किसानों को देशद्रोही और खालिस्तानी मत कहिये, उन्हें सलाम करिये !

जब सरकार को किसानों की सख्त जरूरत थी, किसानों दवारा उत्पादित अन्न की जरूरत थी, तो सरकार ने हरित क्रांति का नारा दिया। जबकि इसी हरित क्रांति ने आज पंजाब के किसानों को तबाह कर दिया है। हालांकि पंजाब के किसानों की मेहनत से ही देश कृषि में आत्मनिर्भर होकर आबाद हो गया।

अगर पंजाब के किसान देश के कृषि क्षेत्र को कारपोरेट के कब्जे से बचाने की लड़ाई में अगुवाई कर रहे हैं तो यह उनकी महानता है। किसानों को देशद्रोही और खालिस्तानी मत कहिए, उन्हें सलाम करिए। देश के शहरों में रहने वाले मिडिल क्लास, किसानों को सलाम करे जो मिडिल क्लास को सस्ता अन्न, दूध, साग-सब्जी उपलब्ध करवा रहे हैं।

हालांकि केंद्र सरकार का रवैए में कोई परिवर्तन नहीं आया तो आने वाले दिनों में जोरदार मार मोदी समर्थक मिडिल क्लास को ही पड़ेगी। शहरों में रहने वाले मिडिल क्लास को अंबानी के रिलांयस स्टोर से 100 रुपए किलो आटा और 200 रुपए किलो चावल खरीदना पड़ेगा। किसान से 10-20 रुपये किलो आलू और प्याज खरीदने वाले शहरी मिडिल क्लास को मजा मोदी सरकार ने चखा दिया है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के साथ ही आलू-प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी है, जिसकी मार शहरी मिडिल क्लास पर पड़ी है।

आज पूरे देश में किसान मजदूर हो गया है,बदहाल है। लेकिन किसान अपनी हक की लड़ाई लड़ने के बजाए धर्म और जाति की लडाई में फंस गया है। बिहार और यूपी के किसान इसके उदाहरण है। जो किसान होने से पहले हिंदू है, मुसलमान है, अगड़ा है, पिछड़ा है। वैसे में पंजाब का किसान सबसे पहले खेती को बचाने के लिए आगे आया है। खेती और किसानी को बचाने के लिए लड़ी गई लड़ाइयों में पंजाब का गौरवमयी इतिहास है।

पंजाब के किसानों ने अपने हक की लड़ाई भी लड़ी है औऱ देश की बड़ी आबादी को अन्न भी उपलब्ध करवाया है। कृषि क्षेत्र के हकों की लड़ाई लड़ने में और उसे हासिल करने में पंजाब हमेशा अगुवा रहा है। 1939 में ब्रिटिश राज के संयुक्त पंजाब में किसानों की हितों की सुरक्षा के लिए पंजाब एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केट एक्ट पारित किया गया था।

इसके पीछे उस समय के बड़े किसान सर छोटू राम का दिमाग था। इसी के तहत पहली बार मार्केट कमेटी का गठन किया गया, जिसमें दो तिहाई सदस्य किसान थे। आज उसी मंडी और मार्केट कमेटी को कारपोरेट के दबाव में वर्तमान एनडीए सरकार खत्म करना चाहती है।

आखिर सरकारी मंडी सिस्टम और एमएसपी की इतनी बड़ी व्यवस्था को किसान कैसे खत्म होने देंगे ? 1965 में किसानों के उत्पादन को उचित मूल्य उपलब्ध करवाने के लिए एमएसपी की शुरूआत की गई। एमएसपी के पीछे बहुत ही अच्छे उद्देश्य थे। सरकार चाहती थी कि देश को अनाज में आत्मनिर्भर बनाया जाए, ताकि दूसरे देशों के सामने अनाज की भीख न मांगनी पड़े।

अनाज में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य देना जरूरी था। तभी 1965 में एग्रीकल्चर प्राइज कमिशन बनाया गया था। बाद में इसका नाम बदल कर कमिशन फार एग्रिकल्चर कास्ट एँड प्राइजेस किया गया।

गेहूं का एमएसपी 1966-67 में पहली बार निर्धारित किया गया। इसके पीछे देश भर के लोगों को भरपूर अनाज उपलब्ध करवाना था। क्योंकि सरकार को पता था कि उचित मूल्य मिलने पर ही किसान इसका ज्यादा उत्पादन करने को उत्साहित होंगे।

