रविवार की कविता : दर्द को समेटती, मन की किरचें सम्हालती…


सुमन सिंह का जन्म मुंबई, प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ और सेंट जान्स कॉलेज, आगरा से अंग्रेजी साहित्य में स्नात्कोत्तर। कई पुरस्कारों से पुरस्कृत एवं कई देशों की विदेश यात्रा।



लड़की मन के एक कोने में रहती है

और मैं रहती हूँ बाक़ी सारे हिस्से में

अलग-अलग खिड़कियों के दायरे में

लेकिन लड़की चुपचाप

उसी कोने में सिमटी रहती है

कभी उदास,कभी चंचल,

कभी सुख से आपन्न,

ढ़ेरों खिलखिलाहटें लिये,

कभी आँसुओं को सहेजती,

दर्द को समेंटती,मन की किरचें सम्हालती

कि इन सब में है वो ख़ूब माहिर

लड़की जो ठहरी

बड़े मन और गहरे दिल वाली…

झाँकती है गाहे ब गाहे चकित नज़रों से कभी

कि संसार के कई दृश्य खींचते हैं उसे

हर बार भींचती है मुझे

कि उसे निकल जाना है मन से

हर बार उसे रोक लेती है कोई मनुहार…

उसे हरदम पता है शायद-

कि वो है तो मैं हूँ,वो है तो अहसास हैं सारे,

वो है गड्ड-मड्ड होने से बची हैं चीज़ें

तुम रहना लड़की हमेशा साथ

कि तुम्हारे होने से ही मैं हूँ सचमुच!!

2.

थोड़ी सी मैं तुम्हारे पास छूट गयी हूँ

थोड़े से तुम मेरे साथ चले आये हो

तुम्हारी कमीज़ की कॉलर के नीचे

छिपा आयी हूँ अपनी मुस्कान

और कुछ उम्मीदें भी…

जब होती हैं मेरी आँखें नम

और सन्नाटा आसपास

तो रिसते हैं आँसू आँखों के कोरों से

और मन में चलता है यादों का अंधड़

थम जातें हैं अहसास

उग आते हैं कई दर्द

तभी सामने आता है

मेरे साथ चला आया

तुम्हारा थोड़ा सा वजूद

और उसके साथ स्नेह की थपकी भी

कि बहुत है ये उबर जाने को …

3.

जैसे चक्का चलता चाक का

कुछ वैसे ही चलता जीवन

जिसपर उगतीं हैं तराशे हुए

प्रेम, निष्ठा और घृणा के

क़िस्सों में ढलीं कहाँनियाँ

जिनके निकष पर तने होते

कई बहुमूल्य और कुछ

अनमने सम्बन्ध

धारीदार नक़्क़ाशी के गहरे निशान

ताउम्र खटकाते हैं मन

जैसे चलती गाड़ी के बक्से में

खटकता कोई ताला ।

4.

रहो कुछ कच्चेपन के साथ मेरे भीतर

कि जब तब तुम्हारी कचास

मुझे खटास से भरती रहे

कि तुम्हारे न होने के अहसास की

ये ऐसी उदासी है

जो नहीं छँटती जल्दी

फैल जाती है आँखों में अंजन की तरह

मेरे बिना जाने

कि मैं पक चुकी हूँ और

कच्चेपन को फिर से महसूसना चाहती हूँ

तुम्हारे होने के स्वाद से…

5.

सड़क के छोर पर वो कहीं चुपचाप,

बैठी तक है बाट रोटी की

दिन मुँदे,जब पसीना बन रूपैय्या

बैठ जायेगा हथेली पर आकर

शान्त करने पेट की नियमित तृषा को,

बाँटता है ज्योतिषी भाग के कुछ अंश

काली कठोर हँथेली की तहों से…

कि बरस जायेगा जब बढ़ेगा दर्द उसका

जिसकी भयाकुल आँख की पुतलियाँ

डोलती हैं नौनिहालों की पदचाप और

मन की काली जुम्बिश की धुरी पर…

6.

पीड़ा के गहरे सुख,

नींद में झर जाते हैं

वहाँ खिलते हैं

धीरज और शान्ति के फूल

जिनमें विकसता

चित्त का माधुर्य

मन का कोना कहीं मोथरा हो

झरता रह-रह,

मन की आर्दता लीप देती उस झरन को,

माँडती कुछ दृश्य सुख और मोह के ताबीज़ के।



Related