पंजाब में प्रवासियों के ख़िलाफ़ भड़कायी जा रही नफ़रत से किसको होगा फ़ायदा ?

पंजाब अभी बाढ़ की विभीषिका से गुजर ही रहा था कि यहाँ एक और मुद्दा भड़क उठा। यह मुद्दा पंजाब में रह रहे प्रवासियों से जुड़ा हुआ है। इस मसले ने राज्य के बाढ़ प्रभावित लोगों के गुस्से को न केवल ग़लत दिशा में मोड़ दिया बल्कि इससे क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाले नफ़रती चिंटूओं को मेहनतकश जनता के बीच नफ़रत फैलाने का एक और मौका मिल गया। गत 9 सितम्बर को पंजाब के होशियारपुर ज़िले में एक पाँच वर्षीय बच्चे की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी।

पुलिस जाँच में इसका दोषी एक प्रवासी मज़दूर को पाया गया। यह खौफ़नाक घटना बेहद निन्दनीय है और इसमें दोषी व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इस घटना के बाद होना तो यह चाहिए था कि इसके लिए क़ानून व्यवस्था से जवाबदेही ली जाती और देश में स्त्रियों और बच्चों के खिलाफ़ बढ़ रही यौन हिंसा की घटनाओं के पीछे के कारणों की तलाश की जाती। लेकिन जैसे ही यह घटना सामने आयी वैसे ही क्षेत्रवाद, प्रवासी-विरोध और पंजाबी पहचान के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले लोग तुरन्त हरक़त में आ गये।

दो दर्जन से ज़्यादा गाँवों के सरपंचों ने प्रवासियों के खिलाफ़ फ़रमान जारी कर दिये। क्षेत्रवाद और प्रवासी-विरोध की ओछी नफ़रती राजनीति करने वाले लोग पूरे जोश में भरकर दमगजे भरने लगे। दौ सौ ग्राम का माइक उठाकर दर-दर घूमने वाले सोशल मीडिया पत्रकारों को अपनी रीच बढ़ाने के लिए बैठे-बिठाये ही सनसनीखेज़ मसाला मिल गया। ऐसे फ़र्ज़ी पत्रकार और छुटभैये नेता वीडियो बना-बनाकर प्रवासी श्रमिकों के खिलाफ़ पंजाबियों के खून में उबाल लाने के प्रयास में जुट गये। यही नहीं इन्हें गरीब प्रवासी श्रमिकों के दस्तावेज़ जाँचने और उन्हें तंग करने का लाइसेंस भी मिल गया। विडम्बना देखिए कि खुद विदेशों में बैठे प्रवासी पंजाबी तक पंजाब से प्रवासियों को बाहर करने की अपीलें जारी करने लगे।

तर्क-विवेक और न्यायबोध को एक ओर रखकर एक प्रवासी मज़दूर के दोष का ठीकरा सभी प्रवासियों पर फोड़ा जाने लगा। देखते-देखते पंजाब में रहने वाले लाखों प्रवासी श्रमिकों में भय की लहर दौड़ गयी और उन्हें डर के साये में धकेल दिया गया। यह पूरा मामला दर्शाता है कि लोगों की निम्न राजनीतिक चेतना का फ़ायदा उठाकर उनका ध्यान उनके असली मुद्दों से भटकाना कितना आसान है।

पंजाब की भगवन्त मान सरकार प्रवासियों के खिलाफ़ बनाये जा रहे माहौल के मसले पर पहले तो कानों में रुई तेल डालकर सोती रही और बाद में औद्योगिक समूहों की ओर से दबाव आने पर इसने बयान भर जारी करके इतिश्री कर ली। औद्योगिक समूह इस बात से परेशान थे कि यदि प्रवासी श्रमिक चले जायेंगे तो फ़िर उन्हें ऐसे सस्ते मज़दूर कहाँ से मिलेंगे जिनकी श्रमशक्ति को सिक्कों में ढालकर ये अपनी तिजोरियाँ भरते हैं।

लेकिन साथ ही उन्हें इसमें यह मौक़ा भी नज़र आ रहा था कि इस मसले के बहाने वे प्रवासी मज़दूरों को पंजाब में और भी ज़्यादा अनुशासित कर सिर झुका कर रहने को मजबूर भी कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी की भगवन्त मान सरकार इतने दिन तक मुँह में दही जमाये इसलिए बैठी रही क्योंकि राज्य के बाढ़ से परेशान लोगों के सरकार के प्रति गुस्से को प्रवासियों के खिलाफ़ करके गलत दिशा में जो मोड़ा जा रहा था। यहाँ के चुटकुलेबाज़ मुख्यमन्त्री की तो हींग लगी न फिटकरी फ़िर भी रंग चोखा हो गया।

