पंजाबी लोकगीत के केंद्र में “किसान आंदोलन” तो भोजपुरी लोकगीत के “लहंगा में घुसल कोरोना”


कोरोना के दौर में कई भोजपुरी गीत आए जिसमें कोरोना ‘वायरस’ को भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री ने ‘चोली’ और ‘लहंगा’ में घुसा दिया है। ‘चोली’ और ‘लहंगा’ में कोरोना ‘वायरस’ घुसने के गीत संगीत पर बिहार और यूपी का गरीब तबका झूमता रहा।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
देश Updated On :

पंजाबी गायक कंवर ग्रेवाल एवं हरफ चीमा का गाना इस समय किसान आंदोलन में धूम मचा रखी है। केंद्र सरकार के किसान विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान इस समय कंवर ग्रेवाल के गानों को खूब सुन रहे हैं। ग्रेवाल का यह गाना इस समय पंजाब में घर-घर में सुना जा रहा है। कंवर ग्रेवाल के गानों में ‘फेडरलिज्म’ की तरफ संकेत करते हुए कहा गया है कि किसानों का दिल्ली से टकराव हो गया है। केंद्र सरकार पर ‘फेडरलिज्म’ खत्म करने का आऱोप लगाया जा रहा है।

नाल तेरे पंजाब से आं, बस नां दी आड़ी दिल्ली दी,
कालियां नीतियां करदे लागू।
ओ नीयत माड़ी दिल्ली दी,
तेरी गल्ल तक पहुंच गई आन कुहाड़ी दिल्ली दी,
तेरिया खुदकशियां ते कातो वजदी ताड़ी दिल्ली दी।
आ वेहला आ गया जाग किसानां,
दे सिस्टम दे हल्क च फाना।
खेत तेरे खोहन नू फिरदे,
जो तू पधरे किते एंटर नाल।
खिंच ले जट्टा खिंच तैयारी,
पैंचा पड़ गया सेंटर नाल।

कंवर ग्रेवाल के गानों में केंद्र सरकार को चुनौती दी गई है कि चाहे वे किसानों पर गोली चलवाए, राइफल का इस्तेमाल करे लेकिन फसल संबंधी निर्णय किसान ही करेगा। फसलों को लेकर सरकार का निर्णय़ किसान कतई नहीं मानेंगे। कंवर ग्रेवाल ने एक गीत में केंद्र सरकार को समझाया है कि किसानों के हक छीनने की कोशिश किसान नहीं बरदाश्त करेंगे। किसान इकट्ठा होंगे और यह दिल्ली के लिए परेशानी का सबब बनेंगे। कंवर ग्रेवाल अपने गाने ‘एलान’ में कहते है कि-

दिल्ली एहे इकठ परेशान करूंगा,
तेरे फायदे नालों ज्यादा नुकसान करूंगा
पर फसलां द फैसला किसान करूंगा।

दरअसल इस समय पंजाब में किसान आंदोलन को लेकर कम से कम 100 गाने आ चुके है। कंवर ग्रेवाल के गाने तो सुने जा रहे है। लेकिन पंजाब के कई और गायकों ने किसान आंदोलन पर गाने गाए है जिन्हें खूब सुना जा रहा है। ये गाने यू टयूब पर जमकर धूम मचा रहे है। फेसबुक पर शेयर किए जा रहे हैं। पंजाब के गायक बब्बू मान, हरभजन मान, रणजीत बावा समेत कई गायकों ने किसानों के समर्थन में गाने गाए है।

इसमें पंजाब की आर्थिक स्थिति, किसानों का हक, उनकी लड़ने की क्षमता और अदानी-अंबानी का जिक्र है। गानों में अदानी और अंबानी की आलोचना हो रही है। दोनों कारपोरेट घरानों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे पंजाब की कृषि भूमि पर कब्जा करना चाहते है। नरेंद्र मोदी सरकार अदानी और अंबानी के एजेंट के तौर पर काम कर रही है। पंजाब के लोक संगीत जुगनी का इस्तेमाल भी गायकों ने किसानों के समर्थन में किया है।

मेरी जुगनी है किरसानी,
जुगां तो न इसदा कोई सानी,
न अदानी न अंबानी।
मेरेया जुगनी मेरी अनोखी है,
ते साबत सबर-ए-संतोखी है।

पंजाब के मशहूर गायक हरभजन मान अपने गाने में दिल्ली पर किसानों का हक छीनने का आऱोप लगाते है। वे कहते है कि पंजाब के किसान किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगें। वे दिल्ली में बैठे हुक्मरानों से अपील करते है कि वे महलों से निकले और किसानों के हितों में फैसला ले।

काफिले तूफानों वांग चढ़े औंदे ने,
अके हुए रो नाल भरे औंदे ने।
महलां बीच निकल के तक्क दिल्लिए
मुड़दे नी लए बिना हक दिल्लिए।

