राजनीति की मंडी में नीलाम होते कांग्रेस के “वफादार दरबारी” और भाजपा की नैतिकता का “शून्यकाल”


भाजपा राज्यों में विरोधी दलों की सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की बदनामी से बचना चाहती है। इसलिए सत्तारूढ़ दल के विधायकों को ही लोकतंत्र की मंडी में खड़ा करने का खेल शुरू किया गया। कर्नाटक में ये खेल भाजपा ने बखूबी किया। इसके बाद मध्य प्रदेश में ये खेल हो गया। अब राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार पर संकट है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
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केंद्र की भाजपा सरकार कांग्रेस शासित राज्यों की सरकार गिराने के लिए अनोखा तरीका ईजाद किया है। देश की राजनीति को मोदी-शाह की जोड़ी का यह अनूठा राजनीतिक योगदान है, जैसे भारतीय संविधान में अधिकांश चीजें दूसरे देशों से लिया गया है और “शून्य काल” भारत की देन है। अब देखिए पहले गोवा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सरकार गई अब राजस्थान की बारी है। राजस्थान के रण में भाजपा के योद्धा नहीं कांग्रेस के सिपहसालार ही कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अशोक गहलोत सरकार बच पाएगी? 

राज्यों में जिस तरह से सत्तासीन सरकारों को गिराने के लिए सताधारी दल के ही विधायक खेल कर रहे है, इससे भारत के लोकतांत्रिक प्रणाली पर तमाम सवाल उठे है। भाजपा ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्षियों को नुकसान पहुंचाने के लिए नया तरीका इजाद किया है। अगर राज्यसभा में ज्यादा सीटें हासिल करनी हो तो विपक्षी दलों के विधायकों का इस्तीफा दिलवा रही है। ये खेल गुजरात में अभी हाल ही में खेला गया। अगर राज्यों में विपक्षी दल की सतारूढ़ सरकार को गिराना हो तो उसके विधायकों का विधानसभा से इस्तीफे का खेल अब भाजपा ने शुरू कर दिया है। 

सवाल यह है कि इन सारी प्रक्रियाओं में जनता कहां है। बिहार में भाजपा के खिलाफ जनता ने वोट राजद-जदयू गठबंधन को दिया था। लेकिन जदयू ने बीच में ही राजद से गठबंधन को तोड़ जनता के विश्वास के साथ धोखा किया। भाजपा से गठबंधन कर जद यू ने सरकार बना ली। इन तमाम घटनाओं के बाद यही महसूस हो रहा है कि जनता जिस लोकतांत्रिक प्रणाली पर विश्वास जता रही है वो सड़ चुका है। अब इसमें बदलाव की जरूरत है। क्योंकि जनता का महत्व सिर्फ मतदान केंद्र तक रह गया है।  

लोकतंत्र को नष्ट करने की शुरूआत कांग्रेस ने की थी। राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें पसंद नहीं आयी तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया। राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार भारत का संविधान था। कांग्रेस के कार्यकाल में राज्यपालों से सरकार के खिलाफ रिपोर्ट मंगवा सरकारों को बर्खास्त किया जाता था। कांग्रेस संविधान की आड़ में राज्यपाल के सहारे लोकतंत्र की हत्या करती रही। अब भाजपा कांग्रेस से भी एक कदम आगे बढ़ गई है। बहुमत की राज्य सरकारों को गिराने के लिए सत्तारूढ़ दल के विधायकों से इस्तीफा दिलवाने का काम शुरू करवा दिया। चूंकि विधायक दलबदल करेंगे तो दलबदल कानून के कारण सदस्यता भी जाएगी। तो भाजपा ने उन्हें सदस्यता से इस्तीफा के बाद मंत्री पद की गारंटी दी, साथ ही भाजपा से टिकट की भी गारंटी दी।

देखने में यह प्रक्रिया पूरी तरह से सत्तारूढ़ दल पर सवालिया निशान लगाता है कि वह अपने विधायकों को संभाल नहीं पा रही है। लेकिन इस प्रक्रिया में जनता को छला और संविधान-लोकतंत्र को साथ विश्वासघात किया जा रहा है। सारे लोगों को पता है कि इस प्रक्रिया में धनबल का इस्तेमाल होता है। दरअसल केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद दलबदल विधेयक का मतलब ही खत्म हो गया।
भाजपा राज्यों में विरोधी दलों की सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की बदनामी से बचना चाहती है। इसलिए सत्तारूढ़ दल के विधायकों को ही लोकतंत्र की मंडी में खड़ा करने का खेल शुरू किया गया। कर्नाटक में ये खेल भाजपा ने बखूबी किया। इसके बाद मध्य प्रदेश में ये खेल हो गया। कर्नाटक में कुमारस्वामी औऱ कांग्रेस गठबंधन की सरकार चली गई। मध्य प्रदेश मे कमलनाथ की सरकार चली गई। अब राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार पर संकट है।