प्रवास एक ऐसी परिघटना है जोकि मानव की उत्पत्ति के समय से ही अस्तित्वमान है। जीवन के लिए बेहतर अवसरों की तलाश में इन्सानों का एक जगह से दूसरी जगह जाना एक आम बात है। स्वयं पंजाबी मूल के लोग ही लाखों की तादाद में कृषि, व्यापार, नौकरी, पर्यटन और उद्योग जैसी गतिविधियों में संलग्न होकर देश के अलग-अलग राज्यों में रहते हैं।

बेहतर रोज़गार और जीवन में निश्चितता की तलाश में हर साल पंजाबी मूल के लाखों लोग कनाडा, अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में भी जाते हैं। 2016 से 2021 के बीच पाँच साल के दौरान ही पंजाब और चण्डीगढ़ से 9 लाख 84 हज़ार की संख्या में युवा और श्रमिक ‘स्टडी वीजा’ और ‘वर्क वीजा’ पर विदेश में गये हैं। पंजाब के अलग-अलग इलाक़ों में किये गये 2022 के एक सैम्पल सर्वे के अनुसार 2,597 घरों में से 2,788 लोग काम की तलाश में विदेशों में गये हैं।

यही नहीं इनमें से 353 तो पूरे के पूरे परिवार ही पलायन कर गये। जीवन के लिए अधिक उपयुक्त हालात की तलाश में पंजाबियों का पलायन करना जितना स्वाभाविक है देश के पिछड़े और गरीब राज्यों से श्रमिकों का पंजाब की ओर पलायन भी उतना ही स्वाभाविक है। ग़ौरतलब है कि कई पश्चिमी देशों में पंजाबी प्रवासियों के साथ गोरे नस्लवादी और प्रवासी-विरोधी अक्सर उसी प्रकार का अमानवीय बर्ताव करते हैं और उन्हें देश से बाहर करने की बातें करते हैं।

बिहार, यूपी, एमपी, बंगाल और उड़ीसा से पंजाब में पलायन मुख्य तौर पर तथाकथित हरित क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ और उसके बाद कालान्तर में पंजाब में औद्योगिक केन्द्रों के द्रुत विकास के साथ एक बड़ी आबादी यहाँ के उद्योगों में भी खटने लगी। पंजाब की स्थानीय श्रमिक आबादी यहाँ की कृषि और उद्योग की श्रमबल सम्बन्धी जरूरतों को पूरा ही नहीं कर सकती है।

दूसरी बात यह है कि यह आबादी मज़दूरी की उस दर पर काम करने को तैयार ही नहीं होती जिस दर पर प्रवासी मज़दूरों से काम करवाया जा सकता है। दलित पंजाबी मज़दूरों का मसला इसमें अपवाद है और खेती में दलित पंजाबी मज़दूरों की एक विचारणीय आबादी आज भी काम करती है और बड़े फार्मरों व कुलकों के हाथों भयंकर शोषण और दमन झेलती है।

ग़ौरतलब है कि प्रवासी-विरोधी हालिया घटनाक्रम के दौरान पंजाब के लुधियाना बेल्ट के औद्योगिक पूँजीपतियों ने मान सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कैसे मजबूर किया। इसका कारण यही है कि अकेले लुधियाना के उद्योग-धन्धों में ही क़रीब 8 लाख प्रवासी श्रमिक कार्यरत हैं। पूँजीपति इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि पलायन के लिए मजबूर करने पर मज़दूर तो कहीं भी काम कर लेंगे लेकिन मालिकों का मुनाफ़े का चक्का तब तक जाम रहेगा जब तक नये श्रमिकों को प्रशिक्षित करके काम पर नहीं रख लिया जाता।

यही नहीं कृषि कार्यों के लिए और फ़सल की बुआई और कटाई के सीज़न में पंजाब के किसान यूपी-बिहार के श्रमिकों को लाने-ले जाने के लिए बसों तक की व्यवस्था करते हैं और ट्रैक्टर-ट्रॉली जोड़कर रेलवे स्टेशनों तक की ख़ाक छानते घूमते आम ही दिख जाते हैं। ज़्यादा दिन नहीं हुए जब लक्खा सिधाना नामक प्रवासी विरोधी छुटभैया “नेता” खुद प्रवासियों से अपने यहाँ काम कराता हुआ पाया गया था।

