
भारत की आजादी के 74 साल बाद भी गांधी को याद करने के पीछे के कारण उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांत हैं। उनके विचारों का मूल लक्ष्य सत्य और अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना रहा है। गांधी ने हिंसा को कभी भी जायज नहीं ठहराया और ना तो इसका कभी समर्थन किया। आज के संघर्षरत विश्व में या यूं कहें कि लगातार बढ़ रही हिंसा के बीच अहिंसा जैसा आदर्श अति आवश्यक है।
आज देश में कई युवा हैं जो महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उनके आदर्शों को अपना आदर्श मानते हैं और इन्हीं आदर्शों के साथ जीते हैं। 152वीं गांधी जयंती पर ऐसे युवा अपने विचार साझा करते हुए बताते हैं कि गांधी के विचार भूत, वर्तमान और भविष्य के विचार हैं, जो कि बेहतर समाज निर्माण में नींव की तरह है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से ‘गाँधीवादी सामाजिक आंदोलन की अवधारणा की समझ – एकता परिषद का अध्ययन’ विषय पर पीएचडी कर रही प्रिया शर्मा कहती हैं, “मेरी हमेशा से इस बात में रूचि रही है कि अहिंसा कैसे विश्व को सुचारू रूप से चलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाज के निर्माण में अहिंसा नींव की भूमिका निभाता है। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार है, और परिवार सिर्फ और सिर्फ अहिंसा के बलबूते ही चलता है। अहिंसा समाज की गहराई में है लेकिन हम इसे नजरअंदाज कर रहे होते हैं। हम आज समाज के इसी नींव अहिंसा के मूल्य को समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं जिसे हम सबको समझना चाहिए था।”
गांधी के सत्य के सिद्धांत के बारे में वह कहती हैं, “गांधीजी ने भी कहा है ‘हम पूर्ण सत्य की ओर बढ़ सकते हैं लेकिन पूर्ण सत्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते।’ जहां आप यह स्वीकार कर लेते हैं कि मेरा सत्य आधा सत्य है, यही चीज आपको अहिंसा की ओर ले जाती है। एक दूसरे के सत्य के साथ चलना मतलब कहीं ना कहीं पूर्ण सत्य की ओर बढ़ना है। गांधी के सत्य और अहिंसा को लेकर आज हमें संगठित होकर कार्य करने की जरूरत है। गांधीवादी विचारक राजगोपाल पी. व्ही. की अगुवाई में जन संगठन एकता परिषद यही कार्य कर रहा है।”
गौरव जायसवाल मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, “शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए गांधीवादी विचारों से मेरा व्यावहारिक परिचय हुआ। गांधीवादी शिक्षाविद गिजुभाई बधेका को पढने के बाद मैंने उनके दिवास्वप्न विचारों के इर्द-गिर्द कार्य करने की कोशिश की। उसके बाद मैंने नई तालीम पर अपनी समझ विकसित की। जिस तरीके से मैं काम कर रहा था और सीख रहा था वह मुझे गाँधीवादी विचारों के नजदीक लगा।”
गांधीजी के बारे में निरंतर फैलाई जानी वाली झूठ को लेकर गौरव कहते हैं, “गांधी को लेकर आज या पहले भी जो झूठ रहे हैं, वे प्रायोजित झूठ थे और हैं। जैसे अंधेरे का एक ही उपाय होता है प्रकाश, ठीक उसी प्रकार झूठ के खिलाफ सत्य से ही मुकाबला किया जा सकता है। आज हमारी जिम्मेदारी है कि हम युवाओं में गांधी के प्रति जिज्ञासा पैदा करें। उसके बाद जिज्ञासु युवा सत्य स्वयं ढूंढ़़ लेंगे। गांधीजी का व्यक्तित्व जिस तरह का था, उसके कारण युवाओं में उनके प्रति जिज्ञासा पैदा करना आसान है। यह जिज्ञासा कला, गीत-संगीत, फिल्म और विभिन्न सोशल मिडिया के मंचों से आसानी से पैदा की जा सकती है। और अगर हमने यह काम कर लिया तो आगे का काम युवा खुद कर लेंगे।”