तमाम राजनीतिक उठापटक के बीच निष्कर्ष यही है कि भारतीय लोकतंत्र को सत्तातंत्र ने कैद कर लिया है।  कुछ परिवार औऱ धन-बल से युक्त कारपोरेट भारतीय लोकतंत्र को नियंत्रित कर रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र मे विचारधारा और संगठन का कोई महत्व नहीं है। हर पार्टी में कुछ क्षत्रप जनता के ठेकेदार है। ये ठेकेदारी पैसे, जाति और धर्म के बल पर चलती है। इसमें कारपोरेट घराने का सहयोग मिलता है। 

सवाल यह है कि सचिन पायलट कांग्रेस की टिकट पर जीतकर आए। उनका दावा रहा है कि उनकी विचारधारा कांग्रेसी विचारधारा है। उन्हें उन लोगों ही वोट दिया जो लोग राजस्थान में भाजपा की सरकार को बेदखल करना चाहते थे। लेकिन अब सचिन पायलट बागी नजर आ रहे हैं। लगभग यही स्थिति मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पैदा की। जनता ने उनके खेमे के विधायकों को वोट भाजपा की सरकार बदलने के लिए दिया था। लेकिन बीच में ही सरकार को गिराने में इन विधायकों ने जो भूमिका निभायी क्या यह जनता के दिए गए वोटों के साथ धोखा नहीं है?

दरअसल देखने में तो यही लगता है कि वैचारिकता और जनता के मुद्दों पर देश में सरकारें बदलती है।  सरकार बदलने का पूरा तौर तरीका लोकंतात्रिक होता है। पर भारतीय चुनावों में धर्म, जाति और पैसा ही हावी है। आजादी के बाद जरूर कुछ चुनाव मुद्दों पर लड़े गए। लेकिन अब तो हर चुनाव में जीत का मुख्य आधार पैसा, धर्म और जाति है। 

सचिन पायलट इस बात को जानते है कि राजस्थान में वे गुर्जर जाति के नेता है। उन्हें चुनाव जीतने में न तो भारतीय लोकतंत्र मदद करता है, न ही धर्मनिरपेरक्षता मदद करती है। बेशक पायलट अपनी भाषणों में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की की बाते करते रहे। लेकिन वे इस बात को बखूबी जानते है कि कांग्रेस में उनकी पूछ उनकी जातीय आधार के कारण है। वैसे में अगर सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ भाजपा की विचारधारा में चले भी जाएंगे तब भी उनकी जातीय पकड़ कमजोर नहीं होगी। लगभग यही कुछ स्थिति ज्योतिरादित्य की है। उनका आधा परिवार हिंदुत्व की रक्षा में लगा रहा। उनका आधा परिवार धर्मनिरपक्षेता की रक्षा करता रहा।

कांग्रेस आज लोकतंत्र की दुहाई दे रही है। दरअसल कांग्रेस ने खुद 1970 के आसपास सबसे पहले अपने संगठन के अंदर लोकतंत्र को खत्म किया। आज इसी का खामियाजा कांग्रेस भुगत रही है। दिल्ली में एक परिवार ने अपनी मजबूती को बनाए रखने के लिए कांग्रेस के संगठन को लोकतांत्रिक रूप से मजबूत करने पर जोर नहीं दिया। इस परिवार ने पूरे देश भऱ में अपने वफादार क्षत्रपों की एक फौज तैयार की। यही क्षत्रप जिला और ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों पर कब्जा कर बैठे। कई राज्यों मे जिला और ब्लॉक कांग्रेस खत्म ही हो गई।
कांग्रेस ने इतिहास से सबक नहीं लिया। आज कांग्रेस का संगठन जमीन से गायब है। कांग्रेस देश भर में क्षेत्रीय सामंतों का संगठन बन गया है। ताकतवर क्षेत्रीय नेताओं ने अपनी मर्जी के लोगों को संगठन के निचले पायदान पर बिठा रखे हैं। उनकी वफादारी कांग्रेस से नहीं अपने स्थानीय क्षत्रप से है। जैसे क्षत्रप बगावत करते है, संगठन का निचला ढांचा भी बगावत कर देता है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने बगावत किया। स्थानीय संगठन के काफी लोग ममता के साथ चले गए। महाराष्ट्र में शरद पवार ने पार्टी छोड़ी। कांग्रेस के बहुत सारे लोग पवार के साथ चले गए। यही स्थिति आज पंजाब में है। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी के अंदर एक समानांतर कांग्रेस खड़ी कर दी है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस पार्टी के अंदर समानांतर कांग्रेस खड़ी कर दी है। अगर ये हाईकमान से नाराज होंगे या भाजपा कुछ और ज्यादा देने को तैयार होगी तो कांग्रेस का इन राज्यों में टूटना तय है।