नई दिल्ली। यह लेख कुछ प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों और भारत-बांग्लादेश सीमा बाड़ के बाहर रहने वाले भारतीय परिवारों पर उनके प्रभाव पर चर्चा करता है। असम के करीमगंज जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में आयोजित 7 समूह साक्षात्कारों और 25 गहन व्यक्तिगत साक्षात्कारों के गुणात्मक आंकड़ों पर चित्रण करते हुए, यह उन लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का विश्लेषण करता है जिनकी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है।
लेख का तर्क है कि हालांकि सीमा पर बाड़ लगाने का उद्देश्य सीमा पार अवैध गतिविधियों को प्रतिबंधित करना था, लेकिन यह भारतीय आबादी के लिए गंभीर समस्या पैदा कर रहा है जो सीमा की बाड़ से बाहर रह गए हैं। सख्त सीमा नियम और सीमा पार आवाजाही पर प्रतिबंध के कारण आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में कमी आई है, और लोग बिना किसी उपचार के कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। फिर भी, सरकार द्वारा कोई उचित हस्तक्षेप तंत्र नहीं है। लेख सीमावर्ती निवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ उपाय सुझाता है।
दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश ऐसे देश हैं, जो विशेषरूप से मानव तस्करी के लिए स्रोत, आवागमन और गंतव्य के रूप में जाने जाते हैं। समाज के ज़्यादातर वंचित और आर्थिक तौर पर कमज़ोर तबके से संबंध रखने वाले हज़ारों लोगों को हर साल तस्करों द्वारा भारत के बड़े शहरों और कस्बों में अच्छी नौकरी व रोज़गार के नाम पर लुभाया जाता है, लेकिन धोखे से उन्हें गुलामी करने के लिए बेच दिया जाता है। इन असुरक्षित और कमज़ोर लोगों में बेघर हो चुके रोहिंग्या भी हैं, जो वर्तमान में बांग्लादेश के शिविर क्षेत्रों में रह रहे हैं और म्यांमार लौटने की उम्मीद छोड़ चुके हैं। ज़ाहिर है कि म्यांमार इन दिनों राजनीतिक उथल-पुथल और एक अंतहीन मानवीय संकट के बीच बुरी तरह से घिरा हुआ है।
भारतीय जांच दल ने हाल ही में मानव तस्करी के एक रैकेट का पर्दाफ़ाश किया था, जिसमें बांग्लादेशी लड़कियों/महिलाओं के साथ-साथ विस्थापित रोहिंग्याओं को भारत के विभिन्न हिस्सों में ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से लाया जा रहा था। इस संगठित अपराध में शामिल तस्करों का जाल दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है, जहां वह अपने दूसरे साथियों के साथ इसको अंज़ाम देते हैं। दरअसल, पिछले वर्ष 6 रोहिंग्याओं को बिना वैध दस्तावेज़ों के यात्रा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और उसके बाद इस मामले की जांच की शुरू की गई थी। जांच के दौरान मानव तस्करों के इस नेटवर्क का भंडाफोड़ हुआ। इस नेटवर्क से जुड़े कुछ तस्करों को गिरफ़्तार भी किया गया है, जबकि कुछ अन्य को गिरफ़्तार किया जाना बाक़ी है। एक अन्य घटना में मई, 2022 में 26 विस्थापित रोहिंग्याओं को पकड़ा गया था, जिनमें 12 बच्चे और 8 महिलाएं शामिल थीं। ये लोग जम्मू में शरणार्थी शिविरों से भागकर बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों को फिलहाल असम के सिलचर में डिटेंशन सेंटर में रखा गया है।
दरअसल, तस्करों द्वारा इन लोगों को अपने जाल में फंसाकर शिकार बनाना बेहद आसान होता है, क्योंकि नागरिकता नहीं होने की वजह से इनके पास मूलभूत अधिकार नहीं होते हैं। इतना ही नहीं, इनके पास दानदाताओं की तरफ से मानवीय आधार पर मिली मदद के अलावा इनकम का कोई वैध और स्थाई स्रोत भी नहीं होता है। शरणार्थी शिविरों में नहाने-धोने की सुविधा नहीं होने, खाने-पीने की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और आजीविका के साधन नहीं होने जैसे हालात, इन्हें बेहतर अवसरों के लिए बाहर निकलने पर मज़बूर करते हैं। लेकिन बाहर पकड़े जाने पर इन्हें जेल में डाल दिया जाता है और पता नहीं होता है कि उन्हें कब छोड़ा जाएगा। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ये लोग किसी देश की न्याय सीमा और अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। ये घटनाएं इन बेघर और संकट में घिरे लोगों की परेशानी को सामने लाती हैं।
दोनों पक्षों ने अपने-अपने देशों में कोविड-19 महामारी के हालात पर पिछले साल चर्चा की और इस संकट के दौरान दोनों देशों के बीच लगातार जुड़ाव को लेकर संतोष व्यक्त किया। बांग्लादेश पक्ष ने भारत में बनी ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका कोविशील्ड वैक्सीन की 3.2 मिलियन खुराक गिफ्ट करने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया और 5 मिलियन डोज के पहले बैच की शीघ्र डिलिवरी की सराहना की। बांग्लादेश ने भारत से यह भी अनुरोध किया कि वह सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया से बांग्लादेश द्वारा खरीदे गए टीके की शेष खेप की नियमित डिलिवरी में सहयोग करे। भारत ने घरेलू मांग और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ उच्चतम सहयोग का आश्वासन किया।
कोविड-19 महामारी के चलते जन स्वास्थ्य क्षेत्र, खासतौर से स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं और अनुसंधान की पृष्ठभूमि में दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के बीच अगाध सहयोग के महत्व को स्वीकार किया। बांग्लादेश पक्ष ने प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए ज्यादा से ज्यादा आपसी सहयोग का अनुरोध किया। बांग्लादेश पक्ष ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जैव-सुरक्षा सहयोग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें दोनों पक्षों द्वारा काम किया जा सकता है। कोविड-19 महामारी से पता चल गया है कि दोनों देशों के बीच सीमा पार व्यापार की परस्पर प्रकृति और लोगों से लोगों के बीच संपर्क को देखते हुए सशक्त जैव सुरक्षा उपायों के बिना आर्थिक समृद्धि दांव पर है। दोनों प्रधानमंत्रियों ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, भारत और बांग्लादेश चिकित्सा अनुसंधान परिषद, बांग्लादेश के बीच विभिन्न प्रणालियों के तहत सहयोग और सक्रिय भागीदारी की सराहना की।