
कभी कांग्रेस के क़द्दावर नेता रहे नटवर सिंह इस समय राजनीतिक परिदृश्य से दूर हैं। लेकिन सत्ता से हमेशा उनका नजदीकी रिश्ता रहा है। सत्ता से उनका यह रिश्ता एक एक राजघराने में जन्म लेने, विदेश सेवा का अधिकारी होने और सफल राजनीतिज्ञ होने की वजह से था। 16 मई 1931 को डींग में जन्म लेने वाले नटवर सिंह के पिता गोविंद सिंह का भरतपुर राजघराने से नजदीकी रिश्ता रहा। वे तत्कालीन भरतपुर रियासत में बड़े ओहदे पर नियुक्त थे।
आभिजात्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा जाने-माने स्कूलों में हुई। सबसे पहले उनका दाखिला अजमेर के मेयो कॉलेज में कराया गया, जहां देश भर के राजघरानों के बच्चे शिक्षा पाते हैं। उसके बाद उनके पिता ने उनको ग्वालियर के सिंधिया कॉलेज भेज दिया गया। बाद में नटवर सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और आगे की पढ़ाई के लिए कैब्रिज यूनिवर्सिटी गए।
1953 में नटवर सिंह का चयन भारतीय विदेश सेवा में हुआ। उनकी पहली पोस्टिंग चीन के बीजिंग में हुई। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में वे लंबे समय तक पीएमओ-प्रधानमंत्री कार्यालय से भी संबद्ध रहे। विदेश सेवा के दौरान उनका देश-विदेश के राष्ट्राध्यक्षों से संपर्क रहा और कई राष्ट्राध्यक्षों से संबंध भी बना। इसी कड़ी में उनका गांधी-नेहरु परिवार से भी प्रगाढ़ संबंध बना। लेकिन बतौर अधिकारी एक सरकारी कार्यक्रम में घटित घटना ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। वो घटना क्या थी यह हम आपको बताते हैं।
सन् 1966 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो चुकी थी। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में समाजवादी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में रूढीवादी। मोरारजी देसाई उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहा करते थे। 1967 के चुनाव में आंतरिक समस्याएं उभरी जहां कांग्रेस लगभग 60 सीटें खोकर 545 सीटोंवाली लोक सभा में 297 सीट प्राप्त किए।
इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनाया। ऐसे समय में इंदिरा गांधी कांग्रेस से लेकर नौकरशाही तक में अपने विश्वासपात्रों की एक फौज खड़ी कर रही थीं। नटवर सिंह भी इंदिरा गांधी के विश्वासपात्रों में शामिल थे। इसलिए वे इंदिरा गांधी के साथ पीएमओ से लेकर हर जगह मौजूद रहते थे। उसी दौरान प्रतापगढ़ के कालाकांकर रियासत के राजा और इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगी दिनेश सिंह के घर विदेशी मेहमानों के लिए आयोजित एक पार्टी में नटवर सिंह भी शामिल हुए।
विदेश सेवा में कामकाज के दौरन अंतराष्ट्रीय स्तर के अकाल्पनिक प्रेम प्रसंग और व्यभिचार करने के अंतहीन मौके मिलते है, ऐसा मानने वाले नटवर सिंह जब राजकुमारी हेमिन्दर कौर को पार्टी में देखा तो देखते रह गए। हेम के आत्मविस्वास से भरे स्टाइल, आकर्षक देहयष्टि और गरिमामयी पोशाक ने उन्हें दीवाना बना डाला I
ये पहली नजर के प्यार जैसा कुछ था। पहली मुलाकात के आखिर में ही नटवर ने हेम से पूछ लिया क्या मैं आपको फोन कर सकता हू। मुलाकातों का सिलसिला डेढ़ साल चला। फिर कनाट प्लेस के गेलॉर्ड रेस्तरां में हेम के जन्मदिन पर नटवर ने प्रपोज कर दिया। तीन हफ्ते बाद जवाब मिला। पटियाला के राजपरिवार ने शुरुआती विरोध किया। फिर सब कुबूल हो गया। शादी में एक गवाह के बतौर दस्तखत किए इंदिरा गांधी ने।
हेमिन्दर कौर पटियाला के महाराजा यादविन्दर सिंह की सबसे बड़ी बेटी हैं। शुरू में हेमिन्दर के परिजनों से शादी की रजामंदी नहीं मिली। लेकिन तमाम अनिश्चितताओं से दो चार होते हुए आखिरकार 21 अगस्त 1967 को नटवर सिंह और हेम का विवाह दिल्ली के पलियाला हाउस में सिविल मैरिज प्रक्रिया द्वारा समापन हुआ।
हेम के पिता भी उस समय राजदूत थे। शादी की बात सुनने के बाद वे दिल्ली आए और एक रिशेप्शन ऱखा गया। नटवर सिंह की शादी तीन तरीके से हुई। पहले, पटियाला हाउस कोर्ट में सिविल मैरिज, फिर सिख रीति से औऱ अंत में हिंदू रीति से विवाह संपन्न हुआ।
31 साल विदेश सेवा में रहने के दौरान 1984 में वे नौकरी से त्यागपत्र देकर राजनीति में आ गए। उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई को वे राजीव गांधी के खासमखास बन गए। 1985 में आठवीं लोकसभा के लिए उन्हें भरतपुर सीट से उम्मीदवार बनाया गया और वे विजयी हुए। राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में वे पहले इस्पात,कोयला एवं खनिज राज्यमंत्री फिर विदेश राज्यमंत्री बनाए गए।
पीवी नरसिंह राव के जमाने में वे राजनीतिक रूप से किनारे लगा दिए गए। लेकिन 1998 में वे एक बार फिर से भरतपुर से सांसद निर्वाचित हुए। 2002 में वे राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए और 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। विदेश मंत्री रहने के दौरान वे वोल्कर घोटाले में विवादित हुए। जिसके कारण उन्हें विदेश मंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। विदेश मंत्री के पद से हटने के बाद नटवर सिंह और गांधी-नेहरु परिवार में दूरी बढ़ती गई।
2014 में आई नटवर सिंह की चर्चित आत्मकथा- “वन लाइफ इज नॉट इनफ” ने दोनों परिवारों के बीच दूरी को औऱ बढ़ा दिया। ये किताब रिलीज से पहले ही चर्चाओं में आ गई थी। इसके कुछ राजनीतिक प्रसंगों की जमकर मीडिया में चर्चा हुई। खबरें इसलिए भी बनीं क्योंकि पांच दशक तक गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे नटवर ने किताब में गांधी-नेहरु परिवार के कई राज को सार्वजनिक कर दिया था।
नटवर सिंह अपने सुपुत्र जगत सिंह, पुत्री रितु कौर और बहू नताशा के कारण भी सुर्खियों में रहे। इसके साथ ही वे 2005 के बाद अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर भी सुर्खियां बटोरी। कभी बहुजन समाज पार्टी में जाने तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी के कारण भी वे चर्चा में रहे।
(लेखक दैनिक भास्कर के एसोसिएट एडिटर हैं।)