
भारत की मौजूदा राजनीति में वीर सावरकर के नाम का जिक्र होते रहता है। आज यानी 28 मई को सावरकर की जयंती है। उनका नाम लेते ही कई विवाद सामने पेश हो जाते हैं। एक धड़ा सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी मानता है तो दूसरी ओर उनको गांधी के हत्याकांड से जोड़कर देखा जाता है। पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में सावरकर को भारत रत्न देने को प्रमुखता से शामिल किया था। इस पर विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया था।
गैर भाजपा दलों की ओर से सावरकर के काला पानी की सजा को भी याद दिलाया जाता है। सजा के दौरान सावरकर ने अंगरेजों से लिखित माफी मांगी थी, जो वाकया विवाद का विषय बना रहता है। सावरकर ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1909 में लिखी अपनी पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ में इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित किया। जिस पर कई देशी और विदेशी इतिहासकार सहमत नहीं होते हैं।
सावरकर की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीटर पर वीडियो जारी कर उनको श्रद्धांजलि दी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर सावरकर को याद किया और श्रद्धांजलि व्यक्त की।
On his Jayanti, I bow to the courageous Veer Savarkar. We remember him for his bravery, motivating several others to join the freedom struggle and emphasis on social reform. pic.twitter.com/o83mXmgp1S
— Narendra Modi (@narendramodi) May 28, 2020
वीर सावरकर ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेकों यातनायें सहीं। देश के लिए इतने कष्ट सहने वाला विश्व में सावरकर जैसा शायद ही कोई हो।
उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी और मंदिरों में दलित समाज के प्रवेश के लिए संघर्ष किया।
ऐसे महान राष्ट्रभक्त के चरणों में कोटि-कोटि नमन।— Amit Shah (@AmitShah) May 28, 2020
सावरकर से जुड़ी जानकारियां
नासिक के भगूर गांव में हुआ। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर था, जो
गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। उनकी माता का नाम
राधाबाई था। जब विनायक 9 साल के थे, तब ही उनकी माता का देहांत हो गया था।
उनका
पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। बचपन से ही वे पढ़ाकू थे। बचपन में
उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं। उन्होंने शिवाजी हाईस्कूल, नासिक से
1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। आजादी के लिए काम करने के लिए
उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई।
1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत
ओजस्वी भाषण देते थे। तिलक की अनुशंसा पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण
वर्मा छात्रवृत्ति मिली। ‘इंडियन सोसियोलॉजिस्ट’ और ‘तलवार’ में उन्होंने
अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के ‘युगांतर’ में भी छपे।
वे रूसी
क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। लंदन में रहने के दौरान सावरकर की
मुलाकात लाला हरदयाल से हुई। लंदन में वे इंडिया हाउस की देखरेख भी करते
थे। मदनलाल धींगरा को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने ‘लंदन टाइम्स’ में
भी एक लेख लिखा था। उन्होंने धींगरा के लिखित बयान के पर्चे भी बांटे थे।
वीर
सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और
फिर 3 साल जेल भोगी। जेल में ‘हिन्दुत्व’ पर शोध ग्रंथ लिखा। 1937 में वे
हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए। 1943 के बाद वे दादर, मुंबई में रहे। 9
अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और
आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। आजादी के माध्यमों के बारे में गांधीजी
और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था।
वीर सावरकर विश्वभर के
क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। उनका नाम ही भारतीय क्रांतिकारियों के लिए
उनका संदेश था। वे क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक,
चिंतक, साहित्यकार थे। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान
थीं। उनका जीवन बहुआयामी था।
इस क्रांतिकारी का 26 फरवरी
1966 को निधन हुआ। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष
करते हुए ही बीता। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति
के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे
जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से
कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार
पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
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