पंजाब में कुल श्रमबल का तक़रीबन 70 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों से आता है। एक हालिया अनुमान के अनुसार पंजाब में विभिन्न कामों में लगने हेतु 42 लाख के क़रीब प्रवासी श्रमिक आते हैं। इनमें से तक़रीबन आधे तो उद्योग और कृषि क्षेत्र में यहीं टिककर काम कर रहे हैं तथा क़रीब आधे कृषि कार्यों में लगने के लिए फ़सल की बुआई और कटाई के समय मौसमी तौर पर आते हैं।

अरक्षित, बाहरी और अलगाव का शिकार होने के चलते प्रवासी श्रमिक कम वेतन पर ही रूखी-सूखी खाकर और जैसे-तैसे रहकर भी सबसे मुश्किल हालात में और कठिन से कठिन काम को करने के लिए आसानी से तैयार हो जाते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे यूरोप व खाड़ी के देशों और कनाडा-अमरीका-ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी भारतीय श्रमिक अपेक्षाकृत कम पारिश्रमिक पर भी मुश्किल काम करने को भी तैयार हो जाते हैं।

पंजाबी लोगों का पंजाब से बाहर या यूपी-बिहार के श्रमिकों का पंजाब में होने वाले पलायन के पीछे का असली कारण सरकारों की जन-विरोधी नीतियाँ होती हैं। यदि सरकारें लोगों को उनके घर के आसपास ही रोज़गार उपलब्ध करा दें तो लोगों को परदेस में जाकर खाक छानने की ज़रूरत ही क्यों पड़ेगी। पूँजीवादी व्यवस्था जनित असमान विकास लोगों को अपनी जगह-ज़मीन से उजड़कर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करता है। बेरोज़गारी पैदा करना मौजूदा मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था के स्वभाव में ही निहित होता है।

‘भैये भगाओ – पंजाब बचाओ’ का नस्लवादी और प्रतिक्रियावादी नारा देने वाले लोगों को पंजाब की जनता की असल समस्याओं से कुछ भी लेना-देना नहीं है। होशियारपुर की वीभत्स घटना से बहुत पहले से ही इनकी प्रवासी विरोधी मुहिम लगातार जारी है। बस ये गिद्ध की भाँति ऐसे मौक़ों की तलाश में रहते हैं जब कोई ऐसा नया मामला सामने आये और इन्हें स्थानीय आबादी को प्रवासियों के खिलाफ़ भड़काने का एक और मौक़ा मिले।

कोई भी न्यायप्रिय व्यक्ति इस बात को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकता कि किसी एक व्यक्ति के कुकर्म की सजा उसके पूरे समुदाय को दी जाये। परन्तु क्षेत्रवाद या ऐसी किसी भी क़िस्म की पहचान की राजनीति कुछ मायनों में फ़ासीवादी राजनीति की तरह ही काम करती है। अफ़वाहों और मिथकों को ये षड्यन्त्रकारी ढंग से यथार्थ बनाकर पेश करते हैं। पंजाब के इन स्वयंभू रक्षकों के अनुसार यहाँ की सभी समस्याओं का एकमात्र निदान प्रवासियों को पंजाब से भगाने भर से ही निकल जायेगा। यदि इन्हीं की तरह ही देश-विदेश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले पंजाबियों के प्रति वहाँ की स्थानीय आबादी भी सोचने लग जाये तो ये कहाँ मुँह छुपाते फिरेंगे?

ऐसे लोग अपनी वर्गीय सीमा के चलते न तो समाज विज्ञान को समझने का प्रयास करते हैं और न ही अर्थशास्त्र को ही। पूँजीवादी व्यवस्था और सरकारों की जनविरोधी नीतियों की मार झेलने वाली आम जनता का एक हिस्सा भी अपनी निम्न राजनीतिक चेतना के चलते ऐसे प्रतिक्रियावादी जुमलों का शिकार हो जाता है और अपने ही वर्ग-भाइयों की जान का दुश्मन बन बैठता है।

