रहस्यमय कोरोना की रहस्यमय महामारी


एक रहस्यमय वायरस के रूप में दुनिया के सामने आया कोविड-19 आखिर आज भी रहस्यमय ही क्यों बना हुआ है? फिलहाल इस सवाल का जवाब संसार में किसी के पास नहीं है। कोरोना अंधों का हाथी हो गया है। जिसे जो समझ में आ रहा है, उसी को कोरोना का लक्षण और उपचार बता रहा है।



बीते साल अक्टूबर नवंबर के महीने में चीन में एक रहस्यमय वायरस के फैलने की खबर आई। साल बीतने को आया। चीन के वुहान शहर में मिला रहस्यमय वायरस आज पूरी दुनिया में फैल चुका है, उसकी पहचान और नामकरण तक किया जा चुका है लेकिन वायरस आज भी रहस्यमय ही बना हुआ है। दुनिया के अलग अलग हिस्सों में इस वायरस का व्यवहार, पैटर्न, और बदलाव इतना रहस्यमय है कि आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वॉयरस के बारे में एक राय नहीं बना पाये हैं। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस वायरस को लेकर इतने विरोधाभाषी बयान जारी कर चुका है कि अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी सवाल उठ रहे हैं। जब ये वायरस पहली बार चीन के वुहान शहर में मिला था तब डब्लूएचओ ने कहा था कि ये व्यक्ति से व्यक्ति के बीच संक्रामक वायरस नहीं है इसलिए चीन से पूरी दुनिया में लोगों की आवाजाही बनी रही। इस आवाजाही के साथ वायरस भी पूरी दुनिया में पहुंच गया। इसका परिणाम ये हुआ कि एक ओर जहां चीन इस वॉयरस के खतरे से बाहर आ रहा था वहीं दूसरी ओर पूरी दुनिया इस वायरस के खतरे के भीतर दाखिल हो रही थी। मार्च 2020 तक यूरोप, अमेरिका, लैटिन अमेरिका, एशिया, आष्ट्रेलिया और अफ्रीका हर द्वीप पर चीन से निकला “रहस्यमय वायरस” फैल चुका था जिसे वैज्ञानिकों ने कोरोना वॉयरस परिवार की नयी प्रजाति के रूप में चिन्हित किया था, और नाम दिया कोविड-19। 

भारत में ये वायरस चीन से नहीं आया। चीन से भारत सतर्क था इसलिए वहां से आने जाने वाले लोगों को लेकर पूरी सावधानी बरती जा रही थी। भारत में यह वायरस यूरोप और सऊदी अरब से दाखिल हुआ। यूरोप और खाड़ी के देशों में काम करने वाले भारतीय चुपचाप भारत आते रहे और कोरोना वायरस फैलाते रहे। भारत सरकार जब तक सक्रिय होती कोरोना संक्रमण देश के प्रमुख महानगरों और कुछ राज्यों में दस्तक दे चुका था। आनन फानन में सरकार ने बिना सोचे समझे संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया जिससे कोरोना का संक्रमण तो नहीं रुका, लोगों की चलती फिरती जिन्दगी जरूर रुक गयी।

अब सरकार स्वयं लॉकडाउन में ऐसी फंस गयी है कि बाहर नहीं निकल पा रही है। केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें वो स्वयं उहापोह की स्थिति में दिखती हैं कि कोरोना को लेकर आखिर कौन सी नीति अपनायें जो कारगर हो जाए। लंबे समय तक लॉकडाउन करना संभव नहीं और बाजार खोल देने पर केस तेजी से बढ रहे हैं। जिन तैयारियों के नाम पर मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान किया था वो तैयारियां जमीन पर न के बराबर हैं। सरकारी अस्पतालों की लापरवाही और निजी अस्पतालों की लूटमार रोजमर्रा की खबर हो गयी है। ऐसे में समाचार माध्यमों, खासकर टेलीवीजन ने कोरोना को लेकर जागरुकता से ज्यादा डर और भ्रम फैलाया है।

टेलीवीजन चैनलों के पास रोज कोई न कोई ऐसी खबर होती है जिसके बहाने वो कोरोना पर कोई नया तथ्य प्रस्तुत कर देते हैं। ये तथ्य और अध्ययन ही अपने आप में बहुत भ्रामक साबित होते हैं। जैसे, मई महीने में अमेरिका के एक विश्वविद्यालय और सिंगापुर विश्वविद्यालय का अलग अलग अध्ययन आया जिसमें बताया गया कि भारत में जुलाई पीक का महीना होगा। अगर लॉकडाउन खोल दिया गया तो दस करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं। अब जबकि जुलाई आधा बीत चुका है और लाकडाउन भी सिर्फ ट्रेन, हवाई जहाज और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर ही है, तब भी हालात वैसे नहीं हैं जैसे दावे किये गये थे। भारत में कुल ग्यारह लाख केस आये हैं जिसमें 20 जुलाई तक सात लाख लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं जबकि 26500 के करीब मौत हो चुकी है। 

