सर्कस के लिए पंजीकृत पशुओं एवं निरीक्षण में मिले पशुओं की संख्या में अंतर पर अदालत ने जताई हैरानी

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने एडब्ल्यूबीआई और सीजेडए को अपने शपथपत्रों में उनके पास पंजीकृत सर्कस के सभी पशुओं की स्थिति की जानकारी देने का आदेश दिया और मामले को आगे की सुनवाई जनवरी 2021 तक के लिए स्थगित कर दिया।

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने देशभर में सर्कसों के निरीक्षण के दौरान भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) द्वारा पाए गए पशुओं की संख्या और उसके पास पंजीकृत पशुओं की संख्या में बड़े अंतर को मंगलवार को ‘‘गंभीर’’ और ‘‘हैरान’’ करने वाला करार दिया।

अदालत ने एडब्ल्यूबीआई और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) को लापता पशुओं के बारे में पता लगाने को कहा।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने एडब्ल्यूबीआई और सीजेडए को अपने शपथपत्रों में उनके पास पंजीकृत सर्कस के सभी पशुओं की स्थिति की जानकारी देने का आदेश दिया और मामले को आगे की सुनवाई जनवरी 2021 तक के लिए स्थगित कर दिया।

दरअसल, भारतीय पशु संरक्षण संगठन के परिसंघ (एफआईएपीओ) ने अदालत को सूचित किया था कि एडब्ल्यूबीआई की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार उसके पास सर्कस के करीब 740 पशु पंजीकृत हैं, लेकिन सर्वेक्षण में उसे केवल 28 जानवर ही मिले।

अदालत ने एडब्ल्यूबीआई से कहा, ‘‘यह गंभीर मामला है। आपके पास पंजीकृत 740 में से केवल 28 जानवरों की जानकारी उपलब्ध है। शेष का क्या हुआ?’’

अदालत ने इस बात का भी जवाब मांगा कि बोर्ड ने देश के 28 सर्कसों में से केवल 19 सर्कस का ही निरीक्षण क्यों किया।

अदालत ने बोर्ड से यह भी जानकारी देने को कहा कि कितने सर्कस इस समय चालू हैं और जो सर्कस बंद हो गए हैं, उनके पशुओं का क्या हुआ।

सीजेडए के एक अधिकारी ने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि बंद हो चुके सर्कस के पशु और एडब्ल्यूबीआई के तहत पंजीकृत नहीं किए गए पशुओं का मामला संबंधित राज्य वन्यजीव प्राधिकरण की जिम्मेदारी है।

अदालत ने जानवरों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ‘पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल’ (पेटा) और भारतीय पशु संरक्षण संगठन के परिसंघ (एफआईएपीओ) की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

इससे पहले, सीजेडए ने अदालत को बताया था कि गुजरात का ‘ग्रेट गोल्डन सर्कस’ पूरे देश में एकमात्र ऐसा सर्कस है जिसे वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत मान्यता प्राप्त है और प्राधिकारी इसकी मान्यता वापस लेने की प्रक्रिया आगे बढ़ा रहे हैं।

याचिका में दावा किया गया है कि कोविड-19 संक्रमण और इसके कारण लागू किए गए लॉकडाउन के कारण सर्कसों के लिए पशुओं को भोजन उपलब्ध कराना मुश्किल हो रहा है और ये पशु भुखमरी के विभिन्न चरणों में हैं।

याचिका में केंद्र को 2018 के पशु प्रदर्शन (पंजीकरण) संशोधन नियम तत्काल अधिसूचित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। यह अधिनियम सर्कस में कलाबाजी दिखाने वाले पशुओं का प्रदर्शन करने और उनके प्रशिक्षण पर रोक लगाता है।

एफआईएपीओ ने पशु क्रूरता निवारण कानून की धारा 21 से धारा 27 तक की वैधता को चुनौती दी है क्योंकि वे सर्कस में पशुओं के प्रदर्शन और इसके लिए उनके प्रशिक्षण की अनुमति देते हैं।

 

First Published on: November 17, 2020 6:34 PM
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