देवभूमि को कहीं सांप्रदायिक जहर लील न जाए!


आमतौर सब लोग भाईचारे से रहते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां संघी तत्वों ने यहां अपनी पैठ बढ़ा ली है। तो कुछ कठ मुल्लों ने जवाबी तौर पर कौम के लोगों को कट्टर मुसलमान बनाने की आत्म घाती गतिविधियों को रफ्तार दी है। इससे भगवा नफरती अभियान और तेज हुआ है। इनका बीमार बहुत बीमार हिंदुत्व एजेंडा तेज है।


वीरेंद्र सेंगर
मत-विमत Updated On :

देवभूमि यानी उत्तराखंड। प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक यह भू भाग क ई मायनों में न्यारा है। पवित्र -पावन गंगा यहीं से निकलती है। बद्रीनाथ-केदारनाथ के प्रसिद्ध हिंदू मंदिर भी हैं । चार धाम की यात्रा के लिए यहां हर साल लाखों लोग जुटते हैं। यूं ही ये धरा देव भूमि नहीं कहलाती।

यहां के आम लोग बहुत सरल-सहज हैं। गजब के भाई चारे की संस्कृति रही है। यूं तो ये सूबा सवर्ण प्रभावी है। अधिसंख्य आबादी इसी वर्ग की है। लेकिन दलितों और पिछड़े वर्गों की खासी आबादी है। जन जातियों के लोग भी हैं। सिखों का एक बड़ा तीर्थ बहुत ऊंचाई पर है। तराई क्षेत्र में खासी सिख आबादी है। अपनी अटूट मेहनत से वे संपन्न हुए हैं।

मुस्लिम आबादी का प्रतिशत पड़ोसी यूपी के मुकाबले काफी कम है। जो हैं, वे ज्यादातर हुनरमंद मेहनतकश हैं। सबको उनकी जरूरत रहती है। आमतौर सब लोग भाईचारे से रहते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां संघी तत्वों ने यहां अपनी पैठ बढ़ा ली है। तो कुछ कठ मुल्लों ने जवाबी तौर पर कौम के लोगों को कट्टर मुसलमान बनाने की आत्म घाती गतिविधियों को रफ्तार दी है। इससे भगवा नफरती अभियान और तेज हुआ है। इनका बीमार बहुत बीमार हिंदुत्व एजेंडा तेज है।

यहां मुसलमानों से टकराव का कोई इतिहास नहीं रहा। क्योंकि वे बहुत कम जो रहे हैं। जो हैं, वे मजदूर समाज में आते हैं।कुशल मिस्त्री हैं।कबाड़ी ,प्लंबिंग, फैब्रिकेशन आदि कामों में ज्यादा हैं। फेरीवाले के तौर पर वे सुदूर पहाड़ों तक पंहुचे हैं। शहरी क्षेत्रों में इन लोगों ने झोपड़ी से लेकर पक्के घर भी बना लिए हैं। ये परिवार आमतौर पर कांग्रेस समर्थक रहे हैं।लेकिन पिछले सालों में बहुत कुछ बदला है। कांग्रेस कमजोर हुई है।हिंदुत्व की उग्र सियासत की हनक बढ़ी है। मुस्लिम बढ़ती आबादी का झूठा हौव्वा दिखाकर, संघी यहां अपना सांप्रदायिकता का एजेंडा चलाते हैं। खूब जहरीला वातावरण बनाते आए हैं। भाजपा, इसी के चलते यूपी की तरह, यहां भी सत्ता शिखर पर है।

कर्नाटक में भाजपा हारी है।उसका सांप्रदायिक कार्ड फेल हुआ है।यहां भी इससे कांग्रेस में नयी जान पड़ी है। 2024 की बड़ी चुनावी चुनौती टीम मोदी के सामने है। वो एक एक सीट पर नजर लगाए हैं। इधर कांग्रेस के बड़े सेकुलर कमांडर हरीश रावत एक बार फिर जोश में आ गये हैं। इसीसे कांग्रेस की रणनीति को फ्लाप करने के लिए यहां मुस्लिम विरोधी अभियान तेज हुए हैं। पिछले महीने पुरोला (उत्तरकाशी) में मुसलमानों के खिलाफ डरावना घृणा अभियान चला।

कथित तौर पर एक बालिका के अपहरण के मामले को यहां लव जिहाद करार किया गया।भगवापुरम की नफरती टोलियां सक्रिय हुईं।इन्होंने कस्बे के मुस्लिम दुकानदारों के खिलाफ अभियान तेज किया। पोस्टर लगा दिये कि मुस्लिम दुकानदार दो दिन में पैकिंग करके भाग जांए।वर्ना 72 हूरों तक भेज दिए जांएगे। साफ तौर पर मृत्यु दण्ड का अल्टीमेटम था। दहशत बरपा हुई। 42मुस्लिम दुकानदार डर से परिवार सहित भाग गये।

गोदी मीडिया ने पीड़ितों के खिलाफ ही माहौल बनाया। इससे दहशत और बढ़ी। वो तो सेक्यूलर सोच वाले सोशल मीडिया के मंचों से सही तस्वीर सामने आयी। इससे दिल्ली से लेकर देहरादून तक हुक्मरानों की नींद टूटी। वैसे भी लंदन से लेकर न्यूयॉर्क तक हलचल है। मोदी सरकार कटघरे में है। सवाल हैं कि भारत में अल्पसंख्यक आबादी को डराया जा रहा है।भेदभाव होता है। खुद मोदी जी सफाई देते बेचैन देखे जा रहे हैं। उन्हें जबरन भारत में मजबूत लोकतंत्र की दुहाई देने पड़ रही है। देश के अंदर भी एकजुट हो रहे विपक्ष ने दबाव बढ़ाया है।