भारत में ही पहले एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि जुलाई में पीक आयेगा लेकिन अब पीटीआई के हवाले से नयी खबर ये आयी है कि जुलाई नहीं बल्कि सितंबर में पीक आयेगा। दावा करनेवाले पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन के निदेश के श्रीनिवास रेड्डी हैं। सवाल ये है कि जनता किसके दावे को सही माने? इतने परस्पर विरोधी दावे किये जा रहे हैं कि विश्वास करना मुश्किल है कि कोविड19 संक्रमण भारत में उतार पर कब आयेगा। ये दावे प्रतिदावे अभी सिर्फ शहरों में कोविड के फैलाव को देखकर हो रहे हैं। अगर ये संक्रमण गांवों की ओर गया तब क्या होगा? तब सवा अरब से अधिक के जनसंख्या वाले देश का पीक कब आयेगा? 

निश्चित तौर पर सब कुछ धुंधला है। डब्लूएचओ से लेकर एम्स और आईसीएमआर तक किसी के पास कहने के लिए ठोस कुछ नहीं है। चिकित्सा को लेकर भी वैसा ही भ्रम है जैसा इसके फैलाव को। लेकर है। पहले ये हल्ला मचा कि क्लोरोक्वीन दवा कोरोना संक्रमण में कारगर साबित हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति तक ने भारत से क्लोरोक्वीन दवा का स्टॉक मंगा लिया लेकिन अब डब्लूएचओ ने ही इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया है। क्लोरोक्वीन के अलावा अलग अलग देशों में अलग अलग दवाइयों के इस्तेमाल से कोरोना रोगियों के ठीक होने के दावे आज भी हो रहे हैं और आंकड़े बता रहे हैं कि मौत की दर गिरी है।

भारत में ही शुरुआत में 100 में 26 मौत का आंकड़ा आ रहा था जो अब घटकर 100 में 4 का रह गया है। लेकिन इलाज में भी परस्पर विरोधाभाषी दावे हैं। एक तरफ लखनऊ का सरकारी आयुर्वेद संस्थान दावा करता है कि उसने 16 कोरोना संक्रमित रोगियों को लहसुन और सोंठ खिलाकर ठीक कर दिया तो दूसरी ओर रामदेव के कोरोनिल पर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं और उसे कोरोना की दवाई बताकर बेचने पर रोक लगा दी जाती है। अस्पतालों के पास भी कोई निश्चित गाइडलाइन या दवाई नहीं है। वो भी रोगियों की दशा के अनुसार उन पर प्रयोग कर रहे हैं जिसमें क्लोरोक्वीन और एन्टीबॉयटिक से लेकर प्लाज्मा थेरेपी तक सबकुछ शामिल है।

कोरोना की कोई निश्चित दवा निकट भविष्य में आती दिख नहीं रही है। कुछ कंपनियों ने शुरुआती लक्षणों को देखते हुए जरूर मंहगी दवाइयां बाजार में उतार दिया है। यही हाल वैक्सीन का है। पूरी दुनिया में दावे किये जा रहे हैं लेकिन सिर्फ रूस है जिसने कहा है कि अगस्त से उनकी वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होगी। बाकी दुनिया के देश अभी परीक्षण कर रहे हैं जिसमें भारत भी शामिल है। इसमें भारत के आयुष मंत्रालय ने जरूर दावा किया है कि अगर उनका प्रयोग सफल रहता है तो अगस्त तक वो कोरोना संक्रमण की आयुर्वेदिक दवा प्रस्तुत कर देंगे। 

इन तमाम दावों प्रतिदावों के बीच कोरोना का रहस्य जस का तस बरकरार है। एक वॉयरस जिसकी खोज साठ के दशक में हुई और उसे एक सामान्य फ्लू वॉयरस माना गया आज उसी कोरोना वॉयरस परिवार का एक नया सदस्य इतना रहस्यमय कैसे हो सकता है कि इक्कीसवीं सदी में नौ महीने की मेहनत के बाद न तो उसकी सटीक पहचान हो सकी है और न ही कोई निश्चित दवा उपलब्ध हो पायी है? एक रहस्यमय वायरस के रूप में दुनिया के सामने आया कोविड-19 आखिर आज भी रहस्यमय ही क्यों बना हुआ है? फिलहाल इस सवाल का जवाब संसार में किसी के पास नहीं है। कोरोना अंधों का हाथी हो गया है। जिसे जो समझ में आ रहा है, उसी को कोरोना का लक्षण और उपचार बता रहा है। 

बहरहाल इस रहस्यलोक के बीच अच्छी खबर देश की राजधानी दिल्ली से है जहां एम्स में कोरोना वैक्सीन का ट्रायल शुरु हुआ है। इस मौके पर एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कम से कम दिल्ली में कोरोना पीक से वापस लौट रहा है। कोरोना के केस लगातार घट रहे हैं। यही हाल दक्षिण के कुछ जिलों का भी है। शायद ये रहस्यमय संक्रमण भारत में भी एक दिन उसी तरह रहस्यमय तरीके से गायब हो जाए जैसे चीन से हो गया।