अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदाई तय हो गई है। लेकिन ट्रंप की विदाई के साथ-साथ ही अमेरिकी लोकतंत्र को लेकर कुछ अहम सवाल खड़े हुए है। क्या फेसबुक, ट्विटर जैसे डिजिटल दुनिया के मल्टीनेशनल कारपोरेशन लोकतंत्र में इस्तेमाल किए जाने वाली शक्तियों के केंद्र के रुप में विकसित हो रहे है ? क्या अमेरिकी लोकतंत्र में राज्य की कुछ शक्तियां फेसबुक और ट्विटर को हस्तांतरित हो गई है, जिसने कुर्सी पर बैठे राष्ट्पति को पूर्व होने से पहले ही अपने मंच पर प्रतिबंधित कर दिया ?
राष्ट्रपति के पद पर बैठे डोनाल्ड ट्रंप को ट्विटर और फेसबुक ने बैन कर पूरी दुनिया को एक संदेश दिया है। संदेश साफ है, संविधान और राज्य से अलग कुछ शक्तियां अब लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और आगे भी वे अपनी भूमिका को और बढाएंगी। ट्विटर और फेसबुक पर ट्रंप को प्रतिबंधित किए जाने से ट्रंप के विरोधी बेशक खुश दिख रहे है, लेकिन अंदर से इस फैसेले से वे भी सहमे हुए है। क्योंकि यह भविष्य में संविधान और उसके आगे के खंभों को प्रभावित करने में इनकी भूमिका और बढ़ सकती है।
अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित हो गया है। हालांकि महाभियोग का प्रस्ताव सीनेट में पारित होगा इसपर शंका है। क्योंकि ट्रंप का कार्यकाल समाप्त होने तक सीनेट की बैठक असंभव दिख रही है। वहीं महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के लिए सीनेट में दो तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए, जो फिलहाल मिलता नहीं दिख रहा है। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता कोशिश कर रहे है कि ट्रंप को 2024 के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अय़ोग्य ठहराया जाए।
चर्चा है कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद ट्रंप के खिलाफ सीनेट में महाभियोग प्रस्ताव पारित करवाया जा सकता है। हालांकि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट बाइडेन के रास्ते में बाधा बन सकता है, जहां कंजरवेटिव जजों का बहुमत है। लेकिन ट्रंप के लिए बडा झटका नीचले सदन में 10 रिपब्लिकन सांसदों का ट्रंप का विरोध करना है। ये सांसद ट्रंप के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में खड़े थे। ट्रंप पहले राष्ट्रपति है जिनके खिलाफ अमेरिका में दूसरी बार महाभियोग लाया गया है।
हालांकि ट्रंप की विदाई कुछ दिनों में हो जाएगी। लेकिन ट्रंप की हरकतों ने पूरी दुनिया के सामने अमेरिकी लोकतंत्र को नंगा कर दिया है। अमेरिका की पुलिस को नंगा किया है। अमेरिका के पुलिस-तंत्र की नस्ली भावनाओं को दुनिया के सामने ला दिया है। अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का खेल भी सामने आ गया। ट्रंप समर्थकों ने संसद भवन केपिटल हिल में जबरन घुसने की कोशिश की। वहां हिंसा हुई। कैपिटल हिल में घुसे ट्रंप समर्थक प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस का व्यवहार मधुर था।
अमेरिकी पुलिस का व्यवहार पुलिस के नस्ली चेहरा को सामने लेकर आया है। गोरों के वर्चस्व वाली पुलिस ने ट्रंप समर्थक गोरे प्रदर्शनकारियों से बहुत ही मधुर व्यवहार किया। सवाल उठ रहे है कि अगर गोरे अमेरिकन की जगह काले अमेरिकन प्रदर्शनकारी होते तो पुलिस क्या करती? क्या उनका यही व्यवहार होता? निश्चित तौर पर अगर प्रदर्शनकारी काले अमेरिकन होते तो पुलिस कैपिटल हिल में उनके प्रवेश से पहले ही गोली चला देती।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ट्विटर और फेसबुक पर बैन कर दिया गया है। दो मल्टीनेशनल कारपोरेशन की इस कार्रवाई ने दुनिया के कई देशों को परेशान किया है। इस परेशानी के वाजिब कारण है। दरअसल ट्विटर और फेसबुक ने जो फैसले ट्रंप को लेकर किए है, उसपर बहस हो रही है। प्रतिबंध के विरोधयों का तर्क है कि ट्विटर और फेसबुक का ट्रंप को प्रतिबंध करने का फैसला राज्य और सरकार के अधिकार क्षेत्र का फैसला है।
