समय का पहिया चले रे साथी,
समय का पहिया चले।
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी,
समय का पहिया चले।
रात और दिन पल पल छिन,
आगे बढ़ता जाय।
तोड़ पुराना नये सिरे से,
सब कुछ गढ़ता जाय।
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी,
समय का पहिया चले।
उठा आदमी जब जंगल से,
अपना सीना ताने।
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर,
पहिया लगा घुमाने।
मेहनत के हाथों से,
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी,
समय का पहिया चले- (गोरख पाण्डेय)
चंद घंटों में 2020 इतिहास बन जायेगा और 2021 भविष्य की नई चुनौतियों के साथ हमारे सामने होगा। लेकिन समय का पहिया चलते-चलते पहाड़ जैसी समस्याओं को भी पार कर जाता है। आधी रात को जब घड़ी की सुईयां 12 पर पहुंचेगी तो दुनिया भर में नए साल का जश्न शुरू हो जायेगा। इस जश्न में पुराने साल की विदाई और नए वर्ष का स्वागत शामिल होगा।
कहते हैं कि गुजरा हुआ समय फिर कभी वापस लौट कर नहीं आता। लेकिन हम अक्सर अपने कार्यों को कल पर टाल देते हैं और जब समय निकल जाता है तो अपनी असफलताओं को समय पर डाल देते है। भारतीय संस्कृति में समय को ‘काल’ कहा जाता है और किसी आपदा के लिए भी ‘काल’ शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। इससे साफ जाहिर है कि समय के साथ चलने वाले के लिये यह ‘सहचर’ और समय की नजाकत को नजरंदाज करने वालों के लिये यह ‘काल’ बन जाता है।
फिर भी पुराने साल का विछोह और नव वर्ष के आगमन की खुशी का जश्न देश-दुनिया में मनाया जाता है। इस दौरान साल भर की घटनाओं का लेखा-जोखा किया जाता है और ऩए साल के कार्य योजना तय की जाती है। भारत के संदर्भ में बात करें तो यह साल कई ऐसी सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं का साक्षी बना जिसने भारतीय समाज और संस्थाओं को गहरे प्रभावित किया है।
विगत कुछ वर्षों से देश का निजाम बदला हुआ है। इस निजामत में बहुत कुछ बुरे चीजों को बदल कर अच्छा करने का दावा किया जाता रहा है। लेकिन 2020 आते-आते देश की जनता यह कहने लगी कि साल 2020 की तरह दूसरा साल न आये, जितना जल्दी हो सके यह साल जाये। मेरे कहने का यह कत्तई मतलब नहीं है कि साल 2020 में जो कुछ हुआ उसके लिए देश की शासन-सत्ता सीधे जिम्मेदार है। या सरकारी मशीनरी ने जान-बूझकर जनता को परेशान किया है।
लेकिन कोरोना जैसी महामारी की बात करें तो इस दौरान शासन-प्रशासन को जिस तरह से पेश आना था या उससे निबटने के लिए जिस तरह की योजना बनानी थी उसमें सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। बल्कि यह कहें कि सीधे तौर पर असफल साबित हुई है। सरकार हर जगह पर नदारद और प्रशासन या तो पंगु या अमानवीय दिखता रहा।
सबसे पहले हम देश-दुनिया को प्रभावित करने वाली वैश्विक महामारी कोरोना का जिक्र करते हैं। कोविड-19 से निबटने के लिए दुनिया के तमाम देशों ने ऐहतियात बरते,नियम-कानून बनाये। भारत सरकार ने भी कोरोना जैसी संक्रमित बीमारी देश भर में अपना पांव न पसार सके इसलिए 22 मार्च, 2020 को समूचे देश में एक साथ लॉकडाउन घोषित कर दिया।
हवाई उड़ाने, रेल सेवा और आवागमन के सार्वजनिक साधन को बंद कर दिया गया। देश और दिल्ली की सड़कों पर लाखों प्रवासी मजदूर पैदल अपने घरों की तरफ कूच कर गये। भूखे-प्यासे लोगों में कई तो रास्ते में ही दम तोड़ दिये और कुछ सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान से हाथ धो बैठे।
लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर निकलने की मनाही थी लेकिन इसी दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में पूजा करते देखे गये और उसके कुछ महीने बाद कोरोना काल में ही हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री राम मंदिर का शिलान्यास करते देखे गये। यह सब तब किया गया जब कोरोना के बढ़ने की बात कही जा रही थी।
इसके साथ ही 2020 में देश में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हुई जो अवाम के सामने अपना वजूद बचाने का संकट के तौर पर देखी जा सकती हैं। इसी वर्ष सरकार ने देश के कृषि व्यवस्था की दिशा औऱ किसानों की दशा बदलने का दावा करते हुए तीन कृषि कानून बनाये। लेकिन इस दौरान सरकार ने विपक्ष की कौन कहे, किसान संगठनों, कृषि संस्थाओं और कृषि वैज्ञानिकों की राय को तवज्जो नहीं दिया।
