डिजिटल शिक्षा औपचारिक क्लासरूम शिक्षा की जगह नहीं ले सकती: उच्च न्यायालय

न्यायमूर्ति नरुला ने कहा कि डिजिटल शिक्षा या शिक्षण के ऑनलाइन प्रारूप को शामिल कर 'शिक्षा' पद्धति का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन ऐसा प्रारूप "केवल एक पूरक तंत्र के रूप में कार्य कर सकता है" और यह एक स्थायी माध्यम के रूप में कार्य नहीं कर सकता।

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने शुक्रवार को कहा कि डिजिटल शिक्षा औपचारिक ‘क्लासरूम’ शिक्षा की जगह नहीं ले सकती है।

यह विचार न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ के न्यायाधीशों में शामिल एक न्यायाधीश ने व्यक्त किए, जिन्होंने निजी और साथ ही केंद्रीय विद्यालयों जैसे सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षा के लिए गरीब छात्रों को उपकरण और एक इंटरनेट पैकेज प्रदान करें।

पीठ ने कहा कि ऐसा न करना छात्रों के साथ “भेदभाव” माना जाएगा और इससे एक “डिजिटल असमानता” पैदा होगी।

अपने संक्षिप्त लेकिन अलग टिप्पणी में, न्यायमूर्ति नरुला ने कहा कि डिजिटल शिक्षा या शिक्षण के ऑनलाइन प्रारूप को शामिल कर ‘शिक्षा’ पद्धति का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन ऐसा प्रारूप “केवल एक पूरक तंत्र के रूप में कार्य कर सकता है” और यह एक स्थायी माध्यम के रूप में कार्य नहीं कर सकता।

First Published on: September 19, 2020 10:23 AM
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