भारतीय जनता पार्टी झूठ के सहारे आगे बढ़ना चाहती है और इसी आधा पर इस साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा और अगले साल की शुरुआत में होने वाले लोकसभा के चुनाव पर नजर गड़ाए हुए है। भाजपा के नेताओं को लगता है कि कदम – कदम पर झूठ बोल कर देश की जनता को गुमराह किया जा सकता है। जनता को भ्रम की स्थिति में डाल कर उसके लिए चुनाव जीतना आसान हो जाएगा। इसी तरह की भ्रम की स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कश्मीर के पुलवामा में हुई आतंकी घटना को लेकर फैलाई गई थी।
भ्रम की ऐसी ही स्थिति कुछ इसी तरह इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल की शुरुआत में होने वाले लोकसभा को लेकर भी फैलाई जा रही है। सत्तारूढ़ पार्टी इसके लिए मणिपुर की हिंसा को केंद्र में रख कर चाल चल रही है। सरकारी पार्टी मणिपुर को केंद्र में रख कर काँग्रेस शासन में की गई पूर्वोत्तर क्षेत्र की उपेक्षा को इसका आधार बनाना चाहती है । इसके लिए इतिहास के पन्नों से अलग काल्पनिक कहानियाँ गढ़ी जा रही हैं और देश कीए जनता को भ्रम की स्थिति में डालने की पुरजोर कोशिश की जा रही है ।
इसका एक जीता जागता उदाहरण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसद में दिया गया वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि मार्च 1966 को केंद्र की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने मिजोरम में अपने ही देशवासियों पर अपनी ही वायुसेना से हवाई हमले कराए थे। गौरतलब है कि 10 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कांग्रेस पर इस आशय का आरोप लगाया था।
प्रधानमंत्री ने जिस घटना का जिक्र किया था वो पूर्ण सत्य नहीं था बल्कि अर्ध सत्य यानी आधा सच और आधा झूठ था। आधा सच इसलिए क्योंकि यह घटना हुई थी, भारतीय वायुसेना ने हवाई हमला भी किया था और इस हमले में कई लोग मारे भी गए थे और कई घायल भी हुए थे। ये आधा सच है। इस सच का एक दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह पता लगाना भी है कि आखिरकार 4 मार्च 1966 को भारतीय वायुसेना को यह कार्रवाई क्यों करनी पड़ी थी?
इतिहास गवाह है कि भारतीय सेना को यह कार्रवाई मजबूरी में करनी पड़ी थी और इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि तत्कालीन मिजोरम जो तब भारत के असम राज्य का ही एक हिस्सा था को विदेशी घुसपैठियों के जबरदस्त हमले का सामना करना पड़ा था। पड़ोसी देश मयामार से आए घुसपैठियों के हमले में उन पर कार्रवाई करनी जरूरी हो गई थी। इस कारवाई में अनेक मिजोरम निवासी भारतीय भी मारे गए थे और घायल हुए थे। अगर तब वायुसेना ने यह अभियान नहीं चलाया होता तो पूरा मिजोरम ही भारत के हाथ से निकाल जाने की संभावना बन गई थी।
भारतीय वायुसेना ने बहुत सोच विचार के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इस अभियान की इजाजत मांगी थी तो उन्होंने अपने ही देशवासियों पर अपनी ही वायुसेना का हमला करने से साफ इनकार कर दिया था। कई दिन की कशमकश के बाद जब वायुसेना का हमला करना जरूरी समझा गया तब भी इंदिरा गांधी ने भारी मन से इसकी इजाजत देते हुए वायु सेना के अधिकारियों से इतना इंतजाम जरूर करने को कहा था कि इस कार्रवाई ए प्रभावित होने वाले भारतीयों के राहत और पुनर्वास के इंतजाम भी साथ – साथ किए जाएं।
