
नई दिल्ली। सेना के इंजीनियर्स ने गलवान घाटी में 60 मीटर लंबे पुल का निर्माण पूरा कर लिया है। चार मेहराब वाला यह पुल श्योक और गलवान नदी के संगम से तीन किलोमीटर पूर्व में बना है। चीन इस पुल को रोकना चाहता था। बताया जा रहा है कि इस पुल के बनने से संवेदनशील सेक्टर में भारत की स्थिति बेहद मजबूत हो गई है।
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों केअनुसार इस पुल की मदद से अब सैनिक नदी वाहनों के साथ आर-पार जा सकते हैं और 255 किलोमीटर लंबे स्ट्रैटिजिक डीबीओ रोड की सुरक्षा कर सकते हैं, यह सड़क दरबुक से दौलत बेग ओल्डी में भारत के आखिरी पोस्ट तक जाती है, जो काराकोरम के पास है।
इस पुल की वजह से भी चीन बौखलाया हुआ है, मई में उसके सैनिकों के बड़ी संख्या में एलएसी पर आने की एक वजह यह पुल भी है, जिसे वह नहीं बनने देना चाहता था। क्योंकि वह जानता है कि इस पुल से यहां भारत की स्थिति और भी मजबूत हो गई है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि पुल गुरुवार रात को तैयार हो गया। इससे यह भी पता चलता है कि सीमा पर फॉर्मेशन इंजीनियर्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में जुटे हुए हैं और पीएलए की ओर से काम रुकवाने की तमाम कोशिशों के बावजूद बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का काम जारी रहेगा।
चार मेहराब वाला यह पुल श्योक और गलवान नदी के संगम से तीन किलोमीटर पूर्व में बना है। पट्रोलिंग पॉइंट 14 से 2 किलोमीटर पूर्व। पेट्रोलिंग पॉइंट 14 ही वह स्थान है जहां 15 जून को दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। यह Y जंक्शन के नजदीक है, जहां गलवान नाला मुख्य नदी से मिलती है। दोनों नदी के संगम पर भारतीय सेना का बेस कैंप है जिसे ‘120 किमी कैंप’ कहा जाता है यह डीएसडीबीओ रोड के नजदीक ही है।
चार मेहराब वाला यह पुल श्योक और गलवान नदी के संगम से तीन किलोमीटर पूर्व में बना है, हमने तनातनी के बाद भी इस पुल पर काम जारी रखा और 15 जून को हिंसक झड़प के बावजूद काम करते रहे। – भारतीय सेना