मध्यप्रदेश के हरदा से रितेश गोहिया कहते हैं, “शांति और अहिंसा का मूल भाव हमारे संविधान में है। संविधान के चार मूल्य न्याय, बंधुता, समता और स्वतंत्रता में चारों मूल्य महत्वपूर्ण हैं, लेकिन न्याय सबसे महत्वपूर्ण मूल्य है। संविधान में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय की बात कही गई है, यह तीनों न्याय सबको मिले यह भी सुनिश्चित की गई है। गांधी जी ने इस न्याय को शुरू से ही स्थापित करने की कोशिश की। शान्ति और न्याय के बिना दुनिया में कुछ नहीं हो सकता, यह सिर्फ एक बात नहीं, बल्कि तथ्य है। इस तथ्य को पिछले 200 सालों में दुनिया ने देखा है, पिछले दो विश्व युद्धों की बात करें, तो उसके बाद जो स्थापित करने की कोशिश की गई, वह न्याय और शान्ति थी। न्याय और शान्ति की बात नहीं करने का सीधा मतलब है हम वर्चस्व की ओर हैं।”
रितेश आगे कहते हैं, “आज देश में ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राजनीतिक और समाजिक रूप से न्याय और शान्ति स्थापित करने का काम कर सकें। न्याय और शान्ति महज एक बातचीत नहीं है कि बड़ी आसानी से स्थापित हो जाएगी, यह बहुत प्रक्रियाओं के बाद स्थापित होती है। हम किसी भी धार्मिक ग्रंथों को उठाकर देखें तो हर ग्रन्थ में न्याय और शान्ति को महत्वपूर्णता से दर्शाया गया है। लेकिन न्याय और शान्ति को गांधी ने अभियान के रूप में लिया, इससे पहले न्याय और शान्ति बस एक विचार के रूप में था। आज युवाओं के बीच गांधी को जानने, मानने और उनके व्यक्तित्व को जीने की जरूरत है।”
आईआईटी इंदौर से पीएचडी कर रही जूही सिंह वर्मा के अनुसार, “कोई भी मनुष्य पूर्णता लिए संसार में नहीं आता है। गांधी जिस समयकाल में थे उस समय की परिस्थिति अलग थी और आज की परिस्थिति अलग है। गांधी की कोई भी बात आज के संदर्भ में लाकर आप बोल सकते हैं कि यह गलत है या सही है। जब हम उनकी कार्यप्रणाली को गुणवत्ता के नजरिए से देखते हैं, तो हम पाते हैं कि जो भी तरीका उन्होंने अपनाया आज हर सामाजिक आंदोलनों में वही तरीका अपनाया जा रहा है। उनके सत्य, अहिंसा, न्याय आदि जैसे सिद्धांतों की प्रासंगिकता भारत से लेकर दक्षिण अफ्रीका, अरब देशों में, या विश्व के अन्य देशों में होने वाले सामाजिक आंदोलनों में हर जगह है।”
जूही आगे कहती हैं, “गांधी को अगर हम एक इंसान तक सीमित रखेंगे, तो उनमें अच्छाइयाँ और बुराइयाँ रहेंगी, लेकिन जब उन्हें हम एक गुण के रूप में देखना शुरू करेंगे तो फिर उनका सत्य हमारे सामने सत्य के रूप में ही है। क्योंकि जो सत्य होता है उसे हमें स्थापित करने की जरूरत नहीं होती है। और सत्य को किसी को समझाने की भी जरूरत नहीं होती है, चाहें आप लाख झूठ फैला लें।”
आज विश्व सहित भारत में कई ऐसे जन संगठन हैं जो गांधी के विचारों से युवाओं को परिचित करा रहे हैं और समाज में न्याय और शांति स्थापित करने की संकल्पना लिए कार्य कर रहे हैं। इसी कड़ी में 2019 में जब पुरी दुनिया में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही थी, तब जन संगठनों के साथ-साथ कई सरकारों ने भी गांधीवादी विचारों को बढ़ावा देने की बात की।
गांधीवादी जन संगठन एकता परिषद के संस्थापक विख्यात गांधीवादी राजगोपाल पी.व्ही. का कहना है, “आज के युवा गांधी और उनके विचारों की ओर आकर्षित भी हो रहे हैं और उनके विचारों को अपने जीवन तथा कर्म में उतार रहे हैं। हमने विश्व शांति एवं न्याय के लिए जब ‘‘जय जगत 2020’’ यात्रा शुरू की थी, तब पूरी दुनिया से उसमें युवाओं की भागीदारी ज्यादा थी। वे युवा न केवल गांवों में रहने वाले आदिवासी एवं वंचित समुदाय से आते हैं, बल्कि नगरों एवं महानगरों में रहने वाले उच्च शिक्षित युवा भी हैं। वे पिछले 21 सितंबर से विश्व शांति दिवस से वैश्विक स्तर पर आयोजित न्याय और शांति को लेकर स्थानीय पदयात्रा में भी भागीदार हैं।”
गांधी के विचारों को अपनाकर समाज में अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे इन युवाओं के नजरिये को देखें, तो यह लगता है कि गांधी और उनके विचार कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकते और जब भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय और शांति की बात होगी, हमें गांधी के विचारों को अपनाना होगा।