रविवार की कविता : तोड़कर संबन्ध हमसे कह रहा जग…


अंकिता सिंह का जन्म जिला-गया(बिहार) में हुआ। इस समय वह बेंगलुरू में रहती हैं। पेशे से एक इंजीनियर हैं पर अगर उनकी शायरी, उनकी कविताओं को सुना जाये उनके व्यक्तित्व का बेहद संवेदनशील पहलू सामने आता है जो कि एक कवि या कवयित्री होने के लिये बहुत आवश्यक है।



तोड़कर संबन्ध हमसे कह रहा जग,

ख़ार हैं हम; पाँव की पायल नहीं हैं!

कंकरी -से चुभ रहे हैं पुतलियों में

हम किसी की आँख का काजल नहीं हैं!

 

हम किसी बोझिल उनींदी आँख का

एक टूटा स्वप्न हो पाए नहीं

क्यों किसी प्रेमिल हृदय का अनमना

एक छोटा यत्न हो पाए नहीं ?

पात्र बनकर रह गए हम चुगलियों के

इसलिए मधुरिम प्रणय के पल नहीं हैं!

 

हाय ! यह संसार ताने मार कर

रोज़ हमको कटु वचन ही कह रहा

इक समंदर रत्न लेकर इस तरह

नाद और उन्माद के सँग रह रहा

पाँव से कुचले गए कोई सुमन हम

चूम ले मकरंद, वो शतदल नहीं हैं !

 

हम अगर थे ज्वार की मनहर फ़सल

दूब कहकर खेत से फेंके गए

रेत में हम पल रहे थे अंततः

छानकर उस रेत से फेंके गए

हम यहाँ हर क्षण उपेक्षित हो रहे पर,

नीर हैं हम; काल या दलदल नहीं हैं !



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