इंदिरा गांधी के इन निर्देशों के अनुपालन में ही 1966 के उस अभियान के दौरान वायुसेना की दो टुकड़ियां समांतर रूप से मिजोरम के आसमान में चक्कर लगा रही थीं। एक तरफ जहां हमारी वायुसेना की एक टुकड़ी मयामार की सीमा लांघ कर आए विदेशी घुसपैथियों परकर रही थी तो दूसरी तरफ भारतीय वायुसेना की ही एक अन्य टुकड़ी वायुसेना के हमले से हताहत हुए लोगों की मरहम पट्टी और इलाज का काम करने के साथ ही स्थानीय लोगों का पेट भरने के लिए खाने – पीने का सामान,दवाइयां, सोने के लिए बिस्तर और पहनने के लिए कपड़ों का इंतजाम करने में व्यस्त थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अगस्त 2023 को लोकसभा में दिए अपने भाषण में 4 मार्च 1966 को मिजोरम में हुई हवाई हमले की इस घटना का जिक्र तो जरूर किया लेकिन उन्होंने यह बताना जरूरी नहीं समझ कि अगर देशहित में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भरे मन से यह फैसला न लिया होता तो आज मिजोरम इस देश का हिस्सा नहीं होता। नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते संसद को यह जानकारी देना भी जरूरी नहीं समझा कि उस समय देश को सीमा पार से किस तरह के खतरों का सामना करना पड़ रहा था।
एक तरफ 1962 में चीन के साथ युद्ध में हुई पराजय से देश के सैन्य संसाधन सीमित हो गए थे तो दूसरी तरफ 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध का संत्रास भी देश को झेलना पड़ रहा था। प्रसंगवश यह जां लेना भी जरूरी है कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र एक तरफ बांग्ला देश की सीमा से लगा है तो तीसरी तरफ चीन की सीमा भी इससे लगती है । उधर मयामार के साथ तीसरी सीमा भी इस क्षेत्र से लगती है।
विषम परिस्थितियों में भारत सरकार को अपने ही देशवासियों के खिलाफ इस तरह का हवाई हमला करने की जरूरत किसी मजबूरी में ही पड़ी होगी । बात – बात में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को देश द्रोही के खिताब से अलंकृत करने वाले प्रधानमंत्री के इस तरह के बयां को कैसे लिया जाए इसका निर्णय तो आने वाला कल ही करेगा लेकिन हैरत इस बात की भी होती है कि अपने नेता की देखा देखी भाजपा के छोटे नेता भी इस तरह की ऊटपटाँग हरकतों से बाज नहीं आते।
इसी का एक नमूना है भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी अमित मालवीय का सोशल मीडिया पर दिया गया वहबयां जिसमें उन्होंने कहा था कि 4 मार्च 1966 को मिजोरम में भारतीय वायुसेना के जिस विमान ने मिजोरम में अपने ही देशवासियों पर बम गिराए थे उसके पायलट काँग्रेस के दो बड़े नेता राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी थे । बम गिराने के उनके इसी योगदान को देखते हुए ही इंदिरा गांधी ने उनको काँग्रेस पार्टी और सरकार में उच्च पदों से नवाजा था ।
राजेश पायलट के बेटे सचिन ने भाजपा नेता के इस झूठ का करारा और साक्ष्य के साथ जवाब दिया है। सचिन पायलट का कहना है कि उनके पिता ने वायुसेना के एक देशभक्त सैनिक होने के नाते हवाई हमले तो किए थे लेकिन मिजोरम में नहीं बल्कि 1971 में बांग्ला देश की मुक्ति के लिए हुए युद्ध में उन्होंने पाकिस्तानी सेन पर हवाई हमले किए थे।
1966 की घटना के संदर्भ में सचिन पायलट ने साक्ष्यों के साथ यह जानकारी दी कि उनके पिता राजेश पायलट को वायुसेना में कमीशन ही नवंबर 1966 में मिला था तो कमीशन मिलने से 7 महीने पहले वो मिजोरम जैसे किसी हवाई हमले का हिस्सा कैसे हो सकते थे। कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा राजस्थान कांग्रेस पार्टी की कथित गहलोत बनाम पायलट लड़ाई में सचिन पायलट को उकसा कर कांग्रेस से अलग करने की कोशिश में लगी हुई थी। भाजपा नेता मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह राजस्थान में सचिन पायलट को भी काँग्रेस से अलग कर भाजपा में शामिल करने की कोशिश में लगे हुए थे। जब किसी तरह भाजपा नेताओं को इस काम में सफलता नहीं मिली तो उन लोगों ने सचिन पायलट को बदनाम करने का यह तरीका खोज लिया ।