हैं ताकि सोशल दिस्टेंसिंग के फार्मूले का खुद ही पालन हो सके। इस ख़ास तरह की टोपी के साथ स्कूल आने वाले बच्चों को फेस शील्ड और मास्क भी जरूरी पहनना होगा। ऑस्ट्रेलिया में केवल पांचवीं कक्षा तक के बच्चे स्कूल आयेंगे इससे बड़ी कक्षाओं के बच्चे घर से ही ऑनलाइन पढ़ाई करेंगे। उत्तर कोरिया में स्कूल आने वाले बच्चों को सेनेटाइज करने के लिए स्कूल में सेनेटाईजर की बड़ी-बड़ी बाल्टियों का इंतजाम किया गया है। अमेरिका में स्कूल में प्रवेश से पहले बच्चों की थर्मल स्केनिंग की जायेगी। यही व्यवस्था चीन के स्कूलों में भी की गई है। फ़्रांस के स्कूलों में भी बच्चों को फेस शील्ड और मास्क पहनना जरूरी है।