रविवार की कविता : ग्लोबल होने की आहट…


राजनीति और समाजनीति में शुद्धतावाद बहुत खतरनाक हैं। विश्व के कई देशों में आज भी राजनीति और समाज का विमर्श श्वेत-अश्वेत, मालिक-दास और आर्य-अनार्य के इर्द-गिर्द चलती है। जबकि सचाई यह है कि सभ्यता के विकास में कोई नस्ल और जाति अपनी शुद्धता का दावा नहीं कर सकता है। मिली-जुली संस्कृतियों ने ही इतिहास रचा है।
उपेन्द्र कुमार चौधरी दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। साहित्य से अनुराग उनका पुराना शगल हैं। बिहार में जन्मे, शिक्षा-दीक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिल्लिया में प्राप्त की। लंबे समय तक सहारा समय में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे। इस समय स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।



हम सबमें शामिल हैं

कुछ हूण

कुछ कुषाण

कुछ बैक्ट्रियाई

कुछ पार्थियाई

कुछ द्रविड़

कुछ आर्य

असंख्य जाने-अनजाने नस्ल।

हम सबके सोच में शामिल हैं

कुछ ऋषि

कुछ संन्यासी

कुछ फ़कीर

कुछ सुकरात

कुछ सार्त्र

कुछ सीमॉन

कुछ मार्टिन

कुछ मार्क्स

कुछ रूसो

कुछ गांधी

असंख्य जाने-अनजाने दर्शन।

हमारे इतिहास के स्रोतों में शामिल हैं

कुछ मेगास्थनीज

कुछ फ़ाह्यान

कुछ टेसियस

कुछ सेल्युकस

कुछ टॉलमी

कुछ अलबरूनी

कुछ इसामी

कुछ इब्नबतूता

असंख्य जाने-अनजाने छोटे-बड़े ब्योरे।

हम सबके पोशाकों में शामिल हैं

कुछ कुर्ते

कुछ पायज़ामें

कुछ टोपियां

कुछ धोतियां

कुछ साड़ियां

कुछ समीजें

कुछ लुंगियां

कुछ कोट

कुछ पैंट

असंख्य जाने-अनाजने पहनावे।

हम सबके स्वाद में शामिल हैं

कुछ मिठाइयां

कुछ चाय

कुछ आलू

कुछ नूडल

कुछ कंटिनेंटल

असंख्या जाने-अनजाने भोजन।

हम सबके सफ़र में शामिल हैं

कुछ काठ गाड़ियां

कुछ ट्रेनें

कुछ हवाई जहाज़

कुछ पनिया जहाज़

असंख्य जाने-अनजाने वाहन।

हम सबके संगीत में शामिल हैं

कुछ बंसी

कुछ मृदंग

कुछ तबले

कुछ हार्मोनियम

कुछ पखावज

कुछ सिंथेसाइज़र

असंख्य जाने-अनजाने राग-रागिनी।

हम सबके खेल में शामिल हैं

कुछ शतरंज

कुछ कबड्डी

कुछ फ़ुटबॉल

कुछ घुड़दौड़

कुछ पोलो

कुछ बैडमिंटन

कुछ क्रिकेट

असंख्या जाने-अनजाने क्रीड़ा।

हम सबकी खोज में शामिल हैं

कुछ काग़ज़

कुछ प्रिंटिंग

कुछ सिंथेटिक पदार्थ

कुछ मोबाइल

कुछ कंप्यूटर

असंख्य जाने-अनजाने आविष्कार।

हम सबके भीतर शामिल हैं

कुछ सभ्यतायें

कुछ मान्यतायें

कुछ संस्कृतियां

कुछ जातियां

कुछ प्रजातियां

कुछ धर्म

कुछ देश

असंख्य जाने अनजाने अहसास

जो हमें ले जाते हैं सामूहिक होने के बीच

साध लेते हैं निशाने

और

तान देते हैं प्रतिक्रियायें

ताकि

दुनिया के किसी छोर पर

धड़क सके मुरझाती हुई कोई मुस्कुराहट !



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