
नई दिल्ली । साहित्य अकादेमी में आज भारत की स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव शृंखला के अंतर्गत संत कवि माधवदेव पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में अपना बीज वक्तव्य देते हुए मालिनी गोस्वामी ने कहा कि संत माधवदेव ने सामाजिक बदलाव के लिए वैष्णव साहित्य की कई विधाओं में सृजन कर अपने गुरु शंकरदेव की परंपरा को आगे बढ़ाया और पूरे असम में धार्मिक जागरण की अलख जगाई।
उन्होंने माधव देव द्वारा भारतीय दर्शन परंपरा को भी विकसित करने के प्रयासों पर विस्तार से चर्चा की। इससे पहले उद्घाटन वक्तव्य में प्रख्यात असमिया विद्वान प्रदीप ज्योति महंत ने कहा कि ने शंकरदेव की परंपरा को बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाया और अपने कीर्तन और नाटकों द्वारा जनसमाज को शिक्षित और जागरूक बनाया। इससे पहले अपने स्वागत भाषण में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि मध्यकालीन भक्ति आंदोलन ने देश में एकता की जो अलख जगाई थी और असम के क्षेत्रों में शंकरदेव और माधवदेव की उपस्थिति अत्यंत विराट है।
इन संतों ने धर्म के सहारे सामाजिक सुधार की पृष्ठभूमि तैयार की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में ध्रुवज्योति बोरा ने विस्तार से माधवदेव की परंपरा और असम के आम जन-जीवन में उसके प्रभाव को रेखांकित किया। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी द्वारा शंकरदेव पर प्रकाशित हिंदी विनिबंध का लोकार्पण भी किया गया।
अगला सत्र ‘माधवदेव और उनका समय : एक समर्पित अनुकरणीय जीवन’ पर केंद्रित था। सत्र में उदयनाथ साहू, राजेंद्र मेहता ने जस्टिस मुकुंदकाम शर्मा की अध्यक्षता में अपने आलेख प्रस्तुत किए।
अगला सत्र ‘पूर्णपुष्पित भक्ति : माधवदेव के नाटक तथा नृत्य’ पर आधारित था, जिसमें गुणाकर देव गोस्वामी ने माधवदेव कृत झुमुरा नाटकों की परंपरा तथा पात्रों पर अपना आलेख प्रस्तुत किया। अर्शिया सेठी ने माधवदेव द्वारा सृजित नृत्य और अनिल शइकीया ने माधवदेव के संगीत पर अपने आलेख प्रस्तुत किए।
ज्ञात हो कि श्री माधवदेव ‘एकशरण धर्म’ के एक महत्त्वपूर्ण उपदेशक थे, जो अपने गुरु, श्रीमंत शंकरदेव के प्रति निष्ठा के साथ-साथ अपनी कलात्मक प्रतिभा के लिए भी जाने जाते हैं। वह एक संत संगीतकार, कवि, नाटककार और विद्वान थे।
वह एक धार्मिक सुधारक और असम में वैष्णव धर्म के महान प्रचारक थे। उनकी आयोजन क्षमता, दूरदर्शिता और अनुकरणीय आचरण असम के लोगों के लिए प्रेरणादायक रहा है। माधवदेव के गीत चार शताब्दियों से अधिक समय से संतप्त हृदयों के लिए सांत्वना का स्रोत बने हुए हैं। उनके नाटकों ने आम जन और प्रबुद्ध दोनों वर्गों को शिक्षा और संतुष्टि प्रदान की।
कल ‘सौंदर्यप्रेमी, रचनाकार तथा दार्शनिक’, ‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में माधवदेव की उपस्थिति’ एवं ‘बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न व्यक्तित्व’ विषयों पर प्रदीप ज्योति महंत, हिरण कुमार दास एवं कार्बी डेका हाज़रिका की अध्यक्षता में तीन सत्र आयोजित किए जाएँगे।