प्रतिनिधित्व की पुनर्कल्पना : भाषा, साहित्य और संस्कृति में दिव्यांग


कॉलेज के प्राचार्य प्रो.गिरि ने दिव्यांग व्यक्तियों की बुद्धिमत्ता और विशेषज्ञता के बारे में बात की और कहा कि वे किसी भी तरह से दूसरों से कमतर नहीं हैं।


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दिल्ली Updated On :

दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में 25 और 26 अप्रैल 2024 को ‘प्रतिनिधित्व की पुनर्कल्पना : भाषा, साहित्य और संस्कृति में दिव्यांग’ विषय पर अन्तर्गत द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के सम्मुख आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालना और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समावेशिता की वकालत करना रहा। सम्मेलन में समान अवसर प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. महेंद्र सिंह धाकड़ और राजधानी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. राजेश गिरि सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग के प्रो. तन्मय भट्टाचार्य, सुश्री स्मृति, एसोसिएट प्रोफेसर, मैत्रेयी कॉलेज, तथा कमला नेहरू कॉलेज के इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर नरेश कुमार जैसे गणमान्य उपस्थित रहे। तो वहीं अंतर्राष्ट्रीय वक्ता के रूप में विक्टोरियन कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, मेलबर्न विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया से प्रो. एंथिया स्किनर ऑनलाइन सम्मेलन में शामिल हुई।

सम्मेलन की शुरुआत करते हुए डॉ. महेंद्र सिंह धाकड़ ने ऐतिहासिक परंपरा में दिव्यांगों के प्रति समाजिक अवधारणा और भाषा और साहित्य में दिव्यांग पर चर्चा करते हुए समावेशिता के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के महत्व पर भी जोर दिया। तो वहीं प्रो. तन्मय भट्टाचार्य ने बीज वक्तव्य में दिव्यांगता की अवधारणा पर चर्चा की उन्होंने दिव्यांगता, अकादमिक सक्रियता और शिक्षा के अन्तरसंबन्धों पर गहनता से चर्चा करते दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रतिनिधित्व और समान अवसरों की वकालत की। डॉ. भट्टाचार्य ने “दिव्यांगता” की अवधारणा और सक्षमता को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने रोज़मेरी गारलैंड के योगदान का उल्लेख किया और दिव्यांगता से संबंधित व्याकरणिक निर्भरताओं की खोज और दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए एक दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया।

मैत्रेयी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर सुश्री स्मृति ने ‘भारतीय और ग्रीक पौराणिक कथाओं में दिव्यांग’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किया करते हुए बताया कि भारत और ग्रीक की पौराणिक कथाओं में दिव्यांग व्यक्तियों को खलनायक या नकारात्मक चरित्र के रूप में दर्शाया गया है, जो कि एक गलत धारणा है। जेएनयू के अंग्रेजी अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. बी.आर. अलामेलु ने दिव्यांगता और सौन्दर्य की अवधारणा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सुंदरता सिर्फ़ एक शब्द है, लेकिन अंधे लोगों के लिए यह एक धारणा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सुंदरता दृश्यता से जुड़ी होती है। इसी तरह नरेश कुमार ने “धर्म, संगीत और विकलांगता: गुरुद्वारा में नेत्रहीन गायक” पर एक व्याख्यान दिया और भाई गोपाल सिंह रागी, भाई डरहम सिंह, भाई गुरने सिंह, भाई लखविंदर सिंह जी पर अपनी केस स्टडी को प्रस्तुत की।

कॉलेज के प्राचार्य प्रो.गिरि ने दिव्यांग व्यक्तियों की बुद्धिमत्ता और विशेषज्ञता के बारे में बात की और कहा कि वे किसी भी तरह से दूसरों से कमतर नहीं हैं। उन्होंने कहा- यदि व्यक्ति का मन और मस्तिष्क सही है तो दिव्यांगता जैसी कोई चीज़ नहीं होती। उन्होंने पूरे विश्व में एक अरब से ज़्यादा दिव्यांग आबादी को मुख्य धारा में जोड़ने की वकालत किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि दिव्यांगों के शारीरिक अवरोधों को देखकर हेय भावना और दया दृष्टि के बजाय उन्हें प्यार, सम्मान और समान अवसर दिए जाने चाहिए। प्रो.गिरी ने नज़रिए में परिवर्तन की बात करते हुए आत्मावलोकन की बात पर बल दिया। उनका मानना है कि यदि यह संख्या कुशल मानव पूंजी के रूप में परिवर्तित हो सके तो विश्व जीडीपी के आँकड़े बदल जाएँगे।

सम्मेलन के दूसरे दिन 26 अप्रैल, 2024 को दिव्यांग छात्रों के लिए एकल गायन और ब्रेल वाचन और लेखन प्रतियोगिता प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों से बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया। एकल गायन प्रतियोगिता में प्रो. सुरुचि गौतम, कंप्यूटर विज्ञान विभाग, राजधानी कॉलेज और नरेश कुमार, सहायक प्रोफेसर, इतिहास विभाग, कमला नेहरू कॉलेज ने निर्णायक की भूमिका निभाई तो वहीं ब्रेल वाचन और लेखन प्रतियोगिता के निर्णायक मण्डल में एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस और श्री मनोज वाजपेयी शामिल हुए। गीत, संगीत और अन्य गतिविधियों के प्रति भागीदारी, उत्साह ने एक बार फिर यही साबित किया कि ये दिव्यांग छात्र गैर-दिव्यांग/सामान्य लोगों की तरह ही सक्षम और प्रभावी हैं।

अंत में डॉ. सस्मिता मोहंती और डॉ. सर्वेश कुमार, सहायक प्रोफेसर, राजधानी कॉलेज ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सम्मेलन के औपचारिक समापन की घोषणा की और सम्मेलन में उपस्थित लोगों और वक्ताओं के बहुमूल्य योगदान के लिए आभार व्यक्त किया।