भारत-चीन सीमा विवाद: राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर प्रश्न


क्या 60 साल में कब्ज़ा हुए 43000 वर्ग किमी में मई-जून में कब्ज़ा हुआ कोई इलाका भी शामिल है? पीएमओ की इस सफाई ने दरअसल उक्त आशंकाओं का समाधान करने की बजाय उन्हें और गहरा कर दिया है! क्या प्रधानमंत्री सामने आकर अपने बयान और उस पर अपने कार्यालय की सफाई से राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर प्रश्न पर जो महा संदेह पैदा हुआ है, उसे स्पष्ट करेंगे?



सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के बयान पर पीएमओ की सफाई ने जितना सुलझाया उससे ज्यादा उलझा दिया। अब उस सफाई पर सफाई की जरूरत है! उस दिन प्रधानमंत्री ने कहा था,”हमारी जमीन पर न कोई घुसा, न घुसा हुआ है।”

अपनी सफाई में पीएमओ ने कहा है कि,”पीएम की उक्त टिप्पणी का फोकस15 जून की गलवान की घटना थी। पीएम का यह कहना कि एलएसी के हमारी तरफ चीनी उपस्थिति नहीं थी, यह उस दिन की परिस्थिति के बारे में है, जो हमारे बहादुर जवानों के शौर्य की वजह से सम्भव हुई थी। हमारे जवानों के बलिदान ने चीनी पक्ष द्वारा उस दिन, एलएसी के इस बिंदु पर स्ट्रक्चर खड़ा करने की कोशिश को विफल कर दिया तथा सीमा के अतिक्रमण के प्रयास को नाकाम कर दिया।

“पीएमओ के अनुसार निचोड़ यह है कि “वहां उस दिन जिन लोगों ने हमारी सीमा के अतिक्रमण का प्रयास किया उन्हें हमारे बहादुर धरती पुत्रों ने सही सबक सिखाया।”

और अंत में पीएमओ की सफाई कहती है,”60 साल में जो हमारी 43000 वर्ग किमी जमीन अवैध कब्जे में गंवा दी गयी है, उसकी परिस्थितियों से देश परिचित है।”

तो क्या पीएमओ यह कहना चाहता है कि प्रधानमंत्री का “न घुसा, न घुसा हुआ है” वाला बयान केवल और केवल 15 जून को गलवान घाटी के उस खास बिंदु के बारे में है?

तो 15 जून के पूर्व की तथा गवलान घाटी के उस खास प्वॉइंट के इतर क्या स्थिति है, इस पर प्रधानमंत्री चुप रहे, उस पर उनका बयान लागू नहीं होता?

तो क्या 15 जून के महीनों पहले से उस पूरे इलाके में चीनी घुसपैठ की जो बात सेना के तमाम पूर्व अधिकारी, डिफेंस एक्सपर्ट्स कर रहे हैं, वह सच है?

क्या 60 साल में कब्ज़ा हुए 43000 वर्ग किमी में मई-जून में कब्ज़ा हुआ कोई इलाका भी शामिल है?

पीएमओ की इस सफाई ने दरअसल उक्त आशंकाओं का समाधान करने की बजाय उन्हें और गहरा कर दिया है! क्या प्रधानमंत्री सामने आकर अपने बयान और उस पर अपने कार्यालय की सफाई से राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर प्रश्न पर जो महा संदेह पैदा हुआ है, उसे स्पष्ट करेंगे?

इतिहास के अनुभवों की रोशनी में,वर्तमान परिस्थिति की नजाकत और तात्कालिक तथा भावी राष्ट्रीय हितों की रोशनी में प्रधानमंत्री जैसे भी इस का समाधान करना चाहते हों, जो भी उनका रोडमैप हो,उसे ईमानदारी से,पारदर्शी ढंग से देश की जनता के सामने रखना चाहिए,अर्धसत्य, सच्चाई से लुकाछिपी,शुतुरमुर्गी चाल हमारे राष्ट्रीय हितों के लिए घातक साबित हो रही है!

(लेखक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं।)