पंजाब की जनता की समस्याओं के लिए प्रवासी मज़दूर कत्तई ज़िम्मेदार नहीं हैं। कोई एक प्रवासी मज़दूर ऐसे किसी अपराध में पाया जा सकता है, तो उसी प्रकार स्वयं प्रवासी मज़दूरों के ऊपर भी तमाम जुल्म और अपराध होते रहते हैं, जो स्वयं मालिकों के वर्ग द्वारा किये जाते हैं। यह भी याद रखना होगा कि मज़दूरों की आबादी के एक हिस्से को पूँजीवादी व्यवस्था लगातार इंसानियत की शर्तों से महरूम करती रहती है, जिसके कारण उसका विमानवीकरण हो जाता है और वह लम्पट सर्वहारा का अंग बन अक्सर आपराधिक प्रवृत्तियों का शिकार हो जाता है।

दूसरी ओर, प्राचुर्य, आधिक्य और ऐय्याशी के नशे में चूर बड़े फार्मर, रियल एस्टेट मालिक, कारखाना मालिक, आदि भी आपराधिक कार्रवाइयों में संलग्न होते हैं। पंजाब के धनिक वर्ग के एक हिस्से में और प्रवासी मज़दूरों व आम तौर पर मज़दूरों की आबादी के एक हिस्से, विशेष तौर पर लम्पटीकृत मज़दूर वर्ग के एक हिस्से में आपराधिक प्रवृत्ति पैदा होने के अलग-अलग कारण हैं, लेकिन दोनों के लिए ही पूँजीवादी व्यवस्था ज़िम्मेदार है।

साथ ही, पंजाबी और प्रवासी दोनों प्रकार की ही मेहनतकश जनता की तमाम समस्याओं के लिए पूँजीपतियों की सेवा में लगी जनविरोधी सरकारें और मुनाफ़ा केन्द्रित मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था ज़िम्मेदार हैं। ऐसी घटनाओं के किसी एक व्यक्ति द्वारा किये गये जघन्य अपराध के आधार पर समूचे वर्ग या समुदाय को दोषी ठहरा देने की सोच ही टुटपुँजिया प्रतिक्रिया से पैदा होती है। आज पंजाब में कुछ लोगों में यही टुटपुँजिया प्रतिक्रिया देखी जा सकती है।

हमारी भलाई इसी में है कि हम अपने एक जैसे हालात को समझें और इन्हें बदलने के लिए एकजुट और संगठित होकर साझे तौर पर संघर्ष करें। इस समाज में आज दो ही प्रमुख वर्ग हैं एक लुटेरे और दूसरे कमेरे। मालिक वर्ग चाहे प्रवासी मज़दूर हों या पंजाबी मज़दूर हों, उनके शरीर से खून का आखिरी कतरा निचोड़कर सिक्कों में ढालने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते और वहीं दूसरी ओर अपने प्रवासीद्वेष के चलते प्रवासी मज़दूरों को निशाना बनाने का कोई मौक़ा भी नहीं छोड़ते क्योंकि इसके ज़रिये वे प्रवासी मज़दूरों को और भी ज़्यादा अरक्षित स्थिति में पहुँचा सकते हैं, उनके शोषण की दरों को बढ़ा सकते हैं और उनके दमन को और भयंकर बना सकते हैं।

क्षेत्रवादी और पहचान की प्रतिक्रियावादी राजनीति करने वाले लोग मुनाफ़ाकेन्द्रित व्यवस्था के असली अन्तर्विरोधों को हमसे छुपा देते हैं और सरकार व व्यवस्था के खिलाफ़ पनपने वाले हमारे गुस्से को ये हमारे ही जैसे लोगों की ओर मोड़ने का काम करते हैं। पंजाब में प्रवासियों के खिलाफ़ भड़कायी जा रही नफ़रत से सिर्फ़ और सिर्फ़ मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था को ही फ़ायदा पहुँचता है और इससे मेहनतकश जनता को केवल और केवल नुकसान ही उठाना पड़ता है। क्षेत्रवाद की प्रतिक्रियावादी राजनीति जनता की एकजुटता को तोड़ती है और मज़दूर वर्ग के हितों को गहरा नुकसान पहुँचाती है।

जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र जैसी किसी भी पहचान के आधार पर जनता की एकता में पलीता लगाने वाले लोगों से हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए और ऐसे लोगों को अपने बीच से तत्काल खदेड़ बाहर करना चाहिए।

(इन्द्रजीत की रिपोर्ट, मज़दूर बिगुल से साभार)

First Published on: October 25, 2025 9:50 AM
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