सवाल उठ रहे है कि क्या कोई बहुराष्ट्रीय कारपोरेशन किसी मुल्क के अंदर कानून के अनुसार राज्य की तरफ से लिए जाने वाले फैसले को खुद ले सकता है? मामला गंभीर इसलिए है कि फेसबुक और ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप को प्रतिबंधित नहीं किया,बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया है। दुनिया के कई देशों ने दोनों केंपनियों के इस फैसले पर चिंता जाहिर की है।
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने ट्विटर और फेसबुक के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस तरह के फैसले लेने का अधिकार सिर्फ राज्य को है। कोई भी प्राइवेट कारपोरेशन अपने प्रस्ताव से किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं छीन सकती है। ट्विटर और फेसबुक दवारा ट्रंप को प्रतिबंधित करने के फैसले से अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी के नेता भी नाराज है। उनकी नाराजगी भी इस बात को लेकर है कि दो कारपोरेशनों ने एक राष्ट्रपति को प्रतिबंधित करने का फैसला लेकर राज्य की शक्तियों को चुनौती दी है।
फेसबुक और ट्विटर ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर राज्य के अधिकार क्षेत्र वाले मामले में फैसला लिया है। गंभीर सवाल यह भी है कि फेसबुक औऱ टविटर ने ट्रंप को प्रतिबंधित करने का फैसला तब लिया जब जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनना पूरी तरह से तय हो गया। अमेरिकी सीनेट में डेमोक्रेत मजबूत हो गए, रिपब्लिकन कमजोर हो गए। अमेरिकी कांग्रेस में बाइडेन की जीत पर मुहर लग गई। इससे पहले भी ट्रंप ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल अपने हिसाब से कर रहे थे। लेकिन उन्हें बैन करने की हिम्मत ये दोनों कंपनियां नहीं कर पायी थी। अब जो बाइडेन को खुश करने के लिए ट्रंप को बैन किया गया।
फेसबुक और ट्विटर के फैसले पर गंभीर सवाल उठने के कुछ और कारण है। दरअसल दुनिया के कई देशों मे सता पर आसीन लोग और उनके विरोधी इन दोनों मीडिया प्लेटफार्मों का इस्तेमाल घृणा और हिंसा फैलाने के लिए कर रहे है। दुनिया के कई देशों में ये दोनों माध्यम घृणा फैलाने का माध्यम बना है। कई देशों में फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से धार्मिक, जातीए और नस्ली दंगों को हवा दी गई है। लेकिन दोनों माध्यमों ने इसे रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी।
भारत जैसे देशे में फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल घृणा फैलाने के लिए किया जा रहा है। लेकिन भारेत में किसी बड़े नेता को आजतक फेसबुक और ट्विटर ने प्रतिबंधित नहीं किया है। दुनिया के कुछ देशों में राजनीति को प्रभावित करने के लिए भी फेसबुक का इस्तेमाल किया गया है। चुनावों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने का महत्वपूर्ण माध्यम फेसबुक बन गया। राजनीतिक दलों ने अपने आईटी सेल बना लिए है। इसका दुरूपयोग चुनावों में जमकर हो रहा है।
भारत, ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक में फेसबुक के माध्यमों से चुनावों को प्रभावित किया जा रहा है। 2016 में संपन्न हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए फेसबुक का इस्तेमाल करने का आरोप लगे। कहा जाता है कि रूस ने फेसबुक का इस्तेमाल अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया। लेकिन फेसबुक इन आरोपों पर कभी गंभीर नहीं दिखा। फेसबुक सिर्फ अपने आर्थिक लाभ को देखता रहा।