शायद इसी से राज्य सरकार सतर्क हुई। सीएम धामी के निर्देश पर जहरीले बजरंगियों पर शिकंजा कसा। किसी तरह लाज बचाने के लिए पलायन कर भागे कुछ दुकानदार वापस बुलाए गये। यह कहना ठीक रहेगा कि यहां के युवा सीएम धामी जी पक्के संघी होने के बावजूद एक रहम दिल वाले इंसान हैं। वे जानते हैं कि कट्टरपंथी हावी हुए, तो विकास की गाड़ी एकदम ठप्प हो जाएगी। ऐसे में उन्होंने जोखिम लेते हुए संघ के कुछ बड़े नेताओं से भी नाराजगी जाहिर की। तब कहीं स्थिति कुछ सुधरी। फिर भी पुरोला से बही नफरती हवा एकदम थमी नहीं है।

गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक उग्र हिंदुत्व का एजेंडा चल पड़ा है।मुसलमानों को डराया जा रहा है,ताकि नाराज जनता हिंदू-मुस्लिम झांसे में ही उलझ जाए। ऐसा हो भी रहा है। .. . . .. बात हाल की है।मेरे एक खांटी प्रगतिशील विचारों वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति के फिल्मकार मित्र हैं। ये भी नफरती अभियान की चपेट में हैं। सुदर्शन व्यक्तित्व वाले मित्र बहुत मृदु भाषी हैं। तीन-चार साल पहले ही उन्होंने भी मेरे उत्तरखंडी गांव में ही छोटा सा आशियाना बनाया है। छोटी सी काटेज। जो नायाब फूलों से भरी रहती है। हमारे मित्र की पत्नी बिहार के एक पूर्व राज परिवार की हैं।फ्रेंच की प्रोफेसर हैं। जानीमानी अनुवादक हैं। उन्हें भी प्रकृति से बहुत लगाव है। दोनों बीच बीच में दिल्ली से आते रहते हैं ।दोनों समाजसेवी भी हैं सो, गरीब बच्चों को पढ़ाने से लेकर बहुत कुछ सिखाने की कोशिश करते हैं। एकदम निस्वार्थ।

पुरोला घटना के बाद कुमाऊं भी गर्म किया जा रहा है। इसी अभियान के तहत हमारे सेक्यूलर मित्र की तरफ भी भगवापुरम के कुछ लोगों की निगाह गयी। खासतौर इसलिए कि उनकी नजर में इन्होंने भी लव जिहाद के चलते राजपूत लड़की को फंसाया होगा। संयोग से दोनों मेरे अच्छे मित्र हैं। संघियों की सड़ी हुई सोच पर हंसी ही आती है। मुझे दो दिन पहले गांव के एक शुभ चिंतक ने कहा कि आप अपने फिल्मकार मित्र को बोलिए, कुछ दिन यहां न लौंटे। क्योंकि उनको लेकर खराब बातें हो रही हैं। यही कि गांव में जेएनयू (हांलाकि वे जेएनयू में कभी नहीं पढ़े) वाला मुस्लिम परिवार कैसे घुस आया? …. अनौपचारिक पंचायत में यहां तरह तरह की आशंकाएं जाहिर हुईं। उस डीलर से पूछा गया जिसने सवा नाली का प्लाट दिलाया था। वो भी क्या करता ? उसने भी मासूम सफाई दे दी। यही कहा मैंने तो राजपूत महिला को प्लाट दिलाया था। मुझे क्या पता कि उनके पति हिंदू नहीं हैं।

मित्र, फिलहाल दिल्ली में हैं। मैंने उनसे यही कहा है कि वे फिलहाल यहां की समाजसेवा स्थगित रखें। क्योंकि भगवा मरजी वाडों की नजर में वे आ गये हैं। मैं जानबूझकर मित्र के नाम का खुलासा नहीं कर रहा। हालांकि,तमाम मित्र मेरे प्यारे दोस्त की पहचान जान गये होंगे। क्योंकि ये जगत दोस्त हैं। हर राज्य में उनके चाहने वाले हैं। यह हाल तब है, जबकि मित्र मूल रूप से उत्तराखंड के ही हैं। रुद्रपुर शहर में पुश्तैनी घर है।जिसमें उनके 94वर्षीय अब्बू आज भी रहते हैं।

मित्र ने नैनीताल में कुमाऊं विवि से पढ़ाई भी की थी। बाद में जामिया दिल्ली में तमाम पढ़ाई की। फिल्म जगत में वे बड़ा मुकाम हासिल कर चुके हैं। दो अंतरराष्ट्रीय फिल्म अवार्ड अपने नाम कर चुके हैं। दूरदर्शन में अपर महानिदेशक भी रह चुके हैं। जिस अपने लाल पर, शख्स पर उत्तराखंड को फक्र होना चाहिए, उस शख्सियत के लिए सांप्रदायिक चिंटुओं की सोच कितनी आमानवीय है! इनकी मानसिकता कितनी संकींर्ण है, कितनी जाहिलयत भरी है! क्या यही है हमारी मजबूत डिमोक्रेसी का असली चेहरा है?जिसके नगाड़े माननीय मोदी जी आप अमेरिका में बजाकर अभी आए हैं।कम से कम अपने वचनों की ही लाज रख लीजिए!प्लीज मोदी जी!जल्दी करिए वर्ना बहुत देर हो जाएगी!

(वीरेंद्र सेंगर वरिष्ठ पत्रकार हैं।)