पटना। ‘मोदी से वैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं’ के नारे ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। लोक जनशक्ति पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए राष्ट्रीय गणतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया है, लेकिन ऐलान किया है कि भाजपा के साथ गठबंधन जारी रहेगा।
चिराग पासवान की अध्यक्षता में हुई पार्लियामेंटरी पार्टी की बैठक में भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया और कहा गया कि लोजपा विधायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाथ मजबूत करने के लिए काम करेंगे। लेकिन भाजपा ने पहले से नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। आज लोजपा की घोषणा के बाद भाजपा केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक हो रही है ताकि तीन चरणों में होने वाले चुनावों के लिए पार्टी उम्मीदवारों के नाम तय किए जा सके।
इसबीच अब बिहार में जदयू के बडे भाई की भूमिका पर खतरा पर संकट मंडराने लगा है। लोजपा के एनडीए गठबंधन से बाहर निकलने के बाद जदयू और भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा बराबर-बराबर होने के आसार हैं। इसके लिए दोनों पार्टियों के बीच लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। अभी तक की बातचीत में ऐसे आसार बने हैं कि भाजपा को 121 और जदयू को 122 सीटें मिले क्योंकि उसके साथ जीतन राम मांझी की पार्टी का भी समझौता है।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि नई परिस्थितियों में लोजपा कितनी सीटों पर उम्मीदवार देगी। वह पहले से 143 सीटों पर उम्मीदवार देने की बात कर रही थी। पर अगर भाजपा 121 सीटों पर उमीदवार देगी, तब लोजपा की सीटें निश्चित रूप से कम होगी क्योंकि वह भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखने की बात कर रही है।
भजपा और जदयू के बीच पटना में हुई बातचीत में भाजपा की ओर से चुनाव प्रभारी देवेन्द्र फडनवीस और बिहार के प्रभारी महासचिव भूपेन्द्र यादव शामिल हुए जबकि जदयू की ओर से बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी के साथ महासचिव आरसीपी सिंहा व सांसद लल्लन सिंह आए। भाजपा एमएलसी व पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजय पासवान को लगता है कि दोनों पार्टियों के बराबर सीटों पर लड़ने से दोनों को लाभ होगा।
दोनों पार्टियों ने 2010 विधानसभा चुनाव एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तब जदयू ने 141 सीटों और भाजपा ने 102 सीटों पर उम्मीदवार दिए थे। इनमें से जदयू ने 115 और भाजपा ने 91 सीटों पर जीत हासिल की थी। लोकसभा चुनाव 2019 में दोनों पार्टियों ने बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें भाजपा ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब लोजपा भी साथ थी औऱ उसने भी अपने हिस्से की सभी छह सीटों पर जीत हासिल की जबकि जदयू एक सीट पर हार गई थी।
सीटों के बंटवारे की बातचीत कल रात एक समय टूटने की कगार पर पहुंच गई थी क्योंकि भाजपा बराबर सीटों की मांग कर रही थी। उसका कहना था कि उसने लोकसभा चुनाव में जदयू को बराबर सीटें देने के लिए अपने पांच सीटिंग सांसदों को टिकट से वंचित कर दिया था। भाजपा ने शहरी चुनाव क्षेत्रों को देने से साफ मना कर दिया था जहां से नीतीश कुमार राजद से पालाबदल कर आए विधायकों को टिकट देना चाहते हैं।
बातचीत में गतिरोध आ जाने पर भाजपा नेता दिल्ली वापस लौट गए, पर अन्य केन्द्रीय नेताओं से बातचीत करने के बाद फिर वापस आए और जदयू नेताओं के साथ तीन दौर में बातचीत हुई। पर बाद में जदयू भाजपा की अधिकतर मांगो को मान गई, फिरभी अपने हिस्से में एक सीट अधिक रखने पर अड़ी रही। इस फार्मूले पर सहमति हो जाने की संभावना है। भाजपा के एक नेता ने कहा कि अकेले चुनाव लड़ने के नतीजे का पता जदयू को हैं।
वह 2014 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों में से केवल 2 सीटों पर जीत सकी थी। वैसे नीतीश कुमार ने 2005 से अब तक जितने चुनावों में जीत हासिल की है, किसी पार्टी के साथ उसका गठबंधन रहा है। इसबीच जदयू हलकों में यह बात भी चल रही है कि चिराग पासवान के अड़ियल रवैए के पीछे भाजपा का उकसावा है।
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