मौसम का मिजाज बदलने की सूचना मिल रही है।कम से कम उत्तर भारत में मौसम बदलने वाला है।ऐसा सोचने वाले हम अकेले नहीं हैं। दुनिया भर में मौसम बिगड़ैल बच्चे की तरह पेश आ रहा है। यूएई में बर्फ पड़ रही है। कैलिफॉर्निया में अचानक भारी बारिश होने लगी है, लेकिन अटलांटा में समय से पहले वसंत दस्तक दे रहा है। उधर यूरोप में स्लोवाकिया में भालू हाइबरनेशन के बीच जाग कर चिड़चिड़े हो उठे हैं, ऑस्ट्रिया में फूल खिलने लगे हैं और पुर्तगाल में सूखे जैसे हालात बन रहे हैं।
कुदरत में ऐसी असामान्य बातें क्यों हो रही हैं, इस पर वैज्ञानिकों की राय बंटी हुई है। जानकारों का एक खेमा इसे मौसम की बदमिजाजी भर मानता है और किसी खतरनाक ट्रेंड से इनकार करता है। दूसरा खेमा इसे ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़ कर देख रहा है,जो मौसम को पहले से ज्यादा आक्रामक और अनिश्चित बना रहा है। फिलहाल के इन वाकयों को छोड़ दें तो भी दोनों खेमे इस बात पर आकर एकमत हो जाते हैं कि मौसम इधर कुछ ज्यादा ही चंचल हो उठा है और उसमें अचानक बदलाव आने लगे हैं।
यह भी पता चला है कि धरती के घूमने की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई है। यह कमी एक दिन में एक सेकंड के 30 लाखवें भाग के बराबर है। इस अचानक बदलाव का क्या असर होगा, यह हमें पता नहीं है, लेकिन कोई असर होगा, तो वह क्लाइमेट में ही नजर आएगा। धरती जिस तरह अपने वायुमंडल को समेटे घूमती है, उसका असर और अपनी धुरी पर उसका झुकाव, सूरज की रोशनी का एंगल, टोपोग्राफी, कुदरती घटनाएं और समुद्री धाराओं का रुख-इन सब बातों से मौसम की हलचलें तय होती हैं। इनमें से किसी में भी थोड़ा सा हेरफेर गहरे असर डाल सकता है, इसीलिए मौसम विज्ञान इतना जटिल है और मौसम की भविष्यवाणी करना इतना मुश्किल।
इस विराट जटिलता में सिर्फ जटिलता ही शाश्वत या फिक्स्ड फैक्टर है और इससे हमें अहसास होता है कि यह पृथ्वी कितने नाजुक संतुलन पर टिकी एक दुर्लभ रचना है, जो किसी भी क्षण अपने चमत्कार का त्याग कर पंचतत्वों के निर्जीव पिंड में तब्दील हो सकती है। अंतरिक्ष में घूमते इस चमत्कार को हम किसी सूनामी या भूकम्प से नहीं बचा सकते, हवा, पानी या मिट्टी की अनगिनत हलचलों पर हमारा कंट्रोल भी कभी नहीं हो पाएगा। हम इतना ही कर सकते हैं कि खुद को काबू में रखें और जो हमें मिला है, उसे अपनी संतानों के लिए बचाए रखें।
अतीत में क्लाइमेट चेंज ने इंसानों को महाद्वीपों के पार खदेड़ा है, इस प्रजाति का रूप बदल डाला है, हजारों कमजोर प्रजातियों का नाश किया है और इंका, माया तथा सिंधु जैसी सभ्यताओं का भविष्य मिटा दिया है। हम अपने पुरखों से लाखों गुना ज्यादा ताकतवर हैं और कुदरत से हमारा रिश्ता काफी कुछ बदल चुका है। लेकिन तो भी आकाश और पाताल की विराट हलचलों के आगे हम बौने ही हैं और यह बौनापन हमें आपदाओं में मिट्टी के खिलौनों की तरह तोड़ डालता है। क्लाइमेट चेंज हो रहा है और हमारे सहने की सीमा से ज्यादा तेजी से हो रहा है। हम पृथ्वी को नहीं छोड़ सकते, तो ऐसा क्यों हो कि वही हमें छोड़ने का मन बना ले ?