उत्तर प्रदेश : धरने पर समाज कल्याण मंत्रालय


इस दरमियान राजेश कुमार को समाज कल्याण विभाग का नया निदेशक बना दिया गया। पुराने निदेशक बालकृष्ण त्रिपाठी को प्रमुख सचिव की अनुशंसा पर हटा दिया गया। यह सब तब हुआ जब बालकृष्ण तिवारी अस्वस्थ्य थे।



लखनऊ। इन दिनों समाज कल्याण मंत्रालय में घमासान चल रहा है। चौंकिए मत, यह घमासान समाज कल्याण मंत्री को लेकर नहीं बल्कि प्रमुख सचिव को लेकर चल रहा है। कहा जा रहा है कि उनके रवैए से समाज कल्याण विभाग के निदेशक बीमार पड़ गए। उनके दिल ने जवाब दे दिया। उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।

इस दरमियान राजेश कुमार को समाज कल्याण विभाग का नया निदेशक बना दिया गया। पुराने निदेशक बालकृष्ण त्रिपाठी को प्रमुख सचिव की अनुशंसा पर हटा दिया गया। यह सब तब हुआ जब बालकृष्ण तिवारी अस्वस्थ्य थे। उनको हटाए जाने की वजह स्वास्थ्य नहीं है बल्कि प्रमुख सचिव द्वारा लगाए गए, आरोप हैं। कहा तो यही जा रहा है।

यदि वाकई में ऐसा है तो समस्या विकट है। वह इसलिए कि यदि आरोप के आधार पर बालकृष्ण तिवारी को हटाया गया है तो फिर प्रमुख सचिव पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। न्याय यही कहता है। आरोप तो प्रमुख सचिव पर भी है। इस बाबत अखबारों में बहुत कुछ छप चुका है। वह पत्र भी पब्लिक डोमेन में है जो मुख्य सचिव आरके तिवारी को कर्मचारी संगठनों ने लिखा था। यह वाकया 16 जनवरी का है। कर्मचारी संगठन ने मुख्य सचिव को एक ज्ञापन सौंपा था।

ज्ञापन के मुताबिक प्रमुख सचिव अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। कई बार गाली-गलौज पर उतर आते हैं। जातिगत टीका-टिप्पणी भी करते हैं। उसमें यह भी दावा किया गया था कि उनके रवैए से परेशान होकर अल्पसंख्यक विभाग के निदेशक छुट्टी पर चले गए।

ज्ञापन में वित्तीय अनियमितता का भी आरोप लगाया गया। उसमें दावा किया गया है कि जिन संस्थाओं को सरकार ने काली सूची में डाल रखा है, उसके साथ मिलकर कामकाज करते हैं।

इतना ही नहीं, आरोप यह भी है कि कर्मचारियों पर गलत काम करने का दबाव बनाते हैं। उनकी बात न मानने पर अधीनस्थों को प्रताड़ित भी करते हैं। उन आरोप यह भी था कि वे जिस भी विभाग के मुखिया रहे हैं, अधीनस्थ उनसे परेशान रहे हैं। इतना सब पत्र में होने के बाद भी प्रमुख सचिव इतमिनान से काम कर रहे हैं। यह अपने आप में बड़ा सवाल है।

वह इसलिए भी कि क्योंकि पत्र में जो आरोप लगे हैं, उसमें तो कुछ ऐसे हैं जिसके लिए विशाखा गाइडलाइन के हिसाब से एक जांच कमेटी बननी चाहिए। वह बनी या नहीं, यह जानने के लिए मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी से संपर्क किया गया। व्हाटसअप संदेश के जरिए सरकार का पक्ष जानने की कोशिश की गई। पर खबर लिखे जाने तक उनका जवाब नहीं आया है।

इसलिए जांच कमेटी के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन यह सवाल तो है कि यदि पुराने निदेशक को हटाने का आधार प्रमुख सचिव का आरोप है तो फिर प्रमुख सचिव खुद कैसे कुर्सी बैठे है।

उन पर तो उनके ही विभाग के लोगों ने दर्जनभर आरोप लगा रखे हैं। उनके कारण ही पूरा विभाग सड़क पर है। वह आंदोलन करने के लिए मजबूर है जो महीनों चल रहा हैं। इन दिनों भी समाज कल्याण विभाग में काम का बहिष्कार चल ही रहा है। वे प्रमुख सचिव को हटाने की मांग कर रहे हैं।



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