अर्नब को सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत, जाने बहस में किसने क्या कहा ?


न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि न्यायालयों की उनके फैसलों के लिये तीखी आलोचना हो रही है और ‘मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा करके ट्वीट्स मत देखें।’


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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पत्रकार अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दे दी। उच्चतम न्यायालय आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोप में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की अंतरिम जमानत के लिये दायर अपील की सुनवाई करने को बाद जमानत देने का फैसला किया है।

रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक को अंतरिम जमानत देने से इंकार करने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अर्णब की अपील दायर होने के कुछ घंटों के भीतर ही शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने इसे 11 नवंबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर लिया था। इस सुनवाई के के लिए अधिवक्ता मनीष दूबे ने याचिका दायर की थी।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्णब के खिलाफ, आत्महत्या के लिये उकसाने के 2018 के मामले में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाये और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं।

गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुये पीठ ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।’

न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है।
पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्णब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’
पीठ ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे ? ’ न्यायालय ने कहा, ‘अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनायेंगी…आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं…. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।’

पीठ ने टिप्पणी की कि मान लीजिये की प्राथमिकी ‘पूरी तरह सच’ है लेकिन यह जांच का विषय है।

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, ‘क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिये उकसाना है ? यह न्याय का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है।’

न्यायालय ने कहा, ‘ए’ ‘बी’ को पैसे का भुगतान नहीं करता है और क्या यह आत्महत्या के लिये उकसाने का मामला है? अगर उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जायेगी। हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। अगर हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी।’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि न्यायालयों की उनके फैसलों के लिये तीखी आलोचना हो रही है और ‘मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा करके ट्वीट्स मत देखें।’

गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उनके और चैनल के खिलाफ दर्ज तमाम मामलों का जिक्र किया और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें निशाना बना रही है।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ की सुनवाई करते हुए अर्णब के वकील हरीश साल्वे से गरमागरम बहस भी हुई।

इसमें हरीश साल्वे ने पूछा कि क्या किसी के सुसाइड नोट में मुख्यमंत्री का नाम होगा तो क्या उन्हें भी गिरफ्तार किया जाएगा। उसके बाद साल्वे ने कहा, ‘पिछले दिनों महाराष्ट्र के आदमी ने यह आरोप लगाते हुए आत्म हत्या कर ली कि मुख्यमंत्री उसे सैलरी देने में फेल हो गए हैं, इसलिए वह सुसाइड कर रहा है? आप क्या करेंगे ? मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कीजिए।’

साल्वे ने कहा, ‘यह सामान्य मामला नहीं था और सांविधानिक न्यायालय होने के नाते बंबई उच्च न्यायालय को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था। क्या यह ऐसा मामला है जिसमे अर्णब गोस्वामी को खतरनाक अपराधियों के साथ तलोजा जेल में रखा जाये ? ’

उन्होंने कहा, ‘मैं अनुरोध करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाये और अगर वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिये। अगर व्यक्ति को अंतरिम जमानत दे दी जाये तो क्या होगा।’

सिब्बल ने इस मामले के तथ्यों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में की गयी विस्तृत जांच शीर्ष अदालत के सामने नहीं है और अगर वह इस समय हस्तक्षेप करेगी तो इससे एक खतरनाक परंपरा स्थापित होगी।

राज्य की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें न्यायलय को अंतरिम स्तर पर जमानत देने के लिये अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामले की जांच करने की राज्य की क्षमता का सम्मान होना चाहिए।

शीर्ष अदालत 2018 के, एक इंटीरियर डिजायनर और उनकी मां को आत्महत्या के लिये कथित रूप से उकसाने के मामले में अंतरिम जमानत के लिये गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रहा है।

गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य आरोपियों- फिरोज शेख और नीतीश सारदा- को अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुये कहा गया था कि इसमें हमारे असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करने के लिये कोई मामला नहीं बनता है।

अर्णब और अन्य आरोपियों ने अंतरिम जमानत के साथ ही इस मामले की जांच पर रोक लगाने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध उच्च न्यायालय से किया था। उच्च न्यायालय प्राथमिकी निरस्त करने की मांग वाली याचिकाओं पर 10 दिसंबर को सुनवाई करेगा।

गोस्वामी को चार नवंबर को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगढ़ के अलीबाग ले जाया गया था। उन्हें और दो अन्य आरोपियों को बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया जिन्होंने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया था। अदालत ने तीनों को 18 नवंबर तक के लिये न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

गोस्वामी को शुरू में अलीबाग जेल के लिये कोविड-19 पृथकवास केन्द्र के रूप में एक स्थानीय स्कूल परिसर में रखा गया था लेकिन रविवार को उन्हें रायगढ़ जिले में स्थित तलोजा जेल भेज दिया गया, क्योंकि उन पर न्यायिक हिरासत के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल का आरोप था।