नई दिल्ली। पिछले महीने कतर में 6-रेड स्नूकर विश्व कप जीतकर 24वां विश्व खिताब जीतने वाले पंकज आडवाणी का मानना है कि अन्य खेलों की तरह क्यू स्पोर्टस (स्नूकर और बिलियर्ड्स) में भी खिलाड़ी की फॉर्म अहमियत रखती है जिसकी बदौलत ही वह दोहा में दो ट्राफियां जीतने में सफल रहे।
आडवाणी ने पिछले महीने कतर में पहले अपना एशियाई स्नूकर खिताब बरकरार रखा और फिर 6-रेडर स्नूकर विश्व कप खिताब जीता। 24 अक्टूबर 2003 को अपनी पहली विश्व कप ट्राफी जीतने के बाद इस 36 साल के खिलाड़ी ने लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिताब अपने नाम किये हैं।
आडवाणी से जब पूछा गया कि अन्य खेलों की तरह क्यू खेलों में खिलाड़ी की फॉर्म अहम होती है तो उन्होंने ‘भाषा’ से साक्षात्कार में कहा, ‘‘जी बिलकुल, अभी जैसे कि मैंने कतर में एशियाई स्नूकर खिताब जीता था तो इसके बाद विश्व कप था।
एशियाई स्नूकर चैम्पियनशिप जीतने के बाद आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ था लेकिन गारंटी नहीं थी कि विश्व कप जीतूंगा लेकिन फॉर्म की वजह से जो आत्मविश्वास बढ़ा। लय बनी जो महत्वपूर्ण थी। यह अगले टूर्नामेंट में भी जारी रहती है। उसी आत्मविश्वास की वजह से अगला टूर्नामेंट जीत पाया। ’’
हर समय ‘शांत’ दिखने वाले आडवाणी को भी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में दबाव महसूस होता है जिसके लिये उनके बड़े भाई श्री काफी मदद करते हैं जो ‘परफोरमेंस साइकोलॉजिस्ट’ हैं। उनका कहना है कि खेलते समय कोई रणनीति काम नहीं करती।
उन्होंने कहा, ‘‘हर खेल में हम पहले से कुछ रणनीति नहीं बना सकते, जैसे जैसे खेल आगे बढ़ता है, उसी के हिसाब से आगे बढ़ते हैं। ’’
आडवाणी ने हाल में चेन्नई सुपर किंग्स को चौथा इंडियन प्रीमियर लीग खिताब जिताने वाले महेंद्र सिंह धोनी का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी हैं, वो हर समय खेल की परिस्थिति के हिसाब से रणनीति बनाते हैं, तो हम लोगों को भी ऐसा ही करना पड़ता है।
अगर कोई खिलाड़ी ज्यादा आक्रामक है तो हमें रक्षात्मक होकर खेलना होता है, या कभी कभी हम आक्रमण करते हैं। इसलिये खेल इतना अप्रत्याशित होता है कि आपका दिन नहीं है तो आप कुछ भी करो, आप हार जाओगे और कभी अगर आप अपना 50 प्रतिशत भी खेलो तो आप जीत जाते हो। यही खेल की खूबसूरती है। ’’
टेनिस स्टार रोजर फेडरर को आदर्श मानने वाले आडवाणी ने कहा, ‘‘इतने सारे टूर्नामेंट खेलने के बाद थोड़ा आइडिया तो रहता है कि कैसे खेलना है लेकिन ‘नर्वसनैस’ खत्म नहीं होती। हर टूर्नामेंट के पहले रहती है। चाहे आप राज्य स्तरीय टूर्नामेंट खेलो या फिर विश्व चैम्पियनशिप, थोड़ा दबाव तो रहता है।
प्रदर्शन कैसा रहेगा, टेबल कैसे रहेंगे। प्रतिद्वंद्वी कैसे होंगे, इसी दबाव के लिये हम अभ्यास करते हैं। खुद को सहज रखते हैं। मैं अगर बाहर टूर्नामेंट खेलने जाता हूं तो भारत में जो रहा होता है भूल जाता हूं, पत्नी, मां, भाई या पापा से ज्यादा बात नहीं करता। ’’
यह पूछने पर कि मानसिक रूप से शांत रहने के लिये कुछ करते हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘ये जो खेल है, ये अपने आप में ये ‘मेडिटेशन है, तब मैं ये खेलता हूं कि कुछ और ध्यान में आता ही नहीं है, टेबल को देखता हूं, बॉल को देखता हूं और मारता हूं, तो कुछ सोचता नहीं हूं, इस खेल को जो लोग पेशेवर नहीं बल्कि मनोरंजन के लिये भी खेलते हैं, उन्हें भी बहुत आनंद आता है।’’
आडवाणी ने कहा, ‘‘मेरे बड़े भाई से भी काफी मदद मिलती है। जैसे कभी कभी ‘मोटिवेशन लेवल’ ऊंचा नहीं होता या कम होता था तो उन्होंने बहुत प्रेरित किया। उन्होंने सिखाया कि दबाव से कैसे निपटा जा सकता है। शॉट्स कैसे लगाने है, कभी कभी लय सही नहीं जा रही है तो इसमें बहुत मदद की श्री ने।’’
स्नूकर और बिलियर्ड्स दोनों में संतुलन बनाना काफी मुश्किल होता है लेकिन आडवाणी एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो दोनों में कई विश्व कप खिताब जीत चुके हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘दोनों में संतुलन बनाने बहुत ज्यादा दिक्कत होती है, सबसे बड़ी चुनौती यही होती है। जब मैंने खेल शुरू किया था तो मैंने अपने कोच (अरविंद सावुरी) से बोला कि मैं दोनों में जीतना चाहूंगा, दोनों में विशेषज्ञता हासिल करना चाहूंगा तो वो हंसने लगे, आप नहीं कर सकते हो, सिर्फ एक गेम खेलो, स्नूकर या बिलियर्ड्स। ’’
आडवाणी ने कहा, ‘‘मैंने 2003 में अपना पहला विश्व खिताब स्नूकर में जीता था, 25 अक्टूबर को, मुझे बल्कि पूरा याद भी है, वो दीवाली के दिन थे तो एक अखबार ने लिखा भी था कि ‘यह पंकज का दीवाली गिफ्ट है’ सब पटाखे जलाकर जश्न मना रहे थे, तो बहुत यादगार लम्हा है मेरे लिये। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘उसके बाद मैंने कोच को स्नूकर और बिलियर्ड्स खेलने के बारे में बोला था। कोच और सीनियर खिलाड़ियों ने भी कहा कि नहीं हो पायेगा क्योंकि सभी ने एक ही में विशेषज्ञता हासिल की। लेकिन मैं इस धारणा को बदलना चाहता था, मैं ऐसा करना चाहता था जो किसी ने भी पहले नहीं किया है। ये सब आपके अंदर के भरोसे से होता है और फिर सफलता अपने आप मिलने लगती है। ’’
उन्होंने लॉकडाउन के बाद विश्व खिताब जीतने के बारे में बात करते हुए कहा, ‘‘लॉकडाउन की वजह से अभ्यास तो छोड़ो, फिटनेस पर ज्यादा काम नहीं कर पाया था। फिटनेस और तकनीकी श्रेष्ठता सबसे अहम होती है। यह ‘मसल्स मेमरी’ का खेल है। मुझे क्या, सभी को परेशानी हो रही थी। ’’