चीन पर निर्भरता : देवी-देवताओं की मूर्तियों, पटाखों, बिजली की लड़ियों और नेताओं की आदमकद मूर्तियों तक


होली-दिवाली के उपहारों, देवी-देवताओं की मूर्तियों, पटाखों, बिजली की लड़ियों और नेताओं की आदमकद मूर्तियों तक सब कुछ चीन से बना बनाया और यहां से सस्ता मिल रहा है तो इंसान कैसे महंगी चीजों की तरफ रुख करे। प्रतिबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल को रोका जा सकता है लेकिन गैर प्रतिबन्धित विदेशी वास्तु का इस्तेमाल रोक पाना संभव नहीं है।



पूरा देश भारत सरकार के इस फैसले का स्वागत करता है कि चीन ने जब सीमा पर भारत के साथ धोखेबाजी की तो भारत सरकार चीन के टिक-टॉक सरीखे कई दर्जन एप भारत में प्रतिबंधित कर दिए। सरकार का फैसला उचित है और हर देशवासी को इस फैसले का स्वागत करते हुए सरकार के इस फैसले को अपने निजी जीवन में व्यवहारिक धरातल पर इसे लागू करने की प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए।
सवाल जब देश की प्रतिष्ठा का है तो प्रत्येक देशवासी को आगे बढ़ कर इस फैसले को लागू करना ही होगा। आज के सन्दर्भ में देश के प्रति यह कुछ इसी तरह का त्याग होगा जिस तरह अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने के संघर्ष में आजादी के नायकों ने विदेशी सामान का बहिष्कार करने का आन्दोलन चलाया था।
यह आन्दोलन इतना जबरदस्त था कि लोगों ने अपने कपड़ों के साथ ही फर्नीचर और अन्य कीमती विदेशी सामान को आग के हवाले कर दिया था। विदेशी सामान का बहिष्कार और स्वदेशी सामान को अपनाने का यह सिलसिला इतना तेज हो गया था कि लोगों ने खादी को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपने हाथों से काते गए सूत से बने कपड़ों को पहनने का सिलसिला शुरू करा दिया था।
  
महात्मा गांधी से लेकर सरदार पटेल और पंडित नेहरु तक सभी कांग्रेस नेताओं ने विदेशी कपड़ों के स्थान पर खादी के घर में बने कपड़े पहनना शुरू भी कर दिया था। आज भी स्थितियां कुछ वैसी ही बन गईं हैं, फर्क इतना है कि तब यह देश अंग्रेजों का गुलाम था, यहां कोई फैक्ट्री, कारखाना नहीं था सब कुछ विदेशों और ख़ासकर इंग्लैण्ड से ही बन कर आता था क्योंकि अंग्रेज यहां से कच्चा माल और सस्ते मजदूर वहां ले जाते थे और वहां से तैयार माल बिकने के लिए भारत में आता था।

आज हम आजाद हैं हमारे पास सब कुछ है लेकिन लेकिन एक आदत ऐसी बन गई है कि चीनी सामान हमें बहुत अच्छा लगने लगा है इतना अच्छा कि यह हमारी जिन्दगी का एक अहम् हिस्सा बन चुका है। हालत देखिये कि जब हमारे पास कुछ नहीं था, यहां तक कि रहने की आजादी भी नहीं, तब हमने अपना सब कुछ त्याग करने का मन बना लिया था।
आज हमारे पास सब कुछ है आजादी भी, सम्पन्नता भी तकनीकी कौशल भी और भारत का एक अपना ब्रांड बनाने की इच्छा भी आज हमारी है लेकिन चीन का सामान उपयोग करने की अपनी इसी आदत की वजह हम चीन के सामान को उपयोग न करने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं।

इसकी एक बड़ी वजह भारत में बने सामान की तुलना में चीनी सामान का बेहद सस्ता होना भी है। पहले सस्ते में सामान उपलब्ध करा कर इसका उपयोग करने की आदत डाली गई और अब यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया। यह सिलसिला ठीक वैसा ही है जैसा आज से करीब एक दशक पहले जब मोबाइल टैक्सियों का चलन इस देश में शुरू हुआ था तब ओला, उबेर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सात रुपये प्रति किलोमीटर की दर से लक्जरी टैक्सी का किराया वसूलना शुरू किया था। ये कंपनियां किराए पर ली गई टैक्सियों के चालकों को तो 20 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान करते थे लेकिन उपभोक्ता को बहुत कम किराया देना पड़ता था। एक बार टैक्सी में चलने की आदत डालनी थी जो ओला उबेर ने डाल दी।

अब यह आदत हावी हो चुकी है और आम आदमी को ऑटो रिक्शा या दूसरे साधनों से सफ़र करना अच्छा भी नहीं लगता। तुलनात्मक रूप से यातायात के ये साधन आज भी काफी सस्ते हैं और महानगरों में ये साधन ही सबसे लोकप्रिय भी हैं गनीमत है कि अभी देश के छोटे शहरों और कस्बों में ओला- उबेर की आदत नहीं पड़ी है।
जब हम आजादी के आन्दोलन के दौरान इस्तेमाल किये गए स्वदेशी सामान के प्रतीकों की बात करते हैं तब खादी का उल्लेख सबसे पहले किया जाता है। इसी तरह आज, “आत्मनिर्भरता” स्वदेशी का प्रतीक बन गया है। चीन के उत्पादों के स्थान पर अपने वैकल्पिक उत्पाद हमको खुद विकसित करने होंगे।

विडम्बना यह है कि भदेस खादी का स्वदेशीपन और आज के उच्च तकनीकी पर आधारित आत्मनिर्भरता के बीच सामी इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि देश की आजादी के आन्दोलन वाला खादी स्वदेशी इसलिए राष्ट्रीय प्रतीक बन गया क्योंकि तब हमारी इच्छाएं बहुत सीमित थीं, सीधी- सादी जीवन शैली थी। आज हमारी अनंत और अतृप्त इच्छाएं हैं जो कभी पूरी नहीं होने की आदत में निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे में यह तय कर पाना भी मुश्किल हो जाता है कि चीन में बने किस उत्पाद का उपयोग हम न करें।

टिक-टॉक जैसे एप पर तो प्रतिबन्ध लग गया लेकिन यहां तो हालत यह है कि भारत के आम आदमी की रोज मर्रा की जिन्दगी में उपयोग किये जाने वाले करीब आठ हजार से ज्या ऐसे उत्पाद और तकनीकी सेवायें हैं जिनका चीन से सीधा रिश्ता है। 

इंसान के अन्तः वस्त्रों से लेकर होली-दिवाली के उपहारों-उपकरणों, देवी-देवताओं की मूर्तियों, पटाखों, बिजली की लड़ियों और नेताओं की आदमकद मूर्तियों तक सब कुछ चीन से बना बनाया और यहां से सस्ता मिल रहा है तो इंसान कैसे महंगी चीजों की तरफ रुख करे। 

प्रतिबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल को रोका जा सकता है लेकिन गैर प्रतिबन्धित विदेशी वास्तु का इस्तेमाल रोक पाना संभव नहीं है। वैसे भी ऐसी किसी एक -या दो वस्तुओं पर तो प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है लेकिन हर वास्तु पर प्रतिबन्ध लगाना भी संभव नहीं है और ऐसा करना राष्ट्रहित में भी ठीक नहीं है। इसलिए मौजूदा परिस्थितियों में हर भारतीय को चीनी सामान और सुविधा  का उपयोग न करने के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार करना होगा।