
म्यांमार में सैन्य शासन की बढ़ती हिंसा ने म्यांमार के पड़ोसी देश बांग्लादेश, भारत और थाईलैंड की चिंता बढ़ा दी है। लोकतंत्र समर्थकों पर म्यांमार की सेना के हमले हो रहे है। लोकतंत्र समर्थक सैन्य हमलों से बचने के लिए भारतीय इलाके में प्रवेश कर रहे है। थाईलैंड में भी म्यांमार के हजारों नागरिक शऱण ले चुके है। म्यांमार की सेना बुरी तरह से हिंसक हो गई है। लोकतंत्र समर्थकों पर हवाई हमले तक किए जा रहे है। सैकड़ों लोग सेना के हमले में मारे जा चुके है।
भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्य में म्यांमार के नागरिक सैन्य कार्रवाई के कारण शऱण ले रहे है। मिजोरम में बीते कुछ समय में म्यांमार से सैकड़ों लोग आ चुके है। ये यहां शऱण ले चुके है। मिजोरम की राज्य सरकार इन शरणार्थियों के प्रति सहानभूति रखती है। मानवीय आधार पर म्यांमार से आए लोंगों को मिजोरम सरकार मदद भी कर रही है। हालांकि भारत सरकार लगातार म्यांमार से आने वाले लोगों को सीमा पर रोकने की कोशिश कर रही है।
लेकिन लंबी सीमा पर बांग्लादेश के तर्ज पर बाड़बंदी नहीं होने के कारण म्यांमार से आने वाले लोगों को रोकना मुश्किल काम है। उधर मिजोरम सरकार की भी स्थानीय समस्या है। म्यांमार और मिजोरम की लंबी सीमा है। मिजोरम से म्यांमार की साझा सीमा लगभग 400 किलोमीटर लंबी है । दोनों तरफ रहने वाले लोगों के बीच आपसी पारिवारिक सांझ है। क्योंकि दोनों तरफ चिन समुदाय के लोग रहते है। मिजोरम में रहने वाली जातियों के संबंध म्यांमार में रहने वाली जातियों से है।
म्यांमार में रहने वाले चिन समुदाय के लोगों के पारिवारिक रिश्ते मिजोरम की सीमा में रहने वाले चिन समुदाय के परिवारों से है। । वैसे में म्यांमार की सीमा में रहने वाले चिन समुदाय के लोगो के प्रति मिजोरम सरकार की सहानभूति है। इसी तरह से मणिपुर की सीमा भी म्यामांर से लगती है। वहां भी म्यांमार से शरण लेने के लिए लोग आ रहे है।
भारत दुनिया का बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन म्यांमार में लोकतंत्र पर हुए हमले पर भारत अभी तक चुप है। जबकि भारत को म्यांमार में लोकतंत्र बहाली को लेकर खुलकर बोलना चाहिए। म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट लोकतंत्र पर हमला है। लेकिन अभी तक भारत ने म्यांमार में सैन्य शासन को लेकर संतुलन की कुटनीति अपना रखी है।
भारत फिलहाल तटस्थ दिखने की कोशिश में है। जबकि हमें यह समझना होगा कि म्यांमार में लोकतंत्र समर्थकों पर हो रही सैन्य कार्रवाई का सीधा असर भारत पर पड़ रहा है। म्यांमार में हो रही सैन्य कार्रवाई से भारतीय सीमा प्रभावित हो रही है। पहले भी म्यांमार से रोहिंग्या समुदाय के पलायन हुआ। इसका सीधा असर बांग्लादेश और भारत पर पड़ा है।
आज भी लाखों रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश और भारत में शरण लिए हुए है। रोहिंग्या लोगों के दमन के लिए भी म्यांमार की सेना ही जिम्मेवार है। अब म्यांमार की सेना लोकतंत्र समर्धकों का दमन कर रही है। इसका सीधा प्रभाव भारत और थाईलैंड पर पड़ रहा है। सैन्य दमन से बचने के लिए हजारों लोग म्यांमार छोड़कर भाग रहे है। ये भारत और थाईलैंड की सीमा में पहुंच रहे है। वैसे में भारत सरकार म्यांमार के आंतरिक स्थिति पर कबतक चुप रहेगी?
इसमें कोई शक नही है कि म्यांमार के सैन्य शासन को चीन का समर्थन है। चीन से सहमति मिलने के बाद ही म्यांमार के सैन्य शासकों ने तख्ता पलट किया। अब म्यांमार के सैन्य शासकों को चीन खुलकर समर्थन दे रहा है। क्योंकि इससे चीन के आर्थिक हित म्यांमार में सधेंगे। चीन के समर्थन के कारण म्यांमार की सेना का मनोबल बढ़ा हुआ है, अपने ही लोगों पर गोलियां चला रही है।
ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत को तुरंत म्यांमार में लोकतंत्र को बहाली के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। म्यांमार की सेना पर दबाव बनाना चाहिए। पश्चिमी देशों ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। पश्चिमी देशों ने म्यांमारी सेना पर सख्त दबाब बनाना शुरू कर दिया है। लोकतंत्र बहाली को लेकर पश्चिमी देशों ने म्यांमार के सैन्य शासकों और इससे जुड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध भी लगाए है।
म्यांमार में सैन्य शासन की हिंसा उस बौद धर्म के आचार-विचार पर हमला है, जिसने सारी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढाया है। म्यांमार में बहुसंख्यक आबादी बौद धर्म को मानती है। देश की 88 प्रतिशत आबादी बौद धर्म की अनुयायी है। इसके बावजूद म्यांमार जैसे मुल्क में इतनी भयानक हिंसा साफ संकेत देता है कि म्यांमार में बौद धर्म के सिदांतों को चुनौती मिली है। देश की प्रमुख जातियां बमार, शान, राखीन, सोम करेन बौद धर्म को ही मानती है।
देश में 6 प्रतिशत ईसाई भी है। लगभग 4 प्रतिशत आबादी मुस्लिम भी है। लेकिन चिंता की बात है कि अहिंसा के प्रचार के लिए जिम्मेवार कुछ बौद संगठन इस देश में हिंसा को प्रोत्साहित कर रहे है। वे म्यांमार की सेना के साथ मिलकर हिंसा कर रहे है। पिछले कुछ सालों में कुछ कटटर बौद संगठनों धार्मिक अल्पसंख्यकों हमला करवाया है। म्यांमार के सैन्य तानाशाह भी बौद धर्म के अंहिसा के सिदांत को तिलांजली दे चुके है।
म्यांमार का कट्टरपंथी बौद भिक्षु अशीन विराथु तो बौद आतंकवाद का चेहरा बना हुआ है। उसने म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमले को सही ठहराया। लोगों को उनपर हमले के लिए उकसाया। बौद बहुमत वाले देश श्रीलंका के बाद म्यांमार में बौद धर्म के मूल सिदांतों को नुकसान पहुंचाया गया और कटटरपंथ को बढावा दिया गया। इन दोनों देशों में सरकारों ने कटटर बौद संगठनों को संरक्षण दिया। उन्हें मदद भी की औऱ उनसे शासन चलाने में मदद भी मांगी।