तेजस्वी की सभाओं में अपार भीड़, बचाव की मुद्रा में नीतीश कुमार


तेजस्वी प्रतिदिन आठ-नौ सभाएं कर रहे हैं जबकि नीतीश तीन-चार से अधिक सभा नहीं कर पा रहे। तेजस्वी कहते हैं-नीतीश चाचा थक गए हैं, उन्हें आराम करने दीजिए।


अमरनाथ झा
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

पटना। सरकार बनते ही 10 लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा का असर साफ दिखने लगा है। तेजस्वी यादव की सभाओं में अपार भीड़ उमड़ रही है। इस मुकाबले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेताओं की सभाएं फीकी नजर आती हैं। तेजस्वी की सभाओं में आने वाली भीड़ उत्साह से भरी दिखती है। सभा-दर-सभा हर जगह एक ही नजारा है।

भारी भीड़, ज्यादातर बिना मास्क के लोग, शारीरिक दूरी का ख्याल नहीं। पर हर सभा में तेजस्वी का हेलिकॉप्टर नजर आते ही लोग नारे लगाने लगते हैं, उनके सभा-मंच पर पहुंचने तक नारे लगते रहते हैं। इस तरह की भीड़ को राजद समर्थक लोगों में बढ़ते समर्थन का नमूना बताते हैं तो सत्ताधारी जदयू के लोग कहते हैं कि सभाओं में आने वाली भीड़ को वोट में बदलना आसान नहीं होता। हर सभा में तेजस्वी सरकार बनते ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का एलान करते हैं और भीड़ ताली पीटकर हर्ष जताती है।

पहले चरण के मतदान के अब मुश्किल से सप्ताह भर रह गए हैं। प्रचार अभियान धीरे-धीरे चरम पर पहुंच रहा है। धीरे-धीरे यह स्पष्ट होने लगा है कि विपक्ष के मुकाबले सत्तापक्ष की ओर से कोई मुद्दा नहीं खड़ा किया जा सका। ले-देकर लालू-राबड़ी राज की याद दिलाना, नक्सलियों और आतंकवादियों का डर दिखाना और विकास के सच्चे-झूठे किस्से सूनाना ही चल रहा है।

बिहार की राजनीति परंपरा से जातीय गणित पर निर्भर रही है। इसमें पिछले 30 वर्षों से सामाजिक न्याय की चर्चा होने लगी है। पर इसबार सत्तापक्ष इस लिहाज से भी कमजोर जान पड़ता है। भाजपा के उम्मीदवारों में स्वर्ण जातियों की बहुलता (करीब 60 प्रतिशत) से पिछड़ी व अतिपीछड़ी जातियों के बीच उसकी स्वीकार्यता कम ही हुई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राजद गठबंधन अपने परंपरागत आधार वोटर यादव-मुस्लिम के दायरे से कितना बाहर निकल पाता है, कितने समुदायों को अपने में समेट पाता है। टिकट के बंटवारे में तो उसने इस दिशा में कोशिश जरूर की है।

कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि समूचे सत्तापक्ष तेजस्वी यादव के चक्रव्यूह में फंसता नजर आ रहा है। तेजस्वी आक्रामक मुद्रा में हो तो सत्ता पक्ष अपना बचाव करता नजर आ रहा है। सरकार बनने पर दस लाख सरकारी देने की घोषणा करके ही तेजस्वी नहीं रुकते, वे कहते हैं कि संविदा पर बहाल शिक्षकों को नियमित किया जाएगा और समान काम का समान वेतन का सिध्दांत अपनाया जाएगा।

नीतीश राज के पंद्रह साल के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए तेजस्वी कहते हैं कि इतने वर्षों में एक भी कारखाना नहीं लगाया गया, जबकि लालू यादव ने रेलमंत्री रहते हुए रेलवे से जुड़े तीन कारखाने लगाए। तेजस्वी प्रतिदिन आठ-नौ सभाएं कर रहे हैं जबकि नीतीश तीन-चार से अधिक सभा नहीं कर पा रहे। तेजस्वी कहते हैं-नीतीश चाचा थक गए हैं, उन्हें आराम करने दीजिए।

तेजस्वी ने इधर यह कहना भी शुरु कर दिया है कि नीतीश राज में बिहार में 60 घोटाले हो गए। लेकिन किसी में कोई कार्रवाई नहीं हुई। चुनाव घोषणापत्र में दस लाख सरकारी नौकरी देने के अलावा कृषि से संबंधित तीन नव निर्मित कानूनों को निरस्त करने, पलायन की मजबूरी को खत्म करने, श्रम सहायता केन्द्र खोलने ताकि बाहर जाने वाले कामगरों की सहायता की जा सके। साथ जीविका दीदियों व आशाकर्मियों का मानदेय दोगुना करने की घोषणा भी शामिल की गई हैं।

तेजस्वी की सभाओं में आ रही भीड़ को देखकर नीतीश कुमार बौखला से गए हैं। अब वे व्यक्तिगत हमला भी करने लगे हैं। यह परिवार माल बनाने के अलावा कुछ नहीं करते। पिता तो अंदर है, अब यह भी अंदर जाएगा। नीतीश को शायद पता नहीं कि इससे तेजस्वी के समर्थकों का उत्साह कम नहीं, बल्कि बढ़ता है। इसतरह स्पष्ट है कि एनडीए तेजस्वी के सामने महोवैज्ञानिक दबाव के शिकार हो गए हैं और लगातार बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं।