केंद्र सरकार द्वारा कृषि से होने वाले उत्सर्जन को कम करने तथा सतत कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने हेतु मिजोरम राज्य में ग्रीन-एजी परियोजना की शुरुआत की गयी है। ‘ग्रीन-एजी परियोजना’ को पांच राज्यों लागू किया जायेगा। मिजोरम के अतिरिक्त अन्य राज्य, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड हैं। इस परियोजना को शुरू करने के पहले इस बात पर जोर दिया गया है कि मिजोरम प्राकृतिक जैव-विविधता के विभिन्न तत्वों से संपन्न है, और यह आवश्यक है कि वहां के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग टिकाऊ तरीके से किया जाए जिससे वो अपने प्राकृतिक रूप में वैसे ही मौजूद रहे जैसे अभी है। इस परियोजना का उद्देश्य, भारतीय कृषि में जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और स्थायी भूमि प्रबंधन उद्देश्यों तथा पद्धतियों को एकीकृत करना है।
आपको बता दें कि इस परियोजना की शुरूआत मिजोरम की राजधानी से हुआ है। इस कार्यशाला के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, राज्य के कृषि मंत्री सी लालरिंगांगा ने कहा कि यह परियोजना कृषि क्षेत्र के सतत परिवर्तन को उत्प्रेरित करने के उद्देश्य से काम करेगी, जिससे आईयूसीएन के संरक्षण पर जागरूकता के साथ-साथ फोकस क्षेत्र के लोगों को आर्थिक उत्थान प्रदान किया जा सके। यह उन प्रजातियों, वनस्पतियों और जीवों को बचाने का काम करेगा जो गंभीर रूप से खतरे के संकट का सामना कर रहे है।
क्या है ग्रीन-एजी परियोजना ?
ग्रीन-एजी परियोजना को वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility GEF) द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है तथा, ‘कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग’ (Department of Agriculture, Cooperation, and Farmers’ Welfare- DAC&FW) इस परियोजना के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन एजेंसी है। इस परियोजना को खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) तथा केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से लागू किया जायेगा। यह पायलट परियोजना सभी राज्यों में 31 मार्च, 2026 तक जारी रहेगी। इस परियोजना के अंतर्गत, राज्य के 30 गांवों को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा इसमें दो संरक्षित क्षेत्रों – डंपा बाघ अभयारण्य (Dampa Tiger Reserve) तथा थोरंगटलांग वन्यजीव अभयारण्य (Thorangtlang Wildlife Sanctuary) को भी सम्मिलित किया गया है।
योजना का प्रमुख लक्ष्य
परियोजना के लक्ष्य मुख्य रूप पांचो भू-प्रदेशों की कम से कम 8 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) भूमि में मिश्रित भूमि-उपयोग पद्धतियों से विभिन्न वैश्विक पर्यावरणीय लाभों को प्राप्त करना होगा। इसके साथ-साथ कम से कम 104,070 हेक्टेयर कृषि-भूमि को सतत भूमि और जल प्रबंधन के अंतर्गत लाना और संवहनीय भूमि उपयोग तथा कृषि पद्धतियों के उपयोग से 49 मिलियन कार्बन डाइऑक्साइड का पृथकीकरण (CO2eq) सुनिश्चित करना भी होगा।