इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की संस्थापक निदेशक कपिला वात्स्यायन का निधन

नई दिल्ली। भारतीय शास्त्रीय नृत्य, वास्तुकला, इतिहास और कला की प्रख्यात विदुषी कपिला वात्स्यायन का आज सुबह नौ बजे निधन हो गया। वह दिल्ली के गुलमोहर एन्क्लेव आवास पर रहती थीं। वह 91 वर्ष की थीं। उनका अंतिम संस्कार बुधवार दोपहर को लोधी श्मशान घाट पर किया जाएगा।

हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय विदुषी कपिला वात्स्यायन पति थे। 25 दिसम्बर 1928 को कर्नाटक के मंगलोर में जन्मी कपिला वात्स्यायन की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और मिशिगन विश्वविद्यालय में हुआ।

वात्स्यायन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) की आजीवन न्यासी थीं। वह आईआईसी में एशिया परियोजना की अध्यक्ष भी थीं। वात्स्यायन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) की संस्थापक निदेशक और प्रथम अध्यक्ष थीं। दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र डॉ. कपिला वात्स्यायन ने अपना करियर शिक्षण व्यवसाय से शुरू किया। लेकिन उनके व्यापक ज्ञान और अनुभव को देखते हुए उन्हें शिक्षा और संस्कृति मंत्रालय में ले लिया गया। जिस समय शिक्षा की सुविधाएं प्रारंभिक स्तर पर थीं, उस समय डॉ. वात्स्यायन ने शिक्षा सुविधाओं के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

कपिला ने भारतीय महिलाओं की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व किया जो स्वतंत्रता सेनानी थीं, तथा जो भारतीय महिलाओं को संकीर्ण सामाजिक और आर्थिक सीमाओं के बंधनों से मुक्त करने के लिए संघर्षरत थी।

अपनी लंबी जीवन यात्रा में, कपिला ने सत्ता, स्थिति, स्पष्ट राजनीतिक नेतृत्व के आकर्षण से स्वयं को बचा कर रखा। संगीत, नृत्य, थिएटर या शिल्प हो, कला ही उनका प्रेम और जुनून था। एक युवा लड़की के रूप में, उन्होंने एक थिएटर कलाकार होने के लिए परिपाटियों को ललकारा था। ऐसा कोई अवसर नहीं था, जब उन्होंने हथकरघा या शिल्प की एक सुदूर परंपरा या रंगमंच की खोज व पोषण न की हो। उनकी ही दृष्टि और दृढ़ विश्वास था, जिसने सरकार को सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (CCRT) की संस्था स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।

कपिला वात्स्यायन अपने जीवनकाल में कई देशी-विदेशी पुरस्कारों से नवाजी गईं। 1955 में भारत सरकार ने पद्म भूषण और 1987 में पद्म विभूषण तो 1966 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला। वहीं 1974 में संगीत नाटक अकादमी का आजीवन उपलब्धि पुरस्कार, 1977 में हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को पुरस्कार से नवाजा गया।

 

 

 

First Published on: September 16, 2020 4:31 PM
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