पिछले एक महीने से भी ज्यादा का वक्त हो गया पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के किसान दिल्ली की सीमा पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार और उसके मंत्रियों के हाव-भाव से यह महसूस होता है कि किसानों की बात को गंभीरता से सुनने और समाधान का रास्ता तलाशने में उसकी कोई रुचि नहीं है।
इस दौरान सरकार और सरकार समर्थित मीडिया किसानों को बदनाम करने और विपक्ष के इशारे पर धरना-प्रदर्शन करने का आरोप भी लगाती रही है। सराकरी नुमाइंदे और भाजपा समर्थक मीडिया किसानों को गुमराह, आतंकवादी और खालिस्तानी साबित करने पर लगे रहे। हद तो तब हो गयी जब किसानों के भोजन और वहां उपलब्ध सुविधा पर सवाल खड़े किये गये।
इसी तरह का एक मामला बॉलीवुड में घटा। बॉलीवुड के मशहूर और काबिल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी। सुशांत अपने निजी जीवन में काफी तनाव से गुजर रहे थे जिसके कारण उन्होंने सुसाइड कर लिया। लेकिन सरकार ने सीबीआई को लगा कर जिस तरह से सुशांत की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत को हत्या बताने में लगी और सुशांत की गर्लफ्रैंड रिया चक्रवर्ती को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया गया, वह किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सही नहीं ठहराया जा सकता है।
इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण था बिहार विधानसभा चुनाव। बिहार में राजपूत समुदाय से हमदर्दी दिखा कर उनका वोट हासिल करने के लिए देश की सबसे बड़ी सरकार अनैतिकता के सबसे निचले पायदान पर उतर गयी। इस पूरे घटनाक्रम में सीबीआई, केंद्र सरकार और तमाम सरकारी एजेंसियों के प्रति लोगों के मन में सहज रोष का भाव आया।
इसी 2020 में केंद्र सरकार की मिलीभगत से भाजपा ने मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन किया। एक चुनी हुई सरकार को गिराने के लिए दलबदल, धन का लालच, खरीद-फरोख्त और ईडी-सीबीआई आदि जांच एजेंसियों से विधायकों को डरा-धमका कर किया गया। परिणामस्वरूप कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये।
केंद्र सरकार के नुमाइंदों के चौबीस घंटे राजनीति में व्यस्त रहने और विपक्ष को नीचा दिखाने के एजेंडे में लगे रहने के कारण जनता की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया गया। लॉकडाउन से देश की अर्थव्यवस्था बदहाल हो गयी और भारत के इतिहास में देश की विकासदर पहली बार सबसे नीचले स्तर पर पहुंच गई और मोदी सरकार के पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था करने का दावा धराशायी हो गया।
2020 के जून महीने के मध्य में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई। जिसमें भारत के 20 जवानों के शहीद होने के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया और कई दौर की वार्ता के बाद भी मामला सुलझ नहीं सका है और चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में जमे रहे। समुचा देश इस घटना से हतप्रभ हो गया और प्रधानमंत्री की तरफ सैनिकों की शहादत का बदला लेने के लिए आशा भरी निगाहों से देखता रहा। लेकिन प्रधानमंत्री खामोश रहे।
प्रधानमंत्री ने जून मध्य में ही कोविड-19 की स्थिति पर देश भर के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की। प्रधानमंत्री ने चीन के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक का भी आह्वान किया। इस दौरान स्पष्ट कर दिया कि ना तो कोई भारतीय सीमा में घुसा है और ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है। उन्होंने देश को भरोसा दिलाया कि भारतीय सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।
साल 2020 में देश के अंदर और बाहर जनता तमाम चुनौतियों का सामना करती रही। लेकिन सरकार हर मुद्दे पर खामोश रही या फिर राजनीतिक बयानबाजी करती रही। मानवाधिकार और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों तक पर सरकारी-कानूनी कुठाराघात होता रहा फिर भी सरकार सबका साथ-सबका विकास का दावा करती रही।