किसी भी जनआंदोलन को मजबूत करने में लोक संगीत का खासा महत्व होता है। भारत में हर युग में जनता का दुख-दर्द कवियों ने लोक गीतों के माध्यम से बयां है। मध्यकाल में गुरु नानक, कबीर समेत कईयों ने लोगों के दुखदर्द को अपनी रचनाओं से साझा किया। स्वतंत्रता आंदोलन में भारत की तमाम भाषाओं की कविता और गीतों में लोगों के दुख दर्द को साझा किया गया। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कविता, गीत और लोकगीतों का खासा महत्व रहा है।

हिंदी कवियों ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई गीत और कविताएं लिखी। लेकिन आज 21वीं सदी में हिंदी गीत, संगीत और कविता चारण भक्ति में लीन हो गए है। हिंदी के बराबर विकसित हो रहे भोजपुरी म्यूजिक और फिल्म इंडस्ट्री की हालत और खराब है। लगभग 26 करोड़ लोगों के बीच अपना कारोबार करने वाली भोजपुरी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री में अश्लीलता हावी है। लोगों को गीत और संगीत के नाम पर अश्लीलता और धर्मांधता परोसी जा रही है।

हालांकि भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री का सलाना टर्न ओवर 500 करोड़ रुपये का है। लगभग 26 करोड़ दर्शक और श्रोता वाली भोजपुरी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री समाज की उन समस्याओं पर गाना या फिल्म नहीं परोसते जिससे हिंदी बेल्ट बुरी तरह से पीड़ित है। गरीबी, भुखमरी, बदहाली, बेरोजगारी से इन्हें कोई लेना देना नहीं है। जबकि इनके ज्यादातर दर्शक और श्रोता गरीब, मजदूर, किसान है। भोजपुरी गीत संगीत की हालत तो यह है कि यह चोली और लहंगा से बाहर आ ही नहीं रहा है।

कोरोना के दौर में कई भोजपुरी गीत आए जिसमें कोरोना ‘वायरस’ को भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री ने ‘चोली’ और ‘लहंगा’ में घुसा दिया है। ‘चोली’ और ‘लहंगा’ में कोरोना ‘वायरस’ घुसने के गीत संगीत पर बिहार और यूपी का गरीब तबका झूमता रहा। भोजपुरी गीत संगीत में सांप्रदायिकता भी घुस गई है। मसलन पीछे गाना खूब हिट हुआ था ‘जो ना बोले जय श्री राम, उसको भेजो कब्रिस्तान’।

इसी प्रकार एक भोजपुरी गाने में सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या मामले में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को वेश्या कहा गया। इसी तरह से एक और भोजपुरी गाना में कश्मीरी लड़कियों से शादी और कश्मीर में जमीन खरीदने की बात की गई। हालांकि भोजपुरी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री ने कई स्टार दिए है जिसमें मनोज तिवारी, निरहुआ, रवि किशन, खेसारी लाल यादव शामिल है। भोजपुरी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री में अश्लीलता इस कदर है कि इनके गानों को परिवार के साथ मिलकर कोई नहीं सुन सकता है। भोजपुरी फिल्मों को परिवार के साथ बैठकर कोई नहीं देख सकता है।

1907 में ज्वाइंट पंजाब में बड़ा किसान आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन का नाम ही इसमें एक गाए गीत से ‘पगड़ी सम्हाल जट्टा’ के कारण पगड़ी सम्हाल जट्टा आंदोलन पड़ गया था। उस समय ब्रिटिश सरकार के दोआब बारी एक्ट, पंजाब लैंड कॉलोनाइजेशन एक्ट, पंजाब लैंड एलियनेशन एक्ट के खिलाफ पंजाब के किसान खड़े हो गए थे। ब्रिटिश सरकार के इस एक्ट मे कांट्रेक्ट फार्मिंग की भी बात की गई थी। किसानों का हक छीना जा रहा था, उन्हें जमीनों के मालिकाना हक देने से सरकार मना कर रही थी।

पगड़ी सम्हाल जट्टा
पगड़ी सम्भाल ओए।
हिंद सी मंदर साडा, इस दे पुजारी ओ।
झंलेगा होर अजे, कद तक खुआरी ओ।
मरने दी कर लै हुण तूं, छेती तैयारी ओ।
मरने तो जीणा भैडा, हो के बेहाल ओ ।
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा?

सरदार भगत सिंह के चाचा अजित सिंह ने ‘पगड़ी सम्हाल जट्टा’ किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। ब्रिटिश सरकार के खेती संबंधित काले कानूनों के खिलाफ 3 मार्च 1907 को लायलपुर में एक रैली हुई। रैली में मंच से एक गीत गाया गया। इसे झँग स्याल के संपादक बांके दयाल ने लिखा था।