महासागरीय प्लास्टिक प्रदूषण में साल 2040 तक तीन गुना वृद्धि हो सकता है : रिपोर्ट

महासागरों में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागर में समाता जा रहा है। इसके आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागर में जस का तस पड़ता जा रहा है, जिससे प्रदूषण के स्तर पर एक नई चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

कोरोना महामारी के इस दौर में अचानक सिंगल यूज प्लास्टिक की खपत में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है जो किसी खतरनाक चिंता से कम नहीं है। इस बात का खुलासा एक ताज़ा स्टडी में किया गया है जिसमे कहा गया है कि आने वाले 20 सालों में समुद्रों में तैरने वाला प्लास्टिक कचरा तीन गुना तक बढ़ सकता है। स्टडी की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इसे रोकने के लिए दुनियाभर की सरकारों के साथ बड़ी कंपनियों को भी एक साथ आना होगा।

महासागरीय प्लास्टिक प्रदूषण में बेतहाशा वृद्धि का प्रमुख कारण का क्या है?

गैर सरकारी संगठन इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोशिएशन के मुताबिक कोरोना काल में सिंगल यूज प्लास्टिक की खपत तेजी से बढ़ी है। वहीं एशिया के सुदूरवर्ती तटों में फेस मास्क और रबड़ से बने दस्तानों को बड़ी तादाद में देखा जा रहा है। फूड कंटेनर्स और ऑनलाइन डिलीवरी की मांग में बेतहाशा बढ़त होने के चलते दुनियाभर की लैंडफिल साइट्स का पहाड़ ऊंचा होता जा रहा है। नए शोध में वैज्ञानिकों के साथ इंडस्ट्री के जानकारों ने प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट और सिस्टम IQ जैसी संस्थानों के हवाले से महासागरों को बचाने का तरीका भी बताया गया है। जिससे समुद्र में जाने वाले प्रस्तावित 80 फीसदी से ज्यादा प्लास्टिक को रोका जा सकता है। इस स्टडी में प्लास्टिक वेस्ट के संकट से उबरने के लिए विस्तृत रोडमैप तैयार करने के साथ रणनीति को भी साझा किया गया है। अगर समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो दुनियाभर के महासागरों में डंप होने वाली प्लास्टिक की अनुमानित मात्रा हर साल 11 मिलियन टन से 29 मिलियन टन तक बढ़ जाएगी, जिसके कारण 2040 तक समुद्र में करीब 600 मिलियन टन गंदगी बढ़ सकती है।

प्लास्टिक प्रदूषण के बुरे असर से कोई नहीं बच सकता है

जर्नल साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक ये कचरा 30 लाख ब्लू व्हेल्स के वजन के बराबर होगा। स्टडी के सह लेखक और प्यू के वरिष्ठ प्रबंधक विनी लेउ के मुताबिक ‘प्लास्टिक प्रदूषण के बुरे असर से कोई नहीं बच सकता है ये सिर्फ आपकी या मेरी समस्या नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर होगा। अगर हमने कोई कोशिश नहीं की तो हालात और बुरे हो सकते हैं।’ स्टडी में पेश किए गए रोडमैप में प्लास्टिक प्रोडक्शन की जगह किसी अन्य पदार्थ पर निर्भर होने, रिसाइकिल केंद्रों की संख्या और क्षमता बढ़ाने, विकसित देशों को सहयोग देने और सिखाने में लगने वाले अरबों डॉलर के खर्च का जिक्र मौजूद है। इस काम में एनर्जी इंडस्ट्री को अपने कार्यक्षेत्र में बड़ा बदलाव करते हुए यूटर्न लेना पड़ेगा क्योंकि यहां प्लास्टिक आउटपुट को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में केमिकल प्लांट्स पर जोर दिया जाता रहा है।

महासागरीय प्लास्टिक प्रदूषण क्या होता है ?

समुद्री मलबा मुख्यतः मानवों द्वारा फेंका गया कचरा है जो समुद्र में तैरता या झूलता रहता है। समुद्री मलबे का 80 फ़ीसदी हिस्सा प्लास्टिक है – एक ऐसा अवयव जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बहुत तेज़ी से जमा हो रहा है। समुद्रों में मौजूद प्लास्टिक का वज़न 100 मिलियन मेट्रिक टन के बराबर हो सकता है। त्याग किये गए प्लास्टिक बैग, सिक्स पैक रिंग्स और अन्य प्लास्टिक कचरा जो समुद्रों में प्रवेश करता है, वो वन्य जीव-जंतुओं और मत्स्य उद्योग के लिए खतरा है।
(साभार – नागरिक न्यूज़)

First Published on: July 27, 2020 9:25 PM
Exit mobile version