
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कोशिश लंबे
समय से हो रही है। लगभग चार दशक में गंगा को साफ करने के लिए लाखों-करोड़ों हजार
रुपये खर्च हो गए। लेकिन गंगा के पानी में कोई खास परिवर्तन देखने को नहीं मिला?
गंगा की बीमारी ह्रदय रोग की है।
ह्रदय से ही सारे शरीर में रक्त का संचार होता है और मनुष्य स्वस्थ रहता है। ठीक
इसी तरह स्वस्थ नदी तंत्र के लिए अविरल प्रवाह की आवश्यकता होती है। बड़ी नदियों
पर बांधों का निर्माण नदी के प्रतिकूल है। बांधों के कारण गंगा का प्राकृतिक
जलप्रवाह खंडित हो गया है। और नदी कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाती है। गंगा
तीन नदियों- अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी से बनती है। भागीरथी पर तीन बांध बनने से गंगा का प्रवाह
रूक गया। अब चार धाम रोड बनने से भी गंगा को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार अविरल
गंगा औऱ निर्मल गंगा की बात करते रहे हैं। गंगा के लिए नमामि गंगे योजना भी शुरू
किए। मोदी सरकार के कार्यकाल में गंगा की अविरलता औऱ निर्मलता पर कितना असर हुआ?
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनने
की दौड़ में थे तब वे अपने को गंगा मां का बेटा और अविरल गंगा, निर्मल गंगा की बात करते थे। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद वे गंगा की
अविरलता को भूल गए और अब केवल गंगा की निर्मलता की बात करते हैं। आश्चर्य और दुख
की बात यह है कि अविरलता के बिना गंगा निर्मल नहीं हो सकती हैं। गंगा को प्राकृतिक
प्रवाह की जरूरत है। गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को रोकने के लिए बांध बनाए जा रहे
हैं और गंगा की सफाई के लिए योजनाएं बन रहीं हैं। अब जरा गौर से देंखे तो पता चलता
है कि गंगा की सफाई के नाम पर क्या हुआ। गंगा के पानी को साफ करने के लिए सीवर
ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया। घाटों के सौंदर्यीकरण पर करोड़ों रुपये पानी की तरह
बहाया गया। लेकिन गंगा का प्रवाह बाधित न हो, इस पर कुछ नहीं किया गया। गंगा के इलाज के नाम पर इंजेक्शन तो खूब दिया जाता
रहा। लेकिन आंतों की बीमारी के लिए दातों का इलाज किया जा रहा है।
भारत की संस्कृति नदियों के किनारे पुष्पित-पल्लवित
हुई है। गंगा तो उत्तर भारत की जीवनरेखा है। क्या गंगा का प्रदूषण हमारी संस्कृति
को भी प्रदूषित कर रही है?
देखिए! गंगा सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं आधे भारत की
जीवनरेखा है। 11 राज्यों और 47 करोड़ आबादी सीधे तौर पर गंगा से जुड़ें हैं। गंगा
का सिर्फ सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है। मानव जीवन के जितने आयाम है यानी
सांस्कृतिक,आर्थिक,सामाजिक और राजनीति जीवन को गंगा प्रभावित करती हैं। जीवन के जितने प्रवाह
होते हैं।वे सब गंगा से सीधे जुड़े हैं। गंगा के प्रवाह के रूकने का अर्थ है कि
आधे भारत का जीवन प्रवाह प्रभावित होगा। लेकिन आज जीवनदायिनी गंगा का अस्तित्व पर
भारी संकट है। जगह-जगह बने बांधों ने गंगा का रास्ता रोक दिया है। इस लंबे सफ़र में
ज़हरीला कचरा लिये हज़ारों गंदे नाले इस नदी में समा रहे हैं। ऐसे में यह हमारे
संस्कृति,लोकजीवन और शासन-प्रशासन पर सवाल तो खड़े ही करता है।
भारतीय संस्कृति में तो हर एक चीज को बचाने, संवारने के उपाय हैं। फिर दिक्कत क्या है? क्या भारतीय असांस्कृतिक हो चुके हैं?
अभी प्रयाग में अर्ध कुंभ को दिव्य कुंभ नाम देकर
लाखों करोड़ रुपये खर्च किए गए। कहा गया कि इस खर्च से गंगा के पानी को साफ किया
जा रहा है। लेकिन गंगा का पानी जरा भी नहीं साफ हुआ। एक बात तो साफ है कि पूजा और
आरती करके भी गंगा को साफ नहीं किया जा सकता है। बड़ी राशि खर्च करके भी गंगा को
साफ नहीं किया जा सकता है। अभी सरकार गंगा को साफ करने के लिए पैबंद (पैच वर्क) की
तरह काम कर रही है। यानी कहीं सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगा दो, कहीं कुछ पौधे लगा दो। इससे कुछ होने वाला नहीं है। करोड़ों का बजट ठेकेदार,इंजीनियर और अधिकारियों में बंट जाता है।
गंगा को साफ करने में दो तरह के लोग ज्यादा सक्रिय
हैं। एक, आस्थावान लोग, जो गंगा के पानी को अमृत मानते
हैं। दूसरे, पर्यावरणविद। लेकिन फिर भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकल रहा है?
आप की बात सही है। लेकिन हम न तो गंगा को आस्था के
केंद्र में रख कर काम कर रहे हैं और न पर्यावरण के अनुसार गंगा को देख रहे
हैं।गंगा का पानी आज जहरीला हो गया है। आस्थावान लोग गंगा जल को भले ही अमृत कहें
लेकिन गंगा में सीवर का पानी गिर रहा है। गंगा के पानी में जो 17 तरह के जीवाणुओं
को नष्ट करने की क्षमता थी वह अब समाप्त हो चुकी है। गंगा का यह विशिष्ट था। लेकिन
जनता की आस्था को भुनाने वाले कह रहे हैं कि गंगा का पानी अभी भी अमृत है। यह झूठ
ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है।
विदेशों में नदी की कोई ऐसी आस्था नहीं है, फिर भी वे अपनी नदियां साफ कर लेते हैं। यह कैसी विडंबना है।
भारत के लोग गंगा को मां कहते हैं। मां बच्चों के
मैला को धोती है। लेकिन आज हमने गंगा को मैला धोने वाली मां नहीं बल्कि मैला ढोने
वाली मालगाड़ी बना दिए हैं। लेकिन विदेशों में ऐसा नहीं है। न्यूजीलैंड की सरकार
ने नदियों को मानवीय अधिकार प्रदान किया है। यानी एक मनुष्य़ को जो अधिकार हैं
न्यूजीलैंड में वहीं अधिकार एक नदी को है। नदियां वहां जीवनरेखा,जीविका और जमीर हैं। हमने अपनी नदियों से यह गुण छीन लिया है। आस्था और
अंधविश्वास के कारण हम भले कहें कि नदियां हमारी मां हैं।