आज उसी व्यवस्था को नरेंद्र मोदी सरकार खत्म करना चाहती है, अदानी और अंबानी को देश की पूरी खेती पर कब्जा दिलवाना चाहती है। चुकिं गैस, पेट्रोल और एनर्जी जैसे सेक्टर भविष्य में कम लाभप्रद रहेंगे, इसलिए कभी भी घाटे में न रहने वाले कृषि क्षेत्र पर अदानी औऱ अंबानी की नजर है।

जब सरकार को किसानों की सख्त जरूरत थी, किसानों दवारा उत्पादित अन्न की जरूरत थी, तो सरकार ने हरित क्रांति का नारा दिया। जबकि इसी हरित क्रांति ने आज पंजाब के किसानों को तबाह कर दिया है। हालांकि पंजाब के किसानों की मेहनत से ही देश कृषि में आत्मनिर्भर होकर आबाद हो गया। पंजाब के किसानों ने सिर्फ पंजाब के लिए उत्पादन नहीं किया।

1960 के दशक में जब देश अकाल से जूझ रहा था, अन्न के लिए दुनिया के दूसरे देशों के सामने हाथ फैला रहा था, पंजाब के किसानों ने अन्न उत्पादन का बीड़ा उठाया। देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया।

पंजाब के किसानों ने देश की जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए पंजाब के पानी का दोहन किया। अपनी जमीनें भी खराब की। लेकिन आज उन्हें खालिस्तानी औऱ देशद्रोही कहा जा रहा है। आखिर शुरू से ही बाहरी आक्रमणकारियों का मुकाबला करने वाले पंजाबी आज देशद्रोही कैसे हो गए? आजादी की लड़ाई में भारी योगदान देने वाले पंजाबी देशद्रोही कैसे हो गए ?

शहीद उधम सिंह, शहीद भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी देने वाले पंजाबी देशद्रोही कैसे हो गए ? भाजपा के आईटी सेल को इतिहास पढ़ने की जरूरत है। अगर सिख गुरूओं का इतिहास इन्होंने नहीं पढ़ा है तो उसे जरूर पढ़ ले।

गुरु नानक ने बाबर के जुल्म का विरोध किया। गुरू गोविंद सिंह का इतिहास सबके सामने है। शायद इस इतिहास की जानकारी वर्तमान राष्ट्रवादियों को नहीं है ? दिल्ली के पास धरना दे रहे किसानों के बेटे सरहद पर देश के लिए जान दे रहे है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार किसानों को समझाने की कोशिश कर रहे है कि तीनों कृषि कानून किसानों को भारी भरकम फायदा दिलवाएंगे। मोदी तर्क दे रहे है कि पिछली सरकारों ने अबतक किसानों को छला है। पर प्रधानमंत्री यह तो बताए कि किसानों को एमएसपी पंजाब और हरियाणा के अलावा और देश के बाकी राज्यों में क्यों नहीं मिल रहा है ?

बिहार के किसानों से इस बार मक्का 800 रुपये क्विंटल (8 रुपये किलो) क्यों खरीदा गया ? इसी मक्के का आंटा मुकेश अंबानी के रिलांयस स्टोर में 170 रुपये किलो कैसे बेचा जा रहा है? इतना मुनाफा अंबानी कृषि उत्पादों पर कैसे ले रहे है? इस मुनाफे से किसान क्यों वंचित है?

प्रधानमंत्री कहते है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म नहीं होगा। आखिर कोई प्रधानमंत्री की बात पर भरोसा कैसे करे? प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक जो कहा है, वो एक वादा पूरा नहीं हुआ है। रोजगार को लेकर भी मोदी ने तमाम वादे किए थे। लेकिन देश में भारी बेरोजगारी है।

देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डालर तक ले जाने की घोषणा की थी। लेकिन सरकार की अदूरदर्शी नीतियों ने देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था को ही कम से कम 10 प्रतिशत तक सिकुड़ने का संकेत दे दिया है।

मोदी जी ने सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा का वादा किया था, लेकिन उनकी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेच रही है। एयर इंडिया, रेलवे, एयरपोर्ट औऱ भारत पेट्रोलियम जैसे तमाम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचा जा रहा है। आखिर प्रधानमंत्री के वादे पर किसान कैसे भऱोसा करें?

First Published on: December 1, 2020